शिमला। 1998 से 2003 के बीच सता में रही पूर्व धूमल सरकार के वक्त जिस अवैध कब्जों के जिन्न को तत्कालीन राज्ास्व मंत्री राजन सुशांत ने बाहर निकाला था ,उसने वीरभद्र की कांग्रेस सरकार व सता में आने का सपना देख रही बीजेपी के दोगले चेहरों को बेनकाब कर के रख दिया हैं। वीरभद्र सिंह सरकार जहां अदालत में चुनावी साल में एक के बाद एक करके शपथपत्र देने पर उतारू हो गई हैं, वहीं 2007 से लेकर 2012 तक सता में रही बीजेपी उस समय की अपने करतूतों का बखान नहीं कर पा रही हैं। कांग्रेस सरकार ने पिछले चार साल में इस मामले में कुछ नहीं किया तो बीजेपी जब सता
बहरहाल चुनावी साल में जिस तरह से कांग्रेस सरकार ने जनता को ‘गोली’ देने के लिए मंत्री कौल सिंह की कमान में हाइ पावर कमेटी बना दी हैं उसी तरह बीजेपी ने भी अपने पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा को मैदान में उतार दिया हैं। बरागटा वरिष्ठ मंत्री हैं लेकिन वो प्रासंगिक सवालों का जवाब देने में जूनियर नेताओं की तरह रवैया अपनाते हैं।
अवैध कब्जों पर वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से हाई पांवर कमेटी को उन्होंने हाई पॉलिटिक्ल कमेटी और हाई ड्रामा कमेटी करार देते हुए कहा अवैध कब्जों पर विचार करने के लिए 20 दिसंबर 2016 को हाइ पावर कमेटी के गठन को लेकर को जो अधिसूचना जारी की हैं उसमें टर्म ऑफ रेफरेंस ही नहीं हैं।केवल ये लिखा है कि ये कमेटी अवैध कब्जों के मामलों का आकलन व समीक्षा करेगी। बरागटा ने सवाल उठाया कि क्या ये कमेटी हाईकोर्ट में ये रिपोर्ट देगी की कि सरकार ने इतने अवैध कब्जों को हटाया व इतने हटाए जाएंगे।
याद रहे हैं कि बरागटा के विधानसभा हलके जुब्बल कोटखाई में बहुत से बागवानों के पेड़ उखाड़ दिए गए व चुनावों में उनसे लोग जवाब तो पूछेंगे ही ।
बहरहाल बरागटा ने इस कमेटी के गठन को लेकर वीरभ्ाद्र सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए व ये जतलाने का प्रयास किया कि बीजेपी की वजह से सरकार ऐसा करने पर मजबूर हुई हैं। उन्होंने अजीब दावा किया कि नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने रामपुर में कहा था कि बीजेपी सता में आएगी तो छोटे व मझोले किसानों के अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए नीति लाएगी।
इसके अलावा धर्मशाला के विधानसभा सत्र में भाजपा सदस्य अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए प्रस्ताव लाए थे।उन्होंने दावा किया कि इस प्रस्ताव पर कांग्रेस के एक भी विधायक व सीपीएस ने प्रस्ताव के हक में जुबान नहीं खोली । ये प्रस्ताव पास हो गया था। इसके अलावा चुनावों की आहट सरकार को सुनाई दे रही हैं इसलिए दबाव में इस कमेटी का गठन किया गया हैैं।
बरागटा के वीरभद्र सिंह सरकार से सवाल
बरागटा ने अवैध कब्जों पर पिछले महीने जागी वीरभद्र सिंह सरकार से चंद सवाल पूछ डाले हैं। उन्होंने कहा बीजेपी सरकार 2002 में इन कब्जों को नियमित करने के लिए नीति लाई थी उसे पूनम गुप्ता नामक महिला नेचुनौतीदे दी व स्टेमिल गया। इसके अलावा रोहड़े के कृष्ण चंद सारटा ने हाईकोर्ट में अवैध कब्जों को हटाने के लिए याचिका दायर कर दी । बरागटा ने दावा किया कि दोनों ही कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं।ऐसे में कांग्रेस सरकार जवा बदे कि अवैध कब्जों के मामले को लेकर अदालत में कांग्रेसी कार्यकर्ता ही क्यों जाते हैं।
उन्होंने सवाल उठाया कि कांग्रेस सरकार पिछले इतने सालों से बीजेपी की इस नीति पर लगे स्टे को क्योंं नहीं हटवा पाई।अगरनीति गलत थी तो उसे रदद क्यों नहीं किया गया ।
बरागटा ने बड़ा सवाल ये भी उठाया कि हाईकोर्ट के आदेशों पर छोटे व मझौले किसानों को क्यों उजाड़ा गया।केवल उन्हीं के पेड़ क्यों काटे गए।
