शिमला। कैग की रिपोर्ट में पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से देश के शीर्ष उद्योगपति गौतम अदाणी को अपफ्रंट मनी के 260 करोड़ रुपए लौटाने के फैसले के घोटाले पर अब कैग ने भी मोहर लगा दी है।इस रकम को 2007 से लेकर अब तक सता में रही भाजपा व कांग्रेस सरकारों ने जब्त नहीं किया और न ही करोड़ों रुपयों के इस घोटाले की जांच की है। पिछल्ले डेढ साल से ब्रेकल के खिलाफ जांच करने के लिए प्रदेश का विजीलेंस विभाग सरकार से नियमित एफआईआर करने की मंजूरी मांग रहा है। लेकिन कांग्रेस पार्टी की तरह ही मौजूदा जयराम सरकार के नौकरशाह से लेकर नेता तक फाइलों को इधर से उधर सरकाने में लगे है। ऐसे में अब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मुश्किल में आ गए है। अदाणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी उद्योगपति हैं। ऐसे में क्या जयराम ठाकुर सरकार इस रकम को जब्त कर पाएगी,यह बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। क्या जयराम सरकार ब्रेकल के खिलाफ नियमित एफआईआर दर्ज कर पाएगी यह उससे भी बड़ा सवाल है। इसके अलावा ब्रेकल से 2713 करोड़ रुपए का जुर्माना वसूल कर पाएगी यह और भी जटिल प्रश्न है। यह दीगर है कि विधानसभा चुनावों से वीरभद्र सिंह सरकार से हिसाब मांगने आए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सबिंत पात्रा ने इस मसले को भी मीडिया को जारी किया था। हालांकि उन्होंने मीडिया को जारी किए ब्राउशर में यह झूठ लिखा था कि भाजपा सरकार ने जुर्माने बावत ब्रेकल को नोटिस दिया था। फाइलों की पड़ताल में यह कहीं नहीं आया है कि भाजपा की तत्कालीन धूमल सरकार ने ऐसा कोई नोटिस थमाया था। भाजपा नेताओं ने दोस्ती में चुपके से निजी तौर पर कोई नोटिस थमाया हो तो कहा नहीं जा सकता।
अब यह देश के वित मंत्री अरुण जेटली व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तय करना है कि वह भ्रष्टाचार के जीरो टालरेंस के अपने दावे को किस तरह साबित करते है।
घपले की इस मोहर के साथ ही विदेशी कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी पर पिछल्ली सरकार की ओर से लगाए जुर्माने के 2713 करोड़ को माफ करने के वीरभद्र सरकार के फैसले पर कैग की खामोशी को भ्रष्ट खामोशी करार दिया जा रहा है। इसके अलावा कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी साफ नहीं किया अप फ्रंट मनी की यह रकम अदाणी समूह की कंपनी ने ब्रेकल को कर्ज के रूप में दी थी न कि सरकार को । अदाणी को ब्रेकल में हिस्सेदारी की सरकार ने कभी इजाजत ही नहीं दी थी।
ऐसे में सरकार की ओर से इसे अदाणी को लौटाने का कोई औचित्य ही नहीं है। यह मामला अदाणी की कंपनी और ब्रेकल की बीच का है। सरकार को तो अप फ्रंट मनी जब्त करना था। जो वह अभी तक नहीं कर रही है। यह पिछल्ली सरकार की तरह डील का रास्ता खुला रखने की मुहिम है।
सूत्रों के मुताबिक 2713 करोड़ के जुर्माने के मसले पर कैग की आंतरिक चर्चा में यह आया कि यह संभावित नुकसान है इसलिए इसे रिपोर्ट में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। रिर्पोटर्ज आइ की जानकारी के मुताबिक कैग के राज्य कार्यालय से इस दिल्ली कैग मुख्यालय भेजा गया था। लेकिन वहां इस बिंदु को ड्राप किया गया । किसके इशारे पर किया गया होगा यह अंदाजा लगाना मुश्किल नही ंहै। राज्य कार्यालय ने पिछल्ले साल भी यही ड्राफट पैरा दिल्ली मुख्यालय को भेजा था। लेकिन तब भी इसे ड्राप कर दिया । रिपोर्टर्ज आइ ने तब भी यह मसला उठाया था।
