शिमला।29 मई को मुख्यमंत्री वीरभद्र के लाडले व युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह की कमान में भाजपा मुख्यालय दीपकमल पर हुए खूनी कांड की वजह और इसकी शुरूआत करने वालों को न ढूंढ पाने में नाकाम रहने पर एडीएम शिमला ने जिला प्रशासन व प्रदेश सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। जांच शुरू ही इस कांड की वजह व इसे शुरू करने वालों की पहचान करने के लिए की गई थी।एडीएम ये सब पता लगाने में नाकाम रहे। अगर ऐसी ही रिपोर्ट देनी थी तो फिर जांच की जरूरत ही क्या थी।एडीएम ने इसके लिए ठीकरा बीजेपी के सिर पर फोड़ने की नाकाम कोशिश भी की है। एडीएम शिमला एचएएस कैडर के अफसर है। उन्होंने अपनी जांच में कहा है कि ऐसा लगता है कि इस कांड में कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।उन्होंने इस कांड को भीड़ के स्वभाव का परिणाम बताकर सीएम के बेटे व युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य,उनकी जुंडली और अगर इस कांड में भाजपा व भाजयुमो के लोग भी शामिल थे तो उन्हें भी क्लीन चिट दे दी।एडीएम की ये रिपोर्ट प्रदेशप्रशासन के अफसरों पर कई सवाल खड़े करती है।
मजे की बात है कि एडीएम ने पुलिस प्रशासन को भी क्लीन चिट दे दी। और एसपी शिमला डी डब्ल्यू नेगी को भी बचा दिया।एसपी भाजपा के निशाने पर है। एडीएम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मौके पर पुलिस के 40 जवान थे व अतिरिक्त फोर्स को घटना के दौरान बुलाया गया।एडीएम ने अपनी रिपोर्ट मे ये नहीं बताया कि इतनी बड़ी भीड़ को काबू करने के लिए कितने पुलिस वाले चाहिए थे। वो ये भी छिपा ले गए कि खुफिया तंत्र को यहां झगड़ा होने का अंदेशा क्यों नहीं लगा। उन्होंने खुफियां एजेंसी के पास पहले से क्या जानकारी थी या नहीं थी इस बारे भी अपनी रिपोर्ट में कोई खुलासा नहीं किया।एडीएम की रिपोर्ट में कहा गया है कि उनसे पुलिस ने कहा कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने युवा कांग्रेस के प्रदर्शनकारियों को चक्कर की ओर नहीं जाने दिया व उनके हाथ में बांस के डंडों में झंडे थे। इस तरह एडीएम ने अजीबो गरीब जांच रिपोर्ट पेश कर दी है।इसके अलावा एडीएम ने दस सुझावों की फिरकी भी चला दी है। लेकिन असली सवालों के जवाब वो रिपोर्ट में नहीं दे पाए है।
जिला प्रशासन ने अपना काम कर दिया है और अब पुलिस का रास्ता भी आसान बना दिया है।राज्यपाल को भी इसी लाइन पर रिपोर्ट दी जाएगी।युकां अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह को अदालत से नियमित जमानत मिल गई है।इस जांच में भाजपा ने शामिल न होकर खुद को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कायदे से भाजपा को जांच में शामिल होना चाहिए था।उसके बाद वह एडीएम पर अंगुली उठा सकती थी। लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं किया।
भाजपा इस मसले पर राजनीति करने पर आ गई है।शनिवार को भाजपा विधायक सुरेश भारद्वाज ने राजधानी में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वो इस रिपोर्ट को नामंजूर करती है।उन्होंने कहा भाजपा मुख्यालय पर हमला षडयंत्र का हिस्सा था।इसमें सीएम का लाडला शामिल है।जिसमें शिमला का प्रशासन व एसपी शामिल था।विक्रमादित्य के खिलाफ 307 व 120 बी के तहत मुकदमा दर्ज होना चाहिए था। हाईकोर्ट के सीटिंग जज से या फिर सीबीआई से जांच कराने की मांग भी उन्होंने की।उन्होंने जिला शिमला के पूरे प्रशासन को बदलने की मांग भी की।उन्होंने कहा कि जब सीएम अपने बेटे को डिफेंड कर रहे है तो एक एडीएम कैसे अपनी रिपोर्ट उसके खिलाफ दे सकता है।
सुरेश भारदवाज खुद एक कानून विद है। उनहीं के पार्टी के वकील कहते है कि इस मामले में 307 नहीं लग सकती।अगर लगा भी दी तो कोर्ट में टिकेगी नहीं। हालांकि वकीलों की राय अलग अलग हो सकती है।ये संभवत: सुरेश भारदवाज भी जानते है। दूसरे अगर इन धाराओं को शामिल करवाना ही है तो उसके लिए अदालत में 156/3 के तहत अर्जी देने के जरूरत है ।भाजपा ने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया है। भाजपा खुद आरोप लगा रही है कि सरकार की मिलीभगत से कलीन चिट दी जा रही है।ऐेसे में सरकार इस मामलले की सीबीआइ्र जांच क्यों करवाएगी। ये भारदवाज भी जानते है प्रदेश में इससे कहीं जघन्य अपराध हो चुके है किसी की सीबीआई जांच न तो भाजपा की व न ही कांग्रेस की सरकारों ने करवाई है।हाईकोर्ट के जज से जांच की मांग मांग सरकार मानने वाली नहीं है।ये भी भरदवाज अच्छी तरह से जानते है। अगर सीटिंग जज से मांग करवानी ही है तो अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। भाजपा ऐसा कुछ नहीं कर रही है। लेकिन असल मसला घायल राजेशा शारदा हैॅ। उनकी आंख की रोशनी आएगी भी या नहीं या फिर उनके जख्मों पर राजनीति ही होती रहेगी।
तस्वीर साफ है कि पुलिस व सरकार सीएम के बेटे और उसको घेरे रखने वाली जुंडली को बचा कर ले जाना चाहती है। जबकि भाजपा इसे राजनीतिक मुददा बनाए रखना चाहती है। अगर इस तरह की खूनी जंग एसएफआई व एबीचवीपी के बीच होती तो किसी को भी जमानत नहीं मिलती।सरकार राजनीतिक पार्टियों व प्रशासन का ये चरित्र एक अरसे बदल नहीं रहा है।
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