शिमला। नशे के खिलाफ अभियान के नाम पर राजभवन से राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अपनी –अपनी दुकानें चला तो रहे है लेकिन इससे नशे पर प्रहार होता दिख नहीं रहा है। राज्यपाल नशे के खिलाफ अपने स्तर पर कभी ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों की बैठकें कर रहे है तो कभी सुक्खू एडवाइजरी बोर्ड का गठन और पुलिस एक्शन के जरिए प्रहार करने का आदेश दे कर अपनी डगडुग्गी बजाने में लगे है। लेकिन इससे जिस तरह का असर गांव- पंचायतों व परिवारों तक होना चाहिए था वो होता नजर नहीं आ रहा है।
आलम ये है कि प्रदेश में नशे की चपेट में आने वाले युवाओं का जो फीसद 2007-08 में दो से ढाई फीसद तक था वो आज 37 फीसद तक पहुंच गया है।ये आंकड़े स्वयं सेवी संस्थाओं के सर्वे में सामने आए हैं।
ऐसे में हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति ने नशे के खिलाफ अभियान को अंजाम देने के लिए मिशन मोड पर काम करने की काल् दी है और उम्मीद जाहिर की है कि राजभवन और सचिवालय दोनों समन्वित तौर पर काम करने के लिए एकजुट होंगे।
याद रहे राज्यपाल व मुख्यमंत्री के स्तर पर इसी तरह के ये अभियान पिछली सरकार में भी शुरू किए गए थे व उससे पिछले सरकार में भी कई तरह की कवायदों को अंजाम दिया जाता रहा था। लेकिन मनमाफिक परिणाम सामने नहीं आए हैं।
इस दिशा में पहल करते हुए बीते रोज हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति के एक प्रतिनिधिमंडल ने नशे के मसलों को सरकार के समक्ष उठाने का बीड़ा उठाते हुए एक पूरा खाका तैयार किया है। ज्ञान विज्ञान समिति की ओर से समिति के अध्यक्ष ओम प्रकाश भूरेटा,उपाध्यक्ष जीयानंद शर्मा सचिव सत्यावा पुंडीर और टाउन कमेटी के अध्यक्ष गोंविद चंतराटा शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर से मिल चुका व अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से मिल कर नशे के अभियान को मिशन मोड पर चलाने की मंशा जाहिर की है।
ज्ञान विज्ञान समिति का मानना है कि नशे के खिलाफ अभियान को अलग-अलग स्तर पर चला कर मनमाफिक परिणाम हासिल नहीं किए जा सकते। इसके लिए मुख्य सचिव के स्तर पर एक निगरानी प्रकोष्ठ गठित करने की जरूरत है जो प्रदेश में तमाम विभागों व संस्थाओं की ओर से नशे के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान की कारगार निगरानी करें।
समिति के सचिव सत्यवान पुंडीर ने कहा कि इस बावत समिति ने मुख्य मंत्री के सचिव राकेश कंवर से बात की है ताकि मुख्यमंत्री सुक्खविंदर सिंह सुक्खू से मिलकर एक समन्वित रणनीति तैयार कर नशे की समस्या पर प्रहार किया जा सके।
बहरहाल, अभी तक सरकारी अभियान विफल हो होते रहे है। जाहिर है जब तक इन अभियानों में राजनीतिक लाभ की मंशा को त्याग कर मिशन मोड पर नहीं चलाया जाएगा तब तक कहीं कुछ होने वाला नहीं हैं।इन अभियानों में जिन घरों के युवा नशे की चपेट में आ चुके है उन परिवारों को शामिल कर उनकी सक्रियता बढ़ाने की जरूरत है।
राजधानी शिमला में ही नशे के हॉट स्पॉट संजौली जैसे इलाकों को राज्यपाल और मुख्यमंत्री समेत किसी एक को गोद में लेकर एक समय सीमा के भीतर इन इलाकों को नशा मुक्त करने का अभियान छेड़ना होगा। इसके अलावा डीजीपी , मुख्य सचिव, बाकी मंत्रियों और विधायकों को भी ऐसे ही हॉट स्पॉटस को गोद में लेकर अभियान छेडना होगा। अगर ये तमाम शख्सियतें तय कर लें तो राजधानी शिमला को तीन महीने के भीतर ही नशा मुक्त कराना कोई मुश्किल काम नहीं है। इसके लिए इन शख्सियतों को इन इलाकों में अपनी ठसक को छोड़ कर समन्वय के साथ जाना पड़ेगा। राजभवन और सचिवालय में बैठ कर कुछ होने वाला नहीं है और एक दूसरे पर मीडिया में अपनी कुंठाओं का इजहार कर भी कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
इसके अलावा न्यायिक मशीनरी को भी इस अभियान में शामिल करने की जरूरत है।पुलिसिया एक्शन के तहत नशे के खिलाफ अभियान ‘जमानत का कारोबार’ बन गया है।यानी युवाओं के नशे के साथ पकड़े जाने पर उनके माता-पिता और बाकी अभिभावक हजारों की फीस देकर अपने बच्चों को जमानत पर जेल से छुड़ाने की जददोजहद में लगे हुए है।
पुलिसिया एक्शन एक तरह से कुछ लोगों के लिए एक कारोबार बन गया है। ऐसे में इस दिशा में सबसे ज्यादा काम करने की जरूरत है।ज्ञात रहे कि किशोरावस्था में किशोरों में एक तरह की हीनभावना पनपती ही है तो वो नशे की डोज से इन हीनभावना से पार पाने की कोशिश करते है और नशे की लत के शिकार हो जाते है। इसके लिए अगल स्तर पर काम करने की जरूरत है। काउसलिंग का एक पूरा ढांचा खड़ा करने की जरूरत है। इसके अलावा नशे की चपेट में आ चुके किशोरों और युवाओं को नशे की लत से बाहर निकालने के लिए कई कुछ करने की जरूरत है।
आइजीएमसी में ही नशा छुड़ाने के लिए केवल आठ बैड हैं जबकि जेलों में 12 सौ के करीब युवा नशे से जुड़े मामलों में बंद है। इनमें से अगर 50 फीसद को भी दोबारा से मुख्य धारा में जोड़ने के लिए काम करना हो तो प्रदेश में तो इसके लिए ढांचा ही नहीं है। ऐसे में राज्यपाल अपने स्तर पर राजभवन से और मुख्यमंत्री सचिवालय से अपने स्तर पर नशे के खिलाफ अभियान छेड़ते रहेंगे तो ये राजनीतिक लाभ के लिए चलाए जाने वाली दुकानों के अलावा कुछ नहीं होगा।इनसे परिणाम मिलने वाले नहीं है।समाज व प्रतिबद्ध स्वयं सेवी संस्थाओं के जरिए काम करने की जरूरत है।
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