शिमला। जिला सोलन के नालागढ़ की लग पंचायत में मनरेगा व पंचायत स्तर पर कराए जाने वाले अन्य कामों में विभाग की ओर से कराई जांच में धांधलियों का खुलासा हुआ है। एक महिला को शिशु को जन्म देने के बाद नौवें दिन पर मस्ट्रोल पर दिहाड़ीदार बता दिया गया है। गांव के तीन लोगों ने साफ कर दिया गया है कि उन लोगों ने कोई काम नहीं किया और जो पैसे उनके खाते में आए उनको उन्होंने वापस प्रधान को लौटा दिया है। यही नहीं जून महीने में मस्ट्रोल 31 दिन का भरा है याद रहे जून महीना तीस ही दिनों का होता ।
यह सब खुलासा विभाग की खुद की जांच और आरटीआइ से मांगी दस्तावजों के जरिए सामने आया है। लेकिन मजे की बात है कि तीन महीने का अरसा पूरा होने के बाद भी जयराम सरकार ने इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की है।
खंड विकास अधिकारी कुनिहार ने एक शिकायत मिलने पर अपने कार्यालय के कनिष्ठ अभियंता, पंचायत निरीक्षक और समाज शिक्षा व खंड योजना अधिकारी की एक जांच समिति दिसंबर 2021 में गठित कर दी।
इस समिति को अपने बयान में गांव पांजल के मोहित कुमार ने कहा कि उसने जोहड़ का कभी भी काम नहीं किया है और उसे जोहड़ का निर्माण हो रहा है इसके बारे में भी कुछ जानकारी नहीं है। इसके अलावा उसके खाते में जो दिहाड़ी आई थी वह उसे उसने प्रधान को लौटा दिया।
इसी तरह उक्खू गांव की की महिला बिमलादेवी ने भी अपने बयान में कहा कि उसे सुण माध्यमिक स्कूल के खेल मैदन के निर्माण को लेकर कोई जानकारी नहीं है और न ही उसने कभी वहां पर काम किया है। उसके बैंक खाते में जो रकम आई थी उसे उसने प्रधान को लौटा दिया है। उसके पति बलबीर सिंह ने भी इसी तरह का बयान जांच समिति को दिया है कि उसने इस खेल के मैदान का कार्य कभी नहीं किया और जो पैसा उसके खाते में आया था उसे उसने प्रधान को लौटा दिया है।
यह सब बीडीओ नालागढ़ की ओर से गठित जांच समिति की रपट में सामने आा गया है । इस रपट को जनवरी महीने में जिला उपायुक्त सोलन को भेज दिया गया था।
इसके अलावा आरटीआइ के तहत ली गई जानकारी में सामने आया है कि एक महिला ने 21 जून 2021 को शिशु को जन्म दिया लेकिन मस्ट्रोल में 29 जून से पांच जुलाई 2021 तक उसकी हाजिरी लगाई गई है। इन दस्तावेजों को भी तमाम अधिकारियों के समक्ष पेश कर दिया गया है। अगर यह महिला सही है और मस्ट्रोल भी सही है तो यह प्रदेश की जयराम ठाकुर सरकार पर बहुत बड़ी टिप्पणी है कि किसी महिला को प्रसव के महज नौ दिन बाद मनरेगा में दिहाड़ी लगानी पड़ रही हो और वो भी 35 से 40 डिग्री सेल्स्यिस के तापमान में । यह जयराम सरकार की गरीबों व महिलाओं के लिए चलाई गई तमाम योजनाओं को ही कटघरे में खड़ी कर देती है। साथ ही पूरे मंत्रिमंडल को भी और नौकरशाहों की फौज को भी और पूरे सरकारी व सामाजिक तंत्र को भी ।
हालांकि उपप्रधान जांच समिति को साफ कह रहे है कि यह काम जेेसीबी से हुआ है।
