शिमला। देश के शीर्ष उद्योगपति गौतम अदानी समूह की ओर से जल विद्युत परियोजना हासिल कर लेने वाली विदेशी कंपनी की तरफ अपफ्रंट मनी के अदा किए 280 करोड़ रुपए पर दावा जताने के मामले में दो महीने पहले सता में आई जयराम सरकार नजर डालने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाई हैं। नियम-कायदों के मुताबिक यह 280 करोड़ रुपया कभी का जब्त होकर सरकार के खजाने में चला जाना चाहिए था। लेकिन पूर्व की कांग्रेस व भाजपा सरकारों में ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश के नौकरशाहों की ओर से फंसाए गए पेंच में अब पहली बार मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर फंस गए हैं। आलम यह है कि वह इस मामले में नजर डालने से भी कतरा रहे है। मुख्यमंत्री ही नहीं उनके बिजली मंत्री अनिल शर्मा भी इस मामले से आंखे चुरा लेना चाहते है।
जबकि विधानसभा चुनावों से पहले हिसाब मांगे हिमाचल अभियान के तहत भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सबिंत पात्रा ने राजधानी में वीरभद्र सरकार के भ्रष्टाचार की फेहरिस्त मीडिया को जारी की थी। उसमें भी इस मामले का जिक्र हुआ हैं।
कबायली जिला किन्नौर के नौ हजार करोड़ की 960 मेगावाट के जल विद्युत जंगी थोपन परियोजना से जुड़ा ये विवादित मामला पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार से शुरू हुआ और बाद में सता में आई भाजपा की प्रेमकुमार धूमल सरकार में परवान चढ़ता गया व उसके बाद फिर सता में आई कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार में फेवर देने के तमाम रिकार्ड तोड़ गया।
2006 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार के समय जिला किन्नौर में 960 मेगावाट के जंगी थोपन जल विद्युत परियोजना को नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को आवंटित किया गया। इस परियोजना को बोली लगाने वाली दूसरी कंपनी देश के शीर्ष उदयोगपतियों में शुमार अंबानी समूह की रिलायंस इंफ्रास्ट्रकचर लिमिटेड बोली में दूसरे स्थान पर रही थी। ब्रेकल कंपनी को परियोजना आवंटित हो जाने के बाद यह कंपनी निर्धारित समय के भीतर अपफ्रंट मनी जमा नहीं करा पाई। इस पर बोली में दूसरे स्थान पर रही रिलायंस इंफ्रांस्स्ट्रक्चर लिमिटेड ने प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। अदालत ने नोटिस जारी किए तो ब्रेकल कारपोरशन ने अदानी सूमह की कंपनियों से कर्ज लेकर यह 280 करोड़ रुपए जमा करा दिया। अब प्रदेश की सता से कांग्रेस की वीरभद्र सिंह सरकार बेदखल हो चुकी थी और भाजपा की प्रेम कुमार धूमल सरकार सतासीन हो चुकी थी। धूमल सरकार ने इस मामले की विजीलेंस जांच कराई तो जांच में सामने आया कि ब्रेकल ने यह परियोजना चार सौ बीसी करके हासिल की है और अपफ्रंट मनी के इस पैसे में से 60 करोड़ खाता नंबर एसबीटीआरएफ08029300033आर से, 59 करोड़ के करीब गगन रियलटी प्राइवेट कंपनी से और 55 करोड मीडिया डाटा प्रो में से आया था। जांच में पाया गया था कि ये सब कंपनियां अदानी समूह की है । एक चिटठी में ब्रेकल ने लिखा कि वह इस कर्ज को इक्विटी पार्टिसिपेशन में बदल देगा। अदानी समूह की कंपनियां कभी भी ब्रेकल कारपोरशन एनवी के कंसोरटियम में शुमार नहीं रही। बेशक उसने कंसोरटियम में शामिल होने के लिए अर्जी दे रखी थी लेकिन इस अर्जी पर आज तक फैसला नहीं हुआ हैं।
धूमल सरकार में यह सब खुलासा हो जाने के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में पांच शीर्ष आईएएस अफसरों की एक समिति गठित की गई व गौर करने के लिए इस मसले को समिति की सुपुर्द किया गया। नौकरशाहों ने चौंकाने वाली सिफारिश दी कि इस समय इस परियोजना को ब्रेकल कारपोरेशन के पास ही रहने देना चाहिए।
समिति की कई बैठकें हुई । इनमें से एक बैठक में अदानी समूह कंपनी के प्रतिनिधियों ने भी शिरकत की थी। इस शिरकत पर हाईकोर्ट ने हैरानी जातई थी। आखिर में धूमल सरकार ने नौकरशाहों की समिति की सिफारिशों को मंजूर कर लिया और आवंटन रदद करने के बजाय परियोजना को ब्रेकल कारपोरेशन के पास ही रहने दिया।
