शिमला। मोदी सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति की ओर से हाल ही में नियुक्त किए हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत की ओर से मंगलवार को राजभवन में आयोजित किए गए जन दरबार पर विवाद खड़ा हो गया है। वामपंथी पार्टी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी)ने इसे विधायिाका को दरकिनार कर समानान्तर सरकार चलाने की प्रक्रिया करार देते हुए एलान किया है कि अगर उन्होंने अपनी कार्यप्रणाली दुरुस्त नहीं की तो माकपा राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें हटानेकी मांग कर देगी। बीते रोज राज्यपाल ने नगर निगम के मेयर वामपंथी संजय चौहान को भी अपने राजदरबार में आने का न्योता दिया था। लेकिन वो नहीं गए। इस दरबार में सरकार के कई अफसर भी असहज नजर आए।
माकपा ने हिमाचल सरकार केसंविधान प्रमुख राज्यपाल देवव्रत पर केबिनेट को दरकिनार कर संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघना करने और अपने मनमाने तरीके से प्रदेश के प्रशासन को चलाने का आरोप जड़कर राजभवन को सवालों में खड़ा कर दिया है।
माकपा के राज्य सचिव ओंकार शाद ने कहा कि राज्यपाल अपनी नियुक्ति के समय से ही कभी मन्त्रियों को , कभी अधिकारियों को अपने पास बैठक के लिए बुला रहे हैं व इन बैठकों में राज्य से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेकर जनता द्वारा चुनी हुई सरकार व स्थानीय निकायों को दरकिनार कर रहे हैं जिससे यह जाहिर होता है कि राज्य के राज्यपाल एक विशेष विचारधारा के तहत ‘‘केन्द्र सरकार के एजेन्ट’’ के तौर पर काम कर रहें हैं।
प्रदेश में राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख हैं लेकिन संविधान के दिशानिर्देशों के अनुरूप उन्हें राज्य कैबिनेट की सलाह पर कार्य करना है। राज्य कैबिनेट के निर्णयों पर अगर उन्हें आपत्ति है तो उसे दोबारा विचार के लिए राज्य कैबिनेट को वापिस भेज सकते हैं लेकिन अपनी नियुक्ति के बाद से ही राज्यपाल इस प्रक्रिया को लागू न कर अपने मनमाने तरीके से प्रदेश के प्रशासन को चलाना चाह रहे हैं।
शाद ने कहा कि यह न केवल ‘‘केन्द्र सरकार के एजेन्ट’’ के तौर पर समानांतर सरकार चलाने का प्रयास है बल्कि प्रदेश की जनता के द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को दरकिनार करना है। यह पूर्व न्यायमूर्ति आर. एस. सरकारिया के नेतृत्व वाली ‘‘केन्द्र-राज्य संबंधों पर गठित सलाहकार समिति’’ की शिफारिशों के खिलाफ भी है।
कुछ दिन पहले ही सिरमौर जिला के सरांह क्षेत्र में पशु तस्करी के नाम पर एक विशेष विचारधारा द्वारा एक धर्म के खिलाफ अभियान चलाकर एक नवयुवक की हत्या कर दी गई।
हमारे देश का संविधान धर्मनिरपेक्षता को मान्यता देता है। चूंकि इस तरह की घटना प्रदेश में पहली बार हुई है व इस घटना को एक – दूसरे धर्म के खिलाफ जोड़ कर देखा गया है। प्रदेश के राज्यपाल ने संवैधानिक प्रमुख पद पर होते हुए अभी तक न तो इस घटना की निंदा की व न ही इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने की बात कही जिससे यह भी साफ होता है कि वह किसी विशेष विचारधारा को बढ़ावा देना चाहते हैं जो वह अपने व्यक्तव्यों में एक खास संस्कृति व एक खास जीवन पद्धति लागू करने की बात हमेशा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा किसी. पी. आई. (एम.) राज्य कमेटी का मानना है कि यह सब केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के इशारों पर हो रहा है क्योंकि पुर्व में भी केन्द्र सरकारें ‘‘केन्द्र के एजेन्ट’’ के रूप में राज्यपाल के जरिये काम करती आई हैं।
सी. पी. आई. (एम.) राज्य कमेटी अपील करती है कि प्रदेश के राज्यपाल संवैधानिक प्रक्रियाओं के तहत काम करें अन्यथा पार्टी राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें हटाने की मांग करेगी।
उधर राज्यपाल के इस दरबार पर प्रदेश कांग्रेस पार्टी भी विरोध में आ गई है। पार्टी अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू ने देवव्रत द्वारा प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक जैस पुलिसए वन और अन्य विभागों करने पर अपनी असहमति व्यक्त की है। उन्होंनें कहा कि राज्यपाल को अधिकारियों को बुलाने के बजाय संबंधित विभागों के मंत्रियों को बुलाना चाहिए था और उनसे रिपोर्ट मांगनी चाहिए।
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि राज्यपाल का पद संवैधानिक पद है और अधिकारियों की बैठक बुलाकर उन्हें दिशा-निर्देश देना व उनके काम.काज पर रिर्पोट तलब करना इस पद की गरिमा के अनुरूप नही है। उन्होंनें कहा कि विभागों को चलाने की जिम्मेवारी संबंधित मंत्रियों की होती है और राज्यपाल को मंत्रियों से ही सम्बधित विभागों के कामकाज की रिपोर्ट लेनी चाहिए थी। उन्होंनें कहा कि राज्यपाल द्वारा प्रदेश के शीर्ष अधिकारियों की बैठक बुलाकर कामकाज की रिपोर्ट लेना सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप करने के समान है।
ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने कहा कि राज्यपाल राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के नाते यह उनके अधिकार क्षेत्र में नही आता कि वे लोकतांत्रिक तरिके से चुनी हुई सरकार के विभागों के अध्यक्षों की प्रत्यक्ष तौर पर बैठक बुलाए और इस प्रकार के इस्तक्षेप देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था में गलत मिसाल कायम करेगें। राज्यपाल कैबिनट मंत्रियों को बुलाकर किसी भी मुद्दे पर या कोई शिकायत मिलने पर उसके सम्बध में रिपोर्ट मांग सकता है
उन्होंनें कहा कि कांग्रेस पार्टी को राज्यपाल आर्चाय देवव्रत की नशीले पदार्थो की तस्करी और अन्य मुदों पर उनकी मंशा पर कोई संदेह नही है परन्तु इस तरह की बैठके लोकतांत्रिक तरिके से चुनी हुई सरकार के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप है। उन्होंनें कहा कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने नशीले पदार्थो की तस्करी रोकने के लिए कई कदम उठाये हैं और राज्यपाल द्वारा उठाये गये अन्य मुदो पर भी प्रदेश सरकार गम्भीर है और इन्हें सुलझाने के लिए प्रयासरत है।
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