यह जांच रपट जिला उपयुक्त सोलन, अतिरिक्त जिला उपायुक्त सोलन, जिला पंचायत अधिकारी सोलन, अतिरिक्त निदेशक पंचायती राज से लेकर प्रदेश सरकार में शीर्ष आइएएस अधिकारियों में दूसरे नंबर पर शुमार अतिरिक्त मुख्य सचिव पंचायती राज निशा सिंह तक के संज्ञान में ला दिया है। लेकिन हुआ कुछ नहीं है। जयराम सरकार में शासन किस तरह से चल रहा है यह इस मामले ने साफ कर दिया है।
महज इल्जामों पर कोई कार्यवाही करना तो वैसे भी बेमानी है लेकिन इस मामले में तो विभाग के खुद के अधिकारियों ने जांच कर के सौंपी है।
इन धांधलियों की आर एस ठाकुर नामक एक व्यक्ति ने शिकायत नवंबर 2021 में की थी। इसी के बाद बीडीओ नालागढ़ ने जांच समिति बिठाई थी व जनवरी महीने के पहले सप्ताह में बीडीओ को जांच समिति ने जांच रपट मुहैया करा दी थी। इस जांच समिति ने अपनी रपट में साफ किया कि पंचायत की ओर से मनरेगा के तहत कराए गए कामों को मनरेगा अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत किया गया पाया गया है। जो काम मजदूरों के जरिए होना था उसे जेसीबी मशीन के जरिए किया गया है। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मस्ट्रोल में मजदूरों की जाली हाजिरी लगाई पाई गई है। यही नहीं स्कूल के मैदान को वन विभाग की जमीन पर बनाया गया है जबकि जो राजस्व दस्तावेज बीडीओ कार्यालय को भेजे गए उसमें स्कूल की जमीन के ततीमा आदि लगाए गए है। इस रपट के साथ राजस्व अधिकारियों की ओर से कराई गई निशानदेही की रपट भी भेजी गई है। रपट में यह भी कहा गया है कि शिकायत सही पाई गई है। जांच रपट में प्रधान के बयानन का जिक्र भी है जिसमें प्रधान ने शिकायत कर्ता पर उसे फंसाने का इल्जाम लगाया गया है। अगर ऐसा है तो जांच समिति को अब तक नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था। लेकिन इस दिशा में भी कोई काम नहीं हुआ है। अन्यथा धांधलियों के लिए जिम्मेदार लोगों को तुरंत हटा दिया जाना चाहिए था लेकिन तीन महीने से ऐसा भी नहीं हुआ है।
असली खेल इस रपट के आने के बाद शुरू हुआ है। बताया जा रहा है कि राजनीतिक दबाव के चलते कार्यवाही नहीं हुई और अधिकारियों ने टिप्पणियां मांगने का खेल शुरू कर दिया। जबकि पृथम द्ष्टया सबूत सामने आ गए थे। बीडीओ ने इस जांच रपट को जनवरी महीने में ही जिला उपायुक्त सोलन को भेज दिया था। जिला पंचायत अधिकारी सोलन ने इस मसले में पर सात मार्च को बीडीओ से और टिप्पणियां मांग ली।
बीडीओ ने 21 मार्च को अपनी टिप्पणियां पंचायत अधिकारी को भेज दी व लिखा कि जून महीने का मस्ट्रोल 31 दिनों का भरा गया था व जबकि जून में 30 ही दिन होते है। बीडीओ ने इस चिटठी में लिखा है कि इन अनियमितताओं के लिए प्रधान , तकनीकी सहायक और वार्ड सदस्य जिममेदार है। 25 मार्च को संयुक्त निदेशक नीरज चांदला ने जिला उपायुक्त को चिटठी लिखी कि इस मामले में कार्यवाही की जाए और अगर जरूरी हो तो थाने में मामला भी दर्ज किया जाए।
इस बावत जिला उपयुक्त सोलन कृतिका कुल्हारी ने कहा कि उन्होंने इस मामले में बिदुवार टिप्पणियां मांगी हैं। लेकिन अभी फाइल उनके पास नहीं आई है। जिला पंचायत अधिकारी के पास होंगी। यह पूछे जाने पर की तीन महीने हो गए है। उन्होंने कहा कि टिप्पणियां मांगना उनके अधिकार क्षेत्र में है। हालांकि बीडीओ कार्यालय से कहा गया कि वह तीन बार टिप्पणियां भेज चुके है ।
