शिमला। देश के सबसे बडे पूंजीपति गौतम अदाणी की कंपनी अदाणी पावर की ओर से आज प्रदेश हाईकोर्ट में 280 करोड रुपए के अप फ्रंट मनी को उसे लौटाने की याचिका पर बहस पूरी हो गई। अब अगली तारीख को प्रदेश सरकार की ओर से इस मसले पर अपना पक्ष रखने के लिए अदालत की ओर से समय मिला हैं। तब तक सुक्खू सरकार इस मामले में कितनी तैयारी कर पाती है, यह देखना दिलचस्प होगा। खासकर राजनीतिक स्तर और नौकरशाही स्तर पर कितनी सक्रियता रहेगी यह अगली तारीख तक मालूम हो जाएगा।अगली सुनवाई 27 मार्च को निर्धारित की गई हैं।
सरकार की ओर से महाधिवक्ता अनूप रतन ने आज सरकार का पक्ष रखने के लिए समय मांग लिया हालांकि अदालत ने आज के लिए समय दिया था। इससे पहले यह मामला तीन मार्च को लगा था। उसके बाद आज इस मामले की सुनवाई हुई।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश सबीना की खंडपीठ ने आज इस मामले की सुनवाई की अदाणी पावर की ओर से तमाम तरह की दलीलें पेश की गई और अप्रैल 2015 की पूर्व वीरभद्र सिंह केबिनेट के फैसले को लागू करने बावत अप्रैल 2022 में न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की एकल पीठ की ओर से दिए गए फैसले को लागू करने का आग्रह किया गया।
न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने अदाणी पावर की ओर से इस बावत दायर याचिका का निपटारा करते हुए 280 करोड का अप फ्रंट मनी जो अदाणी पावर ने नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एनवी की ओर से उसी के लेटर पैड पर अदालत के दखल के बाद जमा कराया था, के बारे में वीरभद्र सिंह सरकार के अप्रैल 2015 के मंत्रिमंडल के फैसले को लागू करने का फैसला दिया था। यह रकम सरकार को दो महीने के बाद अदाणी पावर को वापस की जानी थी। उसके बाद यह रकम पर नौ फीसद ब्याज के साथ लौटाने का आदेश दिया गया था। यह ब्याज जून 2022 के बाद लग गया हैं।
लेकिन सरकार ने न तो अप फ्रंट मनी की रकम को जमा कराया है और न ही ब्याज ही दे रखा हैं। सरकार ने अपील के लिए तय अवधि के बाद अपील दायर की है। जबकि दूसरी ओर अदाणी पावर ने अर्जी दाखिल की है कि उसे ब्याज तब से दिया जाए जब से उसने यह रकम ब्रेकल की ओर से जमा कराई थी। उधर सरकार ने इस फैसले पर रोक लगाने की अर्जी दाखिल कर रखी है। न सरकार की अर्जियों पर और न ही अदाणी पावर कह अर्जियों पर अब तक कोई आदेश हुआ है।
राजनीति व कारपोरेट की मिलीभगत ने पेचिदा कर दिया मामला
यह मामला 2006-7 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से जिला किन्नौर में 960 मेगावाट की जंगी थोपन पन बिजली परियोजना के आवंटन से जुडा हैं। इस परियोजना को वीरभद्र सिंह सरकार ने नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल एनवी को आवंटित किया गया था। इस परियोजना के लिए अंबाणी समूह की कंपनी रिलायं स इंफ्रास्ट्रक्चर ने भी बोली लागई थी व वउसकी बोली दूसरे स्थान पर रही थी।
आवंटन होने के बाद ब्रेकल एन वी ठेके के अपबंधों के मुताबिक तय समय सीमा के भीतर अप फ्रंट मनी जमा नहीं करा पाई तो रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने अदालत में याचिका दायर कर इस परियोजना को उसे आवंटित करने का आग्रह कर दिया। इस बीच प्रदेश में धूमल सरकार सत्ता में आ गई और उसने ब्रेकल को लेकर आयकर विभाग व विजीलेंस से जांच करवा दी। तत्कालीन धूमल सरकार की ओर से अदालत में कहा गया कि ब्रेकल कीओर से दस्तावेजों में बताए गए तमाम दावे फर्जी हैं। इस बीच धूमल सरकार ने ब्रेकल को नोटिस जारी कर दिया कि क्यों न इस आवंटन को रदद कर दिया जाए। लेकिन बाद में धूमल ने पांच आइएएस अफसरों की एक समिति गठित कर इस मामले उनकी राय जाननी चाहिए। आश्चर्यजनक तौर पर विजीलेंस और आयकर विभाग की नकारात्मक रपटों के बाद भी इन अधिकारियों की समिति ने राय दी गई कि इस आवंटन को रदद नहीं किया जाना चाहिए।
इस राय को तत्कालीन धूमल सरकार ने मान लिया। हालांकि उसने यह राय क्यों मानी इसकी जांच होनी चाहिए थी लेकिन अब तो ऐसा कुछ हुआ नहीं हैं। उधर ब्रेकल ने अप फ्रंट मनी जमा करा दिया। इसके बाद रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने दोबारा से हाईकोर्ट में याचिका दायर कर धूमल सरकार के फैसले को चुनौती दे दी। इस बीच सुनवाई के दौरान सामने आया कि अप फ्रंट मनी व जुर्माने की280 करोड की रकम ब्रेकल ने नहीं अदाणी समूह की कंपनियों की ओर से ब्रेकल के लेटर पैड पर जमा कराई गई हैं।