उन्होंंने कहा कि हाईकोर्ट ने 6 अप्रैल 2015 को आदेश दिए थे कि छह महीनों के भीतर प्रदेश भर के सारे अवैध कब्जों को हटा दिया जाए। उन्होंने सवाल उठाया कि वीरभद्र सरकार ने तब से लेकर अब तक इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की बड़ी बैंच या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती क्यों नहीं दी।
7 सितंबर 2015 को इस मसले पर सरकार ने अतिरिक्त मुख्य सचिव वन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। क्या वीरभद्र सिंह सरकार ने इस समिति की सिफारिशों को नई हाई पावर कमेटी के समक्ष रखा हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर सीधा हमला बोला व कहा कि वो बयानबाजी करते हैं कि किसी को बख्शेंगे नहीं लेकिन डीएफओ का तबादला कर देते है व अदालत को दखल देना पड़ता हैं।
उन्होंने कहा कि जिन बागवानों के पेड़ कटे हैं व हाईकोर्ट में याचिका लेकर गए कि उन पर रहम किया जाए लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार उनके साथ खड़ी नहीं हुई।अदालत में इस तरह की कई याचिकाएं दाखिल हुई हैैं।
उन्होंंने कहा कि 28 फरवरी को इस मामले की सुनवाई अदालत में होनी हैं। जहां पर सरकार को अनुपालना रिपोर्ट पेश करनी हैैं।उन्होंने कहा कि सरकार वहां क्या रिपोर्ट पेश करने जा रही हैैं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस में वीरभद्र इतने कमजोर नहीं हैं कि वो इतने महत्वपूर्ण मसले पर गठित इस कमेटी का चेयरमैन कौल सिंह को बना दें। उन्होंने वीरभद्र सिंह को कटघरे में खड़ा किया कि उनकी मंशा सही नहीं हैं अन्यथा वो गठित केमटी को इस बारे जारी अधिसूचना में टर्म ऑफ रेफरेंस का भी जिक्र कर देते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि अगर कौल सिंह इस मामले को अदालत मे सुलझा जाते हैं तो इसका क्रेडिट वीरभद्र सिंह को नहीं मिलेगा। संभवत: बरागटा के कहने की मंशा ये है कि मुख्यमंत्री इस मामले में अंदरखाते कुछ नहीं होने देना चाहते।
उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह सरकार ड्रामा कर रही हैं।ये राजनीतिक स्टंट हैं।सरकार लोगों को गुमराह कर रही हैैं ।
जब धूमल सरकार के कारनामें पर बंद हो गई बरागटा की जुबान-:
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल कर लाडले नरेंद्र बरागटा इस बात का कोई जवाब नहीं दे पाए कि इस मसले पर 2007 से 2012 तक सता में रही धूमल सरकार ने क्या किया। उन्होंने अजीब जवाब दिया कि 2003 में इस मसले पर लोगों ने भाजपा कोहरा कर रिजेक्ट कर दिया था।धूमल की 2007 से 2012 तक सता में रही सरकार ने क्या किया इस पर तल्खी से बोले इस बारे में वो कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। ऐसे में बड़ा सवाल यही हैं कि अगर वीरभद्र सिंह सरकार इस मसले पर लोगों को गुमराह कर रही हैं तो भाजपा भी क्या इस मसले पर राजनीतिक रोटियां नहीं सेंक रही हैं।बरागटा ने कहा कि बीजेपी सरकार सता में आ रही हैं व वो छोटे व मझोले किसानों केे कब्जों को निसमित करेगी। बीजेपी ने 2003 के चुनावोंं में भी ऐसा ही कहा था। 2007 से 2012 तक पांच सालों तक कुछ नहीं किया। अब दोबारा मैदान में उतर गई हैं।
बीजेपी की ओर पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता ने राजेंद्र डोगरा ने सरकार की ओर से हाईकोर्ट में अक्तूबर 2016 में दायर जवाब का हवाला देकर कहा कि सरकार ने दस हजार से ज्यादा छोटे व मझौले किसानों के अवैध कब्जों के मामले अदालत में पहुंचा दिए हैं। जबकि 10 बीघा से ज्यादा के केवल 418 मामले ही अदालतों में गए हैं। डोगरा ने कहा कि अवैध कब्जों की 2519एफआई आर दर्ज हुई हैं। सबसे ज्यादा मामले जिला शिमला व कुल्लू के अदालतोंं में गए हैैं।
नोट- नीचे दो पृष्ठों को फोटोशॉप कर जोड़ा गया हैैं ताकि प्रासंगिक हिस्सेे को यहां पेश किया जा सके।
ये रहा इन मामलोंं का लेखा जोखा-:
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