इस बीच विजीलेंस की रिपोर्ट जिसमें ब्रेकल की ओर से की गई चार सौ बीसी का खुलासा हुआ था वह रिकार्ड पर आ चुकी थी। धूमल सरकार के फैसले से आहत रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने प्रदेश हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दे दी। हाईकोर्ट ने सात अक्तूबर 2009 को इस आवंटन को रदद कर दिया व तीखी टिप्पणियां भी की। उधर, विजीलेंस ने ब्रेकल कारपोरशन के खिलाफ चार सौ बीसी को लेकर नियमित एफआईआर दर्ज करने की सरकार से मंजूरी मांग ली। यहां भी नौकरशाहों ने अपना कमाल दिखाया और विजीलेंस की अर्जी को गृह विभाग ने बिजली विभाग को टिप्पणी को भेज दिया। बिजली विभाग ने ऊर्जा निदेशालय को और ऊर्जा निदेशालय ने विधि विभाग को भेज दिया।
इस फैसले को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और ब्रेकल कारपोरेशन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। ऐसे में विवि विभाग ने राय दी कि चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है,इसलिए नियमित एफआईआर दर्ज करने के फसले को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आने तक टाल दिया जाए।
प्रदेश में दिसंबर 2012 में धूमल सरकार को जनता ने सता से बेदखल कर दिया व वीरभद्र सरकार दोबारा सतासीन हुई। सुप्रीम कोर्ट में ब्रेकल कारपोरेशन की ओर से दायर याचिका में अदानी समूह की कंपनी अदानी पावर ने अर्जी दायर की कि अपफ्रंट मनी का 280 करोड़ रुपया उसने जमा कराया है व यह उसे लौटाया जाए। यहां पर सरकार ने स्टैंड लिया कि उसका अदानी समूह की कंपनी से कोई लेना देना नहीं हैं व कहा कि ब्रेकल कारपोरेशन को हर्जाने के रूप में 2713 करोड़ रुपए का नोटिस भेजा गया है।
ब्रेकल कारपोरशन को हर्जाने का नोटिस भेजने के बाद ब्रेकल कारपोरेशन ने अपनी याचिका वापस ले । ऐसे में अदानी समूह की अर्जी भ्ी समाप्त हो गई।
इसके बाद अदानी समूह की कंपनी की ओर से वीरभद्र सिंह सरकार को दर्जनों अर्जियां दी गई व इस पैसे को लौटाने का आग्रह किया गया। सितंबर 2015 में आय से अधिक मामलों में वीरभद्र सिंह के ठिकानों पर सीबीआई छापों से पहले वीरभद्र सिंह सरकार ने अदानी सूमह को ये 280 करोड़ लौटाने,960 मेगावाट की जंगी थोपन विद्युत परियोजना रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को आवंटित करने और ब्रेकल कारपोरशन को हर्जाने की बावत भेजे 2713 करोड़ रुपए के नोटिस को रदद करने जैसे विवादित फैसले ले लिए।
इन फैसलों के बाद रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका जुलाई 2016 वापस ले ली लेकिन बाद में इस परियोजना को लेने से इंकार कर दिया।
उधर,सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस हो जाने के बाद विजीलेंस ने ब्रेकल कारपोरेशन के खिलाफ चार सौ बीसी की नियमित एफआईआर दर्ज करने बावत अगस्त 2016 में दोबारा सरकार को याद दिलाई। इसके बाद मई 2017 में भी सरकार को चिटठी लिखी गई। लेकिन यह एफआईआर आज तक दर्ज नहीं हुई है। जयराम ठाकुर सरकार में भी इस बावत अभी कुछ नहीं हुआ है।
इस बीच 2017 में प्रदेश में विधानसभा चुनाव आ गए व चुनावों के दौरान वीरभद्र सिंह सरकार ने फैसला लिया कि अदानी समूह को अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ लौटाने के 2015 के फैसले को निरस्त किया जाता है। वीरभद्र सिंह और उनके नौकरशाहों को अंदेशा था कि सता बदलने पर धूमल मुख्यमंत्री बनेंगे तो उन्हें यह पेंच फंसा कर रखते हैं। लेकिन सता बदलने पर मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर। अब वह इस जाल में फंस गए हैं।
उन्होंने आज मीडिया से कहा कि इस मामले में सरकार ने अभी तक नजर नहीं दौड़ाई हैं। उन्होंने माना की 280 करोड़ रुपए लौटाने का मेमो पिछल्ली सरकार में मंजूर हुआ व बाद में निरस्त भी हुआ। इस मामले में कानूनन जो भी होगा,फैसला लिया जाएगा।
इससे पहले बीते रोज जनसता से बिजली मंत्री अनिल शर्मा ने कहा था कि इस 280 करोड़ रुपए को जब्त नहीं किया गया है। अभी तक तो फाइल भी उनके पास नहीं आई है।
कैग ने भी जवाब मांगे
इस मामले में कैग ने भी सरकार से जवाब मांगे हैं। कैग ने जवाब चाहा है कि जब प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट व इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट में यह साफ है कि अगर निर्धारित समय में अप फ्रंट मनी जमा नहीं कराया गया तो इसे जब्त कर आवंटन को रदद कर दिया जाएगा। ऐसा क्यों नहीं किया गया। इसके अलावा ब्रेकल कारपोरेशन को 2713 करोड़ रुपए के हर्जाने के नोटिस को रदद करने पर भी सवाल उठाया गया है। कैग ने सरकार से पूछा था कि क्या यह सरकार के खजाने को 2993 करोड़ रुपए की चपत नहीं हैं।
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