जिला पंचायत अधिकारी सोलन रमेश चंद ने कहा कि रपट में कुछ त्रुटियां हैं। इसलिए उन्होंने बिंदुवार टिप्पणियां मांगी है। यह पूछे जाने पर कि रपट में फर्जी हाजिरी लगाने और खाते से पैसे वापस लौटाने का खुलासा तो हो ही गया है। क्या मस्ट्रोल पर फर्जी हाजिरी लगाना अपराध नहीं है। रमेश चंद ने कहा कि यह पैसे तो तब वापस किए गए जब शिकायत कर्ता ने शिकायत की। जाहिर है कि डीपीओ को भी अंदरखाते क्या हुआ यह सब पता है। उन्होंने कहा कि बीडीओ खुद भी एफआइआर दर्ज करवा सकता है। उन्होंने कहा कि शिकायत कर्ता की ओर से जो दस्तावेज दिए गए है कि बच्चे को जन्म देने के नौवें दिन बाद महिला की मस्ट्रोल पर हाजिरी लगा दी है। इस बावत जांच रपट में कुछ नहीं कहा है। ऐसे में यह सब चीजें मंगाई गई है।
यह पूछे जाने पर कि क्या जांच रपट फर्जी है अगर ऐसा है तो जांच करने वालों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई है। रमेश चंद ने कहा कि फर्जी तो नहीं कह सकते पर त्रुटियां जरूर है।
उधर, डीपीओ रमेश की ओर से 31 मार्च को बीडीओ को लिखी एक दिलचस्प चिटठी में सामने आई है जिसमें उन्होंने टिप्पणियां विभिन्न बिंदुओं पर टिप्णियां मांगी है। डीपीओ ने लिखा है कि जिन मजदूरों ने प्रधान को पैसे वापस किए है इस बावत कोई ठोस सबूत नहीं दिया गया है। डीपीओ ने एक जगह लिखा है कि जांच समिति के समक्ष उप प्रधान व वार्ड सदस्य ने काम के होने को जेसीबी के जरिए किया गया बताया गया है लेकिन मस्ट्रोल पर मजदूरों के दिहाड़ी व हस्ताक्षर है। इससे काम मजदूरों के जरिए होना प्रतीत हो रहा है। संभवत: डीपीओ यहां पर जांच रपट को ढीला करार देने की कोशिश में लग रहे है। जो सबूत पुलिस ने सामने लाने होते है उन सबूतों को वह बीडीओ की जांच समिति की ओर से सामले आने की अपेक्षा कर रहे है। जबकि यह सब तमाम सबूत पुलिस हिरासत में लेकर सामने आने है। इस दिलचस्प चिटठी की मंशा व इसका मजमून को तो विभाग के आला अधिकारी ही अच्छे से समझ सकते है । लेकिन इस पंचायत के तमाम काम जांच के दायरे में आ गए है और विशेष आडिट की मांग कर रहे है। लेकिन विभाग के अधिकारी तो अपने ही विभाग की जांच रपट को ढीला करने में लगे है। न जाने अब प्रदेश में अधिकारियों ने कितनी ऐसी रपटें ढीली की होंगी।
बहरहाल, यह तो विभाग की मुखिया निशा सिंह का देखना है कि उनके विभाग के अधिकारी अरुणा राय जैसी शख्सियत की ओर से बनाए गए मनरेगा अधिनियिम की शुचिता को कैसे बनाए रखते है या उसकी शुचिता को कैसे तार -तार कर दे रहे हैं। यह दीगर है कि प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी भी मनरेगा में भ्रष्टाचार को लेकर शुरू में सवाल उठा चुके है । वह मनरेगा को समाप्त करने की दिशा में ही आगे बढ़ने लग गए थे जबकि जरूरत मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की है।
राजनीतिक नेतृत्व से वैसे भी कम ही उम्मीद है।
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