अर्की। परंपराएं प्रतिभा को जन्म देती हैं और प्रतिभाएं परंपराओं की नींव रखती हैं। संस्कृति और परंपराओं पर अगर नेतागिरी व बाजारू ताकतें हावी हो जाए तो यही संस्कृति व परंपराएं समाज का अहित करना शुरू कर देती ।
जिला सोलन के अर्की में मनाए जाने वाले सायर मेले के साथ कुछ इसी तरह का हो रहा हैं। पिछले लंबे अरसे से इस मेले पर भाजपा व कांग्रेस पार्टी की गुटबाजी व राजनीति हावी हो गई हैं। पब्लिक के इस मेले को इन दोनों पार्टियों के नेताओं ने खुद को स्थानीय राजनीतिक पटल पर उभारने का जरिया बना डाला हैं। बहरहाल,सरकार ने इस मेले को जिला स्तरीय घोषित कर दिया। लेकिन पार्टियों की गुटबाजी ने इसे बदरंग करना शुरू कर दिया।स्थानीय लोगों का कहना है कि अब मेले का स्तर घट गया हैं।
आलम ये है कि इस बार इस मेले में मुख्य अतिथि बनने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ।मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जिनका नाम अर्की से विधानसभा हलके से चुनाव लड़ने के आगे किया जा रहा हैं,वो मेले में मुख्य अतिथि बनने से मुकर गए। हालांकि समझा जा रहा था कि वो मेले में आने के लिए
नगर पंचायत अर्की की अध्यक्षा सावित्री गुप्ता व बाकी स्थानीय नेता बीते रोज राजधानी शिमला में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को मेले में बतौर मुख्य अतिथि बनने का न्यौता देने गए थे लेकिन उन्होंने आने से इंकार कर दिया। ऐसे में बीस सूत्रीय कार्यक्रम के अध्यक्ष रामलाल ठाकुर को मुख्य अतिथि बनाने का इंतजाम किया गया । मेले के दूसरे दिन डीसी सोलन राकेश कवंर मुख्य अतिथि होंगे।
इस मेले का मुख्य आकर्षण झोटो की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के कारण पहले ही बंद हो गई। लोगों यहां झोटों की लड़ाई देखने की दूर-दूर से आते थे। लेकिन अब ये आकर्षण भी खत्म हो गया हैं। कायदे से तो होना ये चाहिए था कि मेले का आकर्षण बनाए रखने के लिए कुछ बेहतर चीजें की जाती । जिस तरह से कुल्लू के दशहरा मेले में दस हजार कलाकारों को एक जगह एकत्रित कर नृत्य किया व इसे गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में शामिल कराया ।अब ये नृत्य दशहरा उत्सव के मुख्य आकर्षणों में से एक हैं। अर्की में भी कुछ ऐसा ही कुछ किया जा सकता था। बहरहाल ऐसा कुछ नहीं हुआ।
स्थानीय लोगों की माने तो प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार होती हैं तो मेला कमेटी में कांग्रेस लोगों का दबदबा हो जाता हैं।इसी तरह जब भाजपा की सरकार हो तो भाजपा के लोग अपने तरीके से इंतजाम करते हैं।
जेपी कंपनी व अंबुजा जैसे कारपोरेट घरानों से फंडिंग आनी शुरू हो गई तो। स्थानीय निवासी ष्याम प्रकाश गुपता ने कहा कि अब ‘शो ऑफ’ज्यादा हो गया हैं। पहले न्यूट्रीलिटी होती थी।वो टिप्पणी करते हैं कि राजनीति,कारपोरेट घरानों ने हमारी संस्कृति व परपंराओं पर कब्जा करना शुरू कर दिया हैं।
गिरधारी लाल शर्मा ने कहा कि मेले में राजनीति को शामिल नहीं किया जाना चाहिए। कारपोरेट फंडिंग को लेकर वो कहते है कि बिना पैसे के तो कुछ नहीं होता।
कांग्रेस नेता व नोटिफाइड एरिया कमेटी के अध्यक्ष रहे सतीश कुमार कहते है कि ये सच है कि अब कांग्रेस व भाजपा ने मेला बांटना शुरू कर दिया हैं।पहले ऐसा नहीं होता था। पहले पैसे कम थे, लेकिन मेला अपना था। अब पैसे ज्यादा आ गया हैं लेकिन ‘शो ऑफ’ ज्यादा हो गया हैं।हालांकि राजनीतिक लोग ही सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं । लेकिन अब अपने अपने ग्रुप बन गए हैं।
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