जिला किन्नौर में लगने वाले छह से नौ हजार करोड़ के 960 मेगावाट की जंगी थोपन पन विद्युत बिजली परियोजना की एवज में विदेशी कंपनी ब्रेकल पावर कारपोरेशन के फाइनेंसर अदाणी को अपफ्रंट मनी के 260 करोड़ 13 लाख रुपए वापस करने के पूर्व वीरभद्र सिंह सरकार के फैसले पर कैग ने सवाल उठा दिया है। कैग ने इस वापसी को निजी कारोबारी को अनुचित लाभ और सरकार के खजाने को चपत वाला करार दिया है। याद रहे वीरभद्र सरकार में वीरभद्र सिंह के घर पर आय से अधिक संपति मामले में सीबीआई छापोमारी होने से एक अरसा पहले सितंबर 2015 में वीरभद्र सिंह सरकार ने इस रकम को अदाणी समूह की कंपनी को वापस करने का विवादास्पद फैसला लिया था। हालांकि रिपोर्ट में अदाणी समूह की कंपनी के नाम के बजाय प्रोजेक्ट लेने वाली कंपनी के फायनेंसर शब्द का जिक्र किया गया है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की ओर से विधानसभा के बजट सत्र के आखिरी दिन सदन में पेश की गई कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बड़ी रकम को निविदा समझौते के प्रावधानों का उल्लंधन करने पर इसे जब्त करने बजाय प्रोजेक्ट हासिल करने वाली कंपनी के फाइनेंसर को वापस करने से सरकार के खजाने को 260 करोड़ 13 लाख रुपए का नुकसान होगा और निजी कंपनी को अनुचित लाभ होगा। यह रकम इसके अलावा इस प्रोजेक्ट के चालू न होने से प्रदेश को मिलने वाली मुफत बिजली का नुकसान होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह देरी नौ सालों की है। यह जुर्माना वीरभद्र सरकार के बाबूओं ने ही 2713 करोड़ केलकुलेट किया था।
अपने दो पन्नों से ज्यादा के आडिट पैरा में कैग की रिपोर्ट में जिला किन्नौर में लगने वाली इस परियोजना के 2006 से लेकर अब तक इस परियोजना को लेकर सारा ब्योरा दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने सितंबर 2015 में इस आधार पर कि एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो अलग अलग पार्टियों से अपफ्रंट मानी नहीं वसूला जा सकता,इस 260करोड़ 13 लाख रुपए व प्रोजेक्ट चालू न करने से सरकार के खजाने को होने वाले 2713 करोड़ 73 लाख रुपए के हुए संभावित नुकसान को माफ कर दिया।
रिपोर्ट में कैग ने टिप्पणी की है कि असल में प्रोजेक्ट हासिल करने वाली कंपनी ने गलत तथ्य पेश किए थे और राज्य सरकारकी पूर्व अनुमति के बगैर इक्विटी पार्टिसिपेशन को भी बदल दिया था। कैग ने इस बावत सरकार से जवाब भी मांगा । सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो बार अपफ्रंट मनी नहीं वसूला जा सकता और इस रकम को अभी वापस नहीं किया गया है। कैग ने कहा है कि तथ्य यह है कि समझौते की शर्तो की उल्लंघना करने के लिए यह रकम जब्त की चाहिए थी। इस बावत अगस्त 2013 में सरकार के विधि विभाग ने भी इस गावत अपनी राय दी थी। इसके अलावा एक बार समझौता हो जाने के बाद उसके बाद होने वाले समझौते के कोई मायने नहीं होते। रिपोर्ट में कहा गया है कि जून 2017 में इस बावत मामले को सरकार को भेजा गया लेकिन अभी नवंबर तक कोई जवाब नहीं आया है।
आडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2006 में 480-480 मेगावाट के जंगी थोपन और थोपन पोवारी प्रोजेक्ट को अंतराष्ट्रीय निविदाओं के जरिए ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को लेटर आफ अवार्ड जारी कर आवंटित किया था। इसके तहत इस लेटर के जारी होने के तुरंत बाद कंपनी को 50 फीसद अपफ्रंट मनी जमा कराना था व 25 फीसद इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट पर दस्तख्त के समय व बाकी का 25 फीसद वितीय लेखा जोखा बंद करने के बाद जमा होना था।
