शिमला। रेता, रोड़ी, बजरी और पत्थरों के ट्रांजिट पास के बिना लोक निर्माण विभाग में जमा कराए गए करीब ढाई सौ करोड़ रुपए के लबिंत बिल प्रदेश हाईकोर्ट के आदेशों के बाद जांच के घेरे में आ गए हैं। अदालत केआदेशों के बाद जयराम सरकार को इन बिलों की छानबीन करने और इस सामाग्री के वैध स्रोत का पता लगाने के लिए लोक निर्माण विभाग और उदयोग विभाग को समितियां गठित करनी पड़ रही है।
बहरहाल उच्च न्यायालय ने सरकार को दो महीने के भीतर इस तमाम मामले की जांच को पूरी करने के आदेश दिए है व जिनके बिल के साथ इस सामाग्री की ट्रांजिट पास सही पाए जाते है या इस सामाग्री के वैध स्रोत सही पाया जाता है उन ठेकेदारों का भुगतान करने और जिनके पास व स्रोत सही नहीं पाए जाएंगे उनके खिलााफ कानून के मुताबिक कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए है।
अब जयराम पसोपेश में है कि वह इस झमेले से कैसे बाहर आएं। चूंकि मामला ढाई सौ करोड़ रुपए के करीब के बिलों का हैं और दर्जनों ठेकेदारों का भुगतान रुका हुआ है।
प्रदेश हाईकोर्ट ने पांच जनवरी को अपने फैसले में कहा था कि प्रदेश के लोक निर्माण विभाग ने चंद ठेकेदारों को इस सामाग्री के परिवहन व आपूर्ति की इजाजत तो दे दी लेकिन विभाग यह निश्चित करना भूल गया कि इस सामाग्री के स्रोत वैध है या नहीं। न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि इस सामाग्री को लेकर जयराम सरकार ने हिमाचल प्रदेश लघु खनिज (रियायत) और खनिज (अवैध खनन, परिवहन और भंडारण की रोकथाम) नियम, 2015 को ताक पर रख दिया।
न्यायमूर्ति त्रिलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की डबल बेंच ने उन बिलों के भुगतान पर जिनके साथ इस सामाग्री के ढुलाई को लेकर फार्म डब्ल्यू और फार्म एक्स के रूप में ट्रांजिट पास जमा नहीं थे , के भुगतान पर 16 जुलाई 2020 को रोक लगा दी थी व दिलचस्प तौर लोक निर्माण विभाग ने ही इस रोक को हटाने के लिए अदालत में अर्जी दायर की थी। लेकिन अदालत ने इस सामाग्री की ढ़लाई पास व वैध स्रोत के बिना इन बिलों के भुगतान करने की विभााग की अर्जी मानने से इंकार कर दिया।याद रहे लोक निर्माण महकमा का जिम्मा सीधे मुख्यमंत्री के अधीन है और प्रदेश में रेत, बजरी माफिया के इल्जाम नए नहीं हैं।
नूरपुर के एक दिलजीत सिंह पठानिया नामक एक शख्स ने अपनी याचिका में कहा था कि प्रदेश में सड़कों, भवनों, बिजली परियोजनाओं समेत तमाम तरह की गतिविधियां निजी ठेकेदारों और कंपनियों की ओर से अमल में लाई जा रही है। इनमें से यह ठेकेदार व कंपनियां अवैध तरीके से खनन करके और रेत , बजरी, पत्थरों जैसे खनिजों की आपूर्ति सरकार को करते है । लेकिन सरकार को जो बिल जमा किए जाते है उनमें इस सामाग्री के वैध स्रोत क जिक्र नहीं किया जाता है। दूसरी ओर राज्य के विभाग भी बिना इन सामाग्रियों के वैध स्रोतों और ट्रांजिट पास व खनन को लेकर कुछ नहीं पूछता है। जो कि 2015 के नियमों के मुताबिक अनिवार्य हैं।
सरकारी विभाग ढोयी गई सामाग्री की एवज में ठेकेदार की ओर से जमा कराई गई रायल्टी की वसूली तो करती है लेकिन यह कभी नहीं पूछा जाता कि इस सामाग्री का वैध स्रोत क्या है। जबकि इस बावत 2010 में ही प्रदेश हाईकोर्ट ने अपना फैसला दिया हुआ है।
याचिका कर्ता ने अपनी याचिका में इल्जाम लगाया है कि ठेकेदार अवैध तौर पर खनन कर निकाली गई इस सामाग्री को सस्ते में खरीदते हैं और सरकार को महंगे में बेच कर मोटी कमाई करते है जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान होता है।
अदालत ने अपने फैसले में साफ किया कि प्रदेश में इन तमाम खनिजों को बिना ट्रांजिट पास लाया – ले जाया नहीं जा सकेगा।
अगर यह सामाग्री बाहरी राज्यों से लाई जाती है तो 2015 के नियमों का हर कीमत पर पालन किया जाना चाहिए। अगर यह सामाग्री कार्यस्थल पर ही निकलती है और उसका वहीं पर इस्तेमाल भी हो जाना है तो संबंधित अधिकारी नियम 33 और नियम 15 के तमाम उपबधों का पालन इस सामाग्री के इस्तेमाल करने से पहले सुनिश्चित करेंगे औरसरकार के खजाने के लिए रायल्टी वसूलेंगे।
अगर किसी अधिकारी को इस सामाग्री की ढुलाई के दौरान नियमों की अवहेलना का पता चलता है तो उसे 2015 के नियमों के मुताबिक तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए। इसके अलावा अधिकारी की जिम्मदारी व जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए।
अदालत ने साफ किया कि प्रदेश सरकार को कोई भी विभाग किसी भी ठेकेदार को बिना ट्रांजिट पास के जमा कराए गए बिल का भुगतान नहीं करेगा। खंडपीठ ने साथ ही कहा कि जो बिल विभागों के पास लंबित है उनके निप्टारे के लिए लोक निर्माण विभाग उदयोग विभाग से सलाह करके इन सामाग्रियों के परिवहन और वैध स्रोत को लेकर जांच करेगा । इस जांच के लिए प्रधान सचिव लोक निर्माण व उदयोग विभाग को अपने विभाग के दो -दो अधिकारियों को एक सप्ताह के भीतर नामित करना होगा । इस जांच में संबंधित ठेकेदार को भी शामिल करने के निर्देश दिए गए हैं। अगर जांच अधिकारी ढोयी गई इस सामाग्री के वैध स्रोत को लेकर संतुष्ट हो गए हैं तो उनके बिलों का भुगतान किया जा सकता है अन्यथा कानून के मुताबिक कार्यवाही करनी होगी।
इस बावत लोक निर्माग्ण विभाग की इंजीनियर -इन -चीफ अर्चना ठाकुर ने कहा कि अगले दो दिनों के भीतर समिति का गठन कर दिया जाएगा।
याद रहे धर्मशाला में शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक आशाकुमारी ने इस मसले को उठाया था व अब वापमंथी विधायक राकेश सिंघा ने भी इस मसले को उठाकर जयराम सरकार से इस मामले में वन टाइम सेटलमेंट करने का आग्रह किया है।
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