शिमला। भारी शोरगुल और विपक्षी पार्टी के विरोध के बीच जयराम सरकार ने सदन में खेल विधेयक को वापस ले लिया। विधेयक वापसी का विरोध करते हुए कांग्रेस विधायकों ने कहा कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि नियमों को दरकिनार कर विधेयक को वापस लिया गया हो। कांग्रेस पार्टी की ओर से मुख्य सचेतक जगत सिंह नेगी और सदन में कांग्रे विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री ने नियमों का हवाला भी दिया। आशा कुमारी ने भी स्पीकर से व्यवस्था देने का आग्रह किया। स्पीकर ने कहा कि उन्होंने नियमों को देखने के बाद ही सरकार को इस विधयेक को वापस लेने की इजाजत दी है। सदन में इस मसले पर जमकर नारेबाजी हुई।
मुख्य सचेतक जगत सिंह नेगी ने सदन में कहा कि नियम 176 के तहत विधेयक वापस लेने से पहले सदन के सभी सदस्यों को समय रहते जानकारी देनी होती है। सरकार ने ऐसा नहीं किया है। ऐसे में नियमों के मुताबिक इस बिल को वापस लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि सभी सदस्यों को कम से कम एक दिन का नोटिस देने के बाद स्पीकर इस विल को वापस लेने की इजाजत दे सकते है।
पहली बार विधानसभा चुनकर पहुंचे विधायक विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि विधेयक को वापस लेने के पीछे खास खेल संघों को फायदा पहुंचाने की मंशा है। पिछली सरकार ने इस विधेयक को इसलिए पारित किया था ताकि खेल संघों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया हो और पारदर्शिता बरती जाए। उन्होंने जस्टिस लोढ़ा समिति की सिफारिशों का हवाला भी दिया व कहा कि इसे एचपीसीए के परिपेक्ष्य में ही देखने की जरूरत नहीं है। हालंकि उन्होंने एचपीसी को लगातार निशाने पर रखा व कहा कि सब जानते है कि एचपीसीए 2005 में सोसायटी भी थी व कंपनी भी थी। कंपनी के तहत यह हिमालयन प्लेयर्स क्रिकेट एसोसिएशन के नाम से थी। इसका कार्यालय कानुपर था। एचपीसीए को दी गई जमीने बाद में कंपनी को चली गई। इस मामले में निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमें लंबित है। मामला सब ज्यूडिशयस है।
विक्रमादित्य ने कहा कि सरकार इस विधेयक को वापस लेकर एचपीसीए राहत देना चाहती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता विद्या स्टोक्स को बगैर भरोसे में लिए हाकी इंडिया के चुनाव करा दिए गए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जितने भी खेल संघ है वह राजनीति के शिकार है। खेल संघों को राट्रीय व अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों के सुपुर्द कर इन्हें नेताओं के दखल से बाहर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एचपीसीए पर जमीन माफिया और खेल माफिया तक के इल्जाम लगे। जब एचपीसीए ने सेना के सुपुर्द अनाडेल मैदान को अपने कब्जे में लेने की होड़ मचाई तो तो तब के आमी ट्रेनिंग कमांड के प्रमुख ने टिप्पणी की थी भाजपा सरकार जमीन माऊिया की तरह काम कर रही है। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा कि कि प्रदेश सरकार रक्षा मंत्रालय के खिलाफ मानहानि कामुकदमा करेगी।
कांग्रेस विधायक राम लाल ने कहा कि खेल मंत्री कह रहे है वह हरियाण सरकार के खेल विधेयक की तरह इसे बनाएंगे। उन्होंने कहा कि उनके विधेयक के मुताबिक खेल परिषद का प्रावधान है व उसमें चार चार मंत्री है। बाकि सदस्यों को भी सरकार नामित करती है। उन्होंने कहा एचपीसीए को प्राइम लैंड दी गई है वह उन्होंने कंपनी के नाम कर दी। वह भी बिना बिना अनुमति के। रामलाल ने कहा कि दिल्ली में एक मंत्री है व कुछ नेता कांग्रेस के भी है जिनकी खेल संघों पर कब्जा करने की मिलीभगत है। उन्होनें कहा कि इस विधेयक को वापस न लिया जाए। भाजपा के राकेश पठानिया ने कहा कि जो नया विधेयक विधयेक लाया जाएगा उसमें ये सब प्रावधान किए जाए। कांग्रेस विधायक आशा कुमारी ने व्यवस्था का प्रश्न उठाया व कहा कि नियम 30 के तहत यह अनिवार्य है कि विधेयक क्यों वापस लिया जा रहे उसके बारे में सदन को अवगत कराया जाए। विधेयक लागू ही नहीं हुआ है ऐसे में जल्दी क्या है। मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि पहले इसपर व्यवस्था दें।
स्पीकर ने नियमों का हवाला देकर कहा कि वह नियमों के सब कुछ कर रहे है। उन्होंने खेल मंत्री को विधयेक वापस लेने की इजाजत दे दी। तो कांग्रेस विधायकों ने शोरगुल करना शुरू कर दिया और सदन में जमकर नारेबाजी की। इस शोरगुल व नारेबाजी के बीच खेलमंत्री गोबिंद ठाकुर ने विधेयक को वापस ले लिया। गौर हो कि खेल विधेयक को अप्रैल 2015 में पिछल्ली वीरभद्र सिंह सरकार में पारित किया गया था लेकिन राज्यपाल ने इस पर दस्तख्त नहीं किए व यह राजभवन में ही फाइलों में दफन
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