न वीरभद्र सिंह सरकार और न ही धूमल सरकार ने अदाणी पावर को कभी भी ब्रेकल के साथ कंसोरटियम मानने की इजाजत नहीं दी। बाद में 2009 में इस आवंटन को प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक गुप्ता और वी के आहुजा की खंडपीठ ने रदद कर दिया।
अदाणी पावर ने ब्रेकल से कभी नहीं मांगी ये रकम
प्रदेश हाईकोर्ट की ओर से 2009 से लेकर अब तक इस रकम को अदाणी की ओर से कभी भी ब्रेकल एन वी से वापस नहीं मांगा गया। चूंकि यह रकम उसने ब्रेकल की ओर से जमा कराई थी। अदालत में सरकार की ओर से दलील भी जाती रही कि उसने कभी भी अदाणी पावर से पैसा नहीं लिया।
लेकिन 2015 में वीरभद्र सिंह केबिनेट ने फैसला लिया कि इस परियोजना को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को आवंटित कर दिया जाता है और उससे मिलने वाले अप फ्रंट मनी की रकम में से अदाणी की रकम लौटा दी जाएगी। केबिनेट का यह फैसला वैध था या अवैध इस बावत कभी कहीं कोई सवाल किसी मंच पर नहीं उठाया गया। चूंकि केबिनेट को जो कुछ भी करना था वह ठेके के उपबंधों के मुताबिक ही करना था। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने यह अजीब फैसला ले लिया।
बाद में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने इस परियोजना से हाथ खींच लिए व बदली परिस्थितियों में 2017 के दिसबंर महीने में जब प्रदेश में विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा था व मतदान हो चुका था फैसला लिया कि ठेके के उपबंधों की जटिलताओं व कानूनी पेचिदकियों के वजह से यह पैसा अदाणी पावर को नहीं लौटाया जा सकता।जिस तरह 2008-09 में धूमल सरकार की जांच लाजिमी थी उसी तरह 2015 से लेकर सिंबर 2017 तक वीरभद्र सरकार के दौरान इस मामले में जो भी हुआ उसकी जांच भी लाजिमी थी। चूंकि मामला अदाणी से जुडा था इसलिए जयराम सरकार ने कुछ नहीं किया।
इसके बाद प्रदेश में दिसंबर 2017 में जयराम सरकार सत्ता में काबिज हो गई और 2019 में अदाणी पावर ने इस रकम को लेने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की दी ।इस बीच कई कुछ हुआ ।जयराम सरकार ने इस मामले को केबिनेट भी ले गई थी व फैसला लिया कि वह इस रकम को नहीं हटाएंगी । यह रकम जब्त हो चुकी हैं।
आज सुक्खू सरकार इस मामले में जयराम सरकार कैसे हारी उस सबकी जांच कराए तो कई कुछ सामने आ जाएगा। बहरहाल, अदाणी पावर की याचिका पर अप्रैल 2022 में जस्टिस संदीप शर्मा की एकल खंडपीठ ने इस रकम को अदाणी पावर को दो महीने के भीतर लौटाने के आदेश दे दिए व दो महीने बाद नौ फीसद ब्याज लगाने का आदेश दिया था।
अब जयराम सरकार सत्ता से बाहर हो गई है और सुक्खू सरकार सत्ता में हैं।
कैग की रपट में था खुलासा
2015 में ततकालीन वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से इस अप फ्रंट मनी को अदाणी पावर को लौटाने के फैसले को लेकरअपनी 2018-19 की रपट में खुलासा किया था। कैग ने अपनी रपट में कहा था प्री इंप्लीमेंटेशन और इंप्लीमेंटेंशन एग्रीमेंट के मुताबिक यह रकम जब्त हो जानी थी। लेकिन सरकार ने इस रकम को अदाणी पावर को लौटाने का फैसला लेकर सरकार के खजाने को 280 करोड की चपत लगा दी है और अदाणी पावर को अनुचित लाभ दे दिया हैं। लेकिन इस रपट पर न तो जयराम सरकार ने संज्ञान लिया और न ही अब सुक्खू सरकार कोई गौर फरमा रही हैं।
कैग के हिमाचल के कार्यालय ने तो कैग दिल्ली को ब्रेकल पर लगाए 2713 करोड रुपए के जुर्माने के नोटिस को ड्राप् करने पर भी पैरा लगाकर भेजा था लेकिन कैग दिल्ली ने उस पैरा को ड्राप कर दिया था। यह सब कैसे हुआ इसकी जांच हो तो कईकुछ सामने आ जाएगा।
ब्रेकल के खिलाफ दर्ज है एफआइआर, आरेापी है फरार
ब्रेकल के खिलाफ विजीलेंस ने जयराम सरकार में एफआइआर दर्ज की थी। इस कंपनी के दो लोगों को गिर फतार भी किया गया था। लेकिन जब हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी लगी तो विजीलेंस ने एक आरोपी की जमानत याचिका का विरोध यिका जकि दूसरे की याचिका को कोई विरोध नहीं किया। इस मामले में ब्रेकल के कर्ताधर्ता नीदरलैंड के नागरिक गैस्टरकैंपर को विजीलेंस आज तक पकड कर अदालत के समक्ष पेश नहीं कर पाई हैं। अब सुक्खू सरकार क्या कर पाएगी यह देखना बाकी हैं।
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