शिमला।माकपा के राज्य सचिवालय सदस्य व पूर्व आईएफएस अफसर कुलदीप सिंह तंवर ने मोदी सरकार की मंत्री मेनका गांधी व सोनिया गांधी की करीबी कांग्रेस की सांसद रेणुका चौधरी को सलाह दी कि वे आरामदायक वातानुकूलित कमरों से बाहर निकले और देश भर के गांवों में बसने वाले किसानों की समस्याओं को समझे। उन्होंने आगाह किया कि यदि इसी तरह किसान विरोधी रूख पक्ष व विपक्ष का रहा तो देश के किसानों में अलगाव एवं विरोध की भावना ही बढे़गी।
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से मेनका गांधी व वन व पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़े़ेकर की ओर से दिए जा रहे बयानों के मददेनजर उनकी जुबान पर लगाम लगाने का आग्रह किया है।
पूर्व आईएएफ अफसर ने इसके अलावा जंगली जानवरोंं पर मोदी सरकार व प्रदेश की वीरभद्र सरकार को जंगली जानवरों के द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने व उनके प्रबन्धन के मुद्दे पर अपना पक्ष सपष्ट करने को कहा।
उन्होंने कहा कि किसान आन्दोलनों के दबाव के चलते मोदी सरकार ने हाल में कुछ राज्यों में बंदरों, जंगली सुअरों एवं नीलगायों को वन्यप्राणी संरक्षण कानून 1972 के तहत वर्मिन घोषित किया था।मोदी सरकार के मंत्री इस मामले में आपस में ही उलझ गए हैं जो कि खेदपूर्ण है। उन्होंने राज्य सभा की उपसमिति की अध्यक्षा रेणुका चौधरी के बयान को किसान विरोधी बताया जिसमें उन्होंने फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जंगली जानवरों को वर्मिन घोषित करने के निर्णय का विरोध किया था।
किसानों की जमीनी हालात से बेखबर शहरों में बैठ कर बयान देने वाले हवाई मंत्रियों के बयानों पर माकपा ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को चाहिए है कि मंत्रियों के ऐसे बयानों पर तुरंंत रोक लगाएं।
हिमाचल प्रदेश के किसान पिछले कई दशकों से जंगली जानवरों का सही प्रबन्धन की मांग कर रहें हैं ताकि किसानों की फसलें बच सकें। किसानों दी जा रही राहतों और अनुदानों में लगातार कमी की जा रही है वहीं खाद, कीटनाशकों के बढ़ते दामों ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। किसान को प्राकृतिक आपदा, सूखा और बाढ़ के बाद मण्डी में उचित मूल्य के लिए जूझना पड़ता है। उपर से जंगली जानवरों के उपद्रव ने किसानों को भूमि को बंजर रखने पर मजबूर कर दिया है। प्रदेश में सालाना 400 से 500 करोड़ रूपये की फसले जंगली जानवरों के द्वारा नष्ट की जा रही हैं।
80,000 हैक्टयर के करीब भूमि को परती रखने की वजह से भी तकरीबन 400 और 500 करोड़ का नुकसान हो रहा है। फसलों की रखवाली करने के लिए लगे नौजवानों, बुजुर्गों एवं महिलाओं के दिहाड़ी से होने वाले 1200 करोड़ के नुकसान को भी जोड़ दिया जाए तो किसानों को सालाना 2000 से 2200 करोड का नुकसान हो रहा है।
हिमाचल में भूमि का सबसे ज्यादा हिस्सा (तकरीबन 67 फीसद) वन विभाग के अधिकार में हैं और उसमें भी 15 फीसद हिस्सा जंगली जानवरों, पशु-पक्षियों के लिए च्।छ के रूप में संरक्षित रखा गया है। प्रदेश में सिर्फ 17.14 फीसद भूमि ही किसानोंों के पास है और उसमें से भी 11.17 फीसद पर ही खेती हो सकती है। सरकारी एवं नीजि क्षेत्र में नौकरियां कम होने की वजह से लोग अपनी आजिविका के लिए मजदूरी एवं खेती पर भी निर्भर है। ऐसे में यदि वर्तमान एवं भूतपूर्व केन्द्रिय मंत्रियों के असंवेदशील बयान पक्ष एवं विपक्ष के किसान विरोधी रूख को उजागर करते हंै।
माकपा ने पशु प्रेमी संगठनों को भी चेताया कि वे किसान विरोधी फैसलों के पक्ष में न खडे़ होंों। उन्होंने कहा कि वे लोग अच्छे होे सकते हैं परन्तु उनकी मंशा एवं काम किसान विरोधी है।
डाॅ0 तंवर ने सपष्ट किया कि जंगलो की वहन क्षमता से ज्यादा हो गए जंगली जानवरों का वैज्ञानिक प्रबंधन जरूरी है और वैज्ञानिक कलिंग भी इसका हिस्सा है। उन्होंने बताया कि अफ्रिका में हाथी,आस्ट्रलिया में जंगली बिल्ली एवं कंगारू तथा इंग्लैड एवं कनाडा में सील के प्रबन्धन के लिए उन देशों की सरकारें अपनी देखरेख में वैज्ञानिक तौर पर कलिंग का सहारा लेती हैं। उन्होंने कहा कि जंगली जानवरों का पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका है परन्तु मानव की कीमत पर नहीं।
उन्होंने कहा कि बंदरों का निर्यात जैव विज्ञान शोधांे के लिए किया जाना चाहिए। ताकि एक तरफ किसानों को राहत मिल सके दूसरी तरफ मानव जाति के हितों में होने वाले जैव विज्ञानी शोधों में भी मद्द मिल सकें। उन्होंने कहा कि बंदरों के शोध के लिए उपलब्ध न हो पाने की वजह से विकासशील देशों में दवाई बनाने वाली कम्पनियां सीधे मानवों पर ही शोध कर रही है जो कि अमानवीय है।
किसानों की बदहाल स्थिति से अगर आप भी इतेफाक रखते हैं और अगर आपके पास हैं कोई सुझाव तो आप नीचे कमेंट बॉक्स में जाकर साझा कर सकते हैं।कृपया भाषाा का ध्यान रखें-:
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