शिमला। वीरभद्र सरकार पर प्रदेश भर में अनियमित भवनों को रेगुलर करने के लिए टीसीपी एक्ट में किए संशोधन को आम भवन मालिकों से पैसा वसूलने का जरिया बनाने जैसा संगीन इल्जाम लग गया हैं। यही नहीं ये भी इल्जाम लग गया है कि जिन भवन मालिकों के मकान40 .50 साल पहले बन गए हैं उनके भवनों के सेफ्टी सर्टिफिकेट को भी पैसा उगाही का जरिया करार दिया हैं।
भवन नियमितिकरण के मसले पर बनी उप नगरीय जन कल्यायण समन्वय समिति ने वीरभद्र सरकार पर सीधा हमला करते हुए कहा कि टीसीपी एक्ट में ये संशोधन बिल्डर माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया हैं। इससे आम भवन मालिकों को कोई लाभ नहीं होने वाला हैं। यही नहीं प्रदेश के हजारों भवन मालिकों को तो ये ही मालूम नहीं हैं कि उनका क्षेत्र भी टीसीपी एक्ट की जद में हैं। इन इलाकों में सरेआम कई .कई मंजिलें मकान बन रहे हैं और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं हैं। समिति के अध्यक्ष चंद्रपाल मेहताएमहासचिव गोविंद चतरांटाएउपाध्यक्ष कंवर भूपेंद्र सिंहएकृषण गोपाल ठाकुरएएनसी शर्मा व शिमला नागरिक सभा के कोषाध्यक्ष जीयानंद ने साझा संवाददाता सम्मेलन में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा पर जमकर हमला बोला व कहा कि जिन लोगों के मकान नियमित होने थे उनसे कभी बातचीत ही नहीं की गई।
समिमि ने कहा कि इस समस्या का समाधन वन टाइम सेटलमेंट था व इस अवधि में निर्माण पर रोक लग जानी चाहिए थी।जो भी भवन बनता वो स्थानीय निकायों की मंजूरी के बाद बनता। लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया।
समिति के अध्यक्ष चंद्रपपाल मेहता ने कहा कि सरकार तथ्यों की तह में गए बगैर मज्र्ड एरिया से नियमितिकरण की एवज़ में पैसा वसूलने की ज़िद्द पकड़कर बैठी है।
समिति के सचिव गोविन्द चतरान्टा ने कहा कि टीसीपी और नगर निगम स्वयं भी इस बात से आश्वस्त नहीं है कि प्रदेश भर में कुल कितने मकान हैं जो नियमिति किए जाने हैं। टीसीपी जहां ऐसे मकानों का आंकड़ा 13 हज़ार बताती है वहीं अन्य स्रोतों द्वारा इसकी संख्या 35 हज़ार से 45 हज़ार के बीच बताई जा रही है। वहीं 2016-17 में नगर निगम षिमला में ही गृह कर देने वालों की संख्या 26 हज़ार के लगभग है। चतरान्टा ने वीरभद्र सरकार से पूछा है कि आधी-अधूरी जानकारी के साथ नियमों और अधिनियमों की आड़ में आम जनता पर बिना उनका पक्ष सुने पेनेल्टी थोपना तर्कसंगत नहीं है। उन्होंने एलान किया कि भवन मालिक को पैनाल्टी नहीं देंगे। उन्होंने यह भी पूछा कि 1977 से 1997 के बीच दो दशाकों में टीसीपी विभाग कहां सोया हुआ था।
टीसीपी ने 2 जुलाई 2009 को एक चिट्ठी जारी करके माना था कि अधिकतम 600 वर्ग मीटर निर्माण जो 3 मंज़िल से ऊपर न हो उसे बिना शर्त नियमित माना जाएगा। लेकिन नियमितिकरण की मौजूदा नीति में उस पत्र का ज़िक्र तक नहीं है और पूरे निर्माण क्षेत्र को अवैध करार देकर लाखों रुपये ऐंठने का धंधा किया जा रहा हैं।
समिति के उपाध्यक्ष कृष्ण गोपाल ने स्पष्ट किया कि षिमला और इसके आसपास भवन मालिकों और भवनों की अलग-अलग श्रेणियां हैं। एक तरफ पुराना शिामला शहर है जिस पर पहले से ही नगर निगम अधिनियम के अनुसार भवन निर्माण की शर्तें लग रही हैं और दूसरी ओर ऐसे लोग हैं जिन्होंने मज्र्ड एरिया जो पहले पंचायतों का हिस्सा था वहां ज़मीन खरीदकर मकान बनाएं हैं। वहीं इस क्षेत्र में स्थानीय बाशिंदे भी हैं जो पुश्त-दर-पुश्त यहां रह रहे हैं और अभी भी कृषि और पशुपालन के कार्य से जुड़े हुए हैं। लेकिन सरकार इस सब की अनदेखी करके मात्र बिल्डरों को ही फायदा देने वाली नीति लागू कर रही है।
समन्वय समिति के उपाध्यक्ष कंवर भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि यह कानून बसे हुए लोगों को उजाड़ने का प्रयासहै। उन्होंने कहा टीसीपी के पास लैंड यूज मैप ही नहीं बनाया हैं हैं।यही नहीं बीजेपी व कांग्रेस की सरकारें सता में आती रही और और वोट बैंक व चहेतों की खातिर क्षेत्रों को टीसीपी के दायरे के भीतर व बाहर लाती रही। जब सरकार को ओपेक का सीवरेज प्रोजेक्ट या जेएनएनआरयूएम चाहिए था तो कई गांवों को एमसी में शामिल कर लिया गया। प्रोजेक्ट मिलने व विरोध के बाद दूसरी सरकार ने इस क्षेत्र को बाहर कर दिया।
कंवर ने वीरभद्र सिंह सरकार से सवाल किया कि वो बताएं कि प्रदेश में कितना क्षेत्र और कितने गांव टीसीपी के अन्दर हैं। इन क्षेत्रों में 1977 से पहले और उसके बाद कितने भवन बने हैं। उन्होंने दावा किया कि सरकार के पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है।
समिति के महासचिव चतरान्टा ने संगीन इल्जाम लगाया कि वीरभद्र सरकार इसलिए भी एकमुश्त राहत नहीं देना चाहती क्योंकि इससे आम जनता को तो लाभ मिल जाएगा लेकिन नेताओं की झोली भरने वाले बिल्डरों को भविष्य में नियमों का पालन करके ही निर्माण करना पड़ेगाए जो वे नहीं चाहते। बिल्डर तो यही चाहेंगे कि सरकार बार-बार नियम बदले और वे हर बार कुछ पैसा देकर अपने अवैध निर्माण को नियमित करा सकें जैसा आज तक होता आया है।
वहीं शिामला नागरिक सभा के कोषाध्यक्ष जीयानन्द श्ार्मा ने कहा कि टीसीपी तमिलनाडु और कर्नाटक का उदाहरण देकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है कि उन जगहों में 20 हजार रूपये वर्गमीटर के हिसाब से अवैध निर्माण नियमित किए गए हैं लेकिन वह इस बात को छुपा रही है कि इन श्ाहरों में नियमितिकरण की ये फीस ली गई है वे महानगरों की श्रेणी में आते हैं और दूसरा तथ्य टीसीपी यह भी छुपा रही है कि दिल्ली में ऐसी कालोनियां बिना शर्त नियमित की गई जो सरकारी ज़मीन पर बनी हैं। यहां तो लोगों की अपनी ज़मीन है तो यहां भवन बिना श्र्त क्यों नियमित नहीं हो सकते।
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