अप्रैल 2009 में प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट साइन किया था जिसके तहत प्रोजेक्ट के चालू हो जाने के तीन सालों तक उसे प्रोजेक्ट में कं पनी को अपनी सौ फीसद इक्विटी पार्टिस्पिेशन रखनी थी व सरकार की अनुमति के बगैर इक्विटी पार्टिस्पिेशन बदलने पर प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट के अपने आप ही समाप्त होने का प्रावधान था। आवंटन के समय जमा कराई गई अप फ्रंट की रकम को एग्रीमेंट के किसी भी प्रावधान या क्लॉज का उल्लंघन करने और निविदा चयन प्रकिया के दौरान गलत जानकारी देने पर जब्त करने और संबंधित नीति मापदंडों का उल्ल्ांघन करने पर प्री इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट को रदद करने और जुर्माना लगाने के आलावा एग्रीमेंट के प्रावधानों के मुताबिक प्रोजेक्ट को रदद भी किया जा सकता था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊर्जा निदेशालय के दस्तावेज बताते है कि ब्रेकल ने निविदा शर्ताें के मुताबिक दिसंबर 2006 में लेटर आफ अवार्ड जारी हो जाने के तुरंत बाद 173.42 करोड़ रुपए का अप फ्रंट मनी जमा नहीं कराया। राज्य सरकार ने जनवरी 2008 में कंपनी को यह रकम जमा करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसके बाद ब्रेकल ने जनवरी 2008 में फायनेंसर से कर्ज लेकर व बिना सरकार की अनुमति के उसे 49 फीसद की इक्विटी का हिस्सेदार बनाकर 260 करोड़ 13 लाख रुपए जमा करा दिए व अपफ्रंट मनी को देरी से जमा कराने के लिए लगे ब्याज जुर्माने की एवज में अप्रैल 2009 में 20 करोड़ 56 लाख रुपए जमा करा दिए।
इसके बाद निविदा में दूसरे स्थान पर रहे रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने नवंबर 2008 मे इसे लेकर प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। अदालत ने अक्तूबर 2009 में ब्रेकल को इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रदद कर दिया। रिपोर्ट में हाईकोर्ट के आदेशों का हवाला देकर कहा गया कि अदालत ने पाया कि ब्रेकल ने गलत तथ्य पेश किए है और सरकार की पूर्व अनुमति के इक्विटी पार्टिस्पिेशन को भी बदल दिया है। गौर हो कि ब्रेकल ने अदाणी पावर लिमिटेड को 49 फीसद की हिस्सेदारी के साथ इक्विटी पार्टिसिप्ेशन में अपने साथ जोड़ा था।
इसके बाद रिलायंस व ब्रेकल दोनों ही सुप्रीम कोर्ट चले गए थे। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2014 में सुप्रीम कोर्ट में के लंबित होने के दौरान सरकार ने ब्रेकल को प्रोजक्ट न चलाने, गलत जानकारी देने को लेकर शोकाज नोटिस जारी किया व कहा कि सरकार को प्रोजेक्ट न लगने से हुए नुकसान की एवज में कंपनी से 2713.73 करोड़ रुपए बतौर जुर्माना और अप फ्रंटमनी को जब्त क्यों न किया जाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रेकल ने इस नोटिस का जवाब तो नहीं दिया लेकिन अक्तूबर 2014 में अपनी याचिका वापस ले ली ।
गौर हो कि इस 260 करोड़ रुपए की रकम को अदाणी समूह की कंपनियों को वापस लौटाने के फैसले को पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार के शासन में ही वापस ले लिया था। लेकिन तबकी सरकार से लेकर अब जयराम ठाकुर सरकार ने भी इस रकम को जब्त नहीं किया है। यह बड़ा घपला है।
अब कैग की रपट में जिक्र आ जाने से जयराम ठाकुर फंस गए है। वह व उनके बाबू इस मामले से किस तरह बाहर निकलते है यह देखना है। मजेदार यह है कि जिस बाबू ने इस 260 करोड़ रुपए की रकम को अदाणी को वापस करने का नोट केबिनेट के समक्ष लाने को तैयार किया था उसी ने चुनावों से पहले आचार संहिता के बीच इस फैसले को वापस लेने का नोट भी तैयार किया था। अब वो बाबू दिल्ली मोदी सरकार में चला गया है। हालांकि वीरभद्र सिंह व उनके सिपहसलारों ने इस दांव को धूमल को धर्मसंकट में डालने के लिए चला था लेकिन विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बन गए।
(0)