शिमला। प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश में धड़ाधड़ पटटे पर दी जा रही जमीन के तंत्र को समाप्त करने की मांग को लेकर दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव और प्रधान सचिव राजस्व को नोटिस जारी कर दो सप्ताह के भीतर जवाब तलब किया है।
मुख्य कार्यवाहक न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि मलिमठ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने जिला कांगड़ा के राकेश कुमार नामक एक व्यक्ति की ओर से मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिटठी को जनहित याचिका में बदल दिया और इसकी सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किए।
राकेश ने अपनी चिटठी में लिखा था कि प्रदेश सरकार बहुत सारे मामलों में अपनी जमीन को 99 साल के पटटे पर दे रही है । सरकार की ओर से अपनाई जा रही यह नीति गलत व गैरकानूनी है। क्यों कि इस तरह जमीन को पटटे पर देने का मतलब धीरे -धीरे इस जमीन के मालिकाना हक पटटेधारक को हर तरह के उददेश्यों को करने को इजाजत के रूप में होने लगा है। यह नहीं जिसे मूल पटटे दिए गए है उनके वारिसों को इन पटटों कानूनी अधिकार दिए जा रहे हैं।अगर पटटे पर जमीन देने का यह धंधा इसी तरह चलता रहा तो प्रदेश की तमाम जमीन बाहर वालों के हाथ चली जाएगी। इसके अलावा प्रदेश के संसाधनों पर बाहर वालों की ओर से कब्जा कर दिया जाएगा और वह इसका भोग करते रहेंगे। जबकि वह यह सब करने के लिए अधिकृत ही नहीं है। इस तरह बाहर के चंद लोग प्रदेश के लोगों को अपने दबदबे में ले लेंगे।
राकेश ने अपनी चिटठी में लिखा था कि बहुत से लोगों ने इन पटटों को अपनी आय का जरिया बना लिया है। मिसाल देते हुए उन्होंने कहा कि पालमपुर में एक अस्पताल को एक रुपए प्रति साल की पटटा राशि पर दे दी गई है। इस अस्पताल के पास 60 कनाल के करीब जमीन है।
इसने अपनी चिटठी में लिखा था कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इन पटटों से सरकार को कितनी आय हो रही है, जिसको पटटे पर यह जमीन दी गई है उसकी कितनी कमाई हो रही है और उसकी ओर से कितना कर सरकार को अदा किया जा रहा है। इसके अलावा पटटे धारक ने कितने जंगल को तबाह कर दिया है यह भी देखा जाना चाहिए। यह भी पता किया जाना चाहिए कि ऐसे कितने उदाहरण है जहां पर 99 साल के बाद जमीन सरकार को वापस कर दी गई हो।
राकेश ने चिटठी में लिखा था कि सरकारी जमीन को इस तरह सदा के लिए या लंबे समय के लिए पटटे पर देने की प्रथा पर तुरंत रोक लगाई जाए ताकि देवभूमि के मूल स्वरूप को बरकरार रखा जाए। अदालत ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह के बाद के लिए निर्धारित कर दी है और सरकार को उससे पहले अदालत में जवाब दायर करने के निर्देश दिए हैं।
(22)