शिमला। अप्रत्याशित कदम उठाते हुए कांग्रेस विधायकों ने आज सुबह प्रश्नकाल शुरू होने से पहले विधानसभा अध्यक्ष विपिन सिंह परमार की निष्पक्षता को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्हें इस पद से हटाने ने की मांग की को लेकर सदन में विधानसभा के सचिव को नोटिस थमा दिया व चुपचाप सदन से बाहर चले गए और बाहर जाकर धरने पर बैठ गए। कांग्रेस विधायकों ने आज विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि दोपहर को जब इस मसले पर संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भारदवाज सदन में अपनी बात कहने लगे तो उन्होंने इसे नियमों के खिलाफ करार दे दिया।
आज सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री समेत तमाम कांग्रेस विधायक अपनी सीटों पर आए व वहां से सीध्रे विधानसभा सचिव के पास चले और उन्हें नोटिस थमा दिया। 19 विधायकों दस्तख्तों वाले इस नोटिस में इन विधायकों ने साफ तौर पर लिखा कि उनकी
विधानसभा अध्यक्ष में कोई आस्था नहीं रह गई है। इसलिए इस सदन की गरिमा व लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने और सदन में विधायकों के अधिकारों की रक्षा के अलावा सदन विधानसभा के नियमों के मुताबिक चले इसलिए परमार को विधानसभा के अध्यक्ष की कुर्सी से हटना जरूरी है।
इन विधायकों ने नोटिस में कहा कि विधानसभा अध्यक्ष जानबूझ कर विधायकों विशेषाधिकार को बनाए रखने में नाकाम रहे है व उनकी सदन को चलाने की निष्पक्षता संदेह में है। चूंकि विधानसभा अध्यक्ष को निष्पक्ष होना होता है।लेकिन बार-बार देखा जा रहा है कि विधानसभा अध्यक्ष आसन पर होते है तो बार-बार अपनी खास विचारधारा को रखने का दावा करते है।यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
यही नहीं विधानसभा अध्यक्ष विपक्षी विधायकों के नोटिसों पर भी निष्पक्षता से फैसला नहीं देते है। ऐसे में विपक्षी सदस्यों के मुददे मुश्किल से ही कार्यवाही में आ पाते है। वह सता पक्ष को नियमों की धज्जियां उड़ाकर तरजीह देते रहे है।
प्रश्नकाल के बाद बाकी विधायी कामकाज पूरा होने के बाद संसदीय कार्यमंत्री सुरेश भरदवाज ने इस मसले को सदन में उठाया व कहा कि विपक्ष की ओर से इस तरह से नोटिस देना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने नियमों का हवाला दिया कि यह नोटिस 14 दिन पहले दिया जाना चाहिए ताकि विधानसभा अध्यक्ष इस बावत कोई फैसला ले पाए। इसके बाद इस पर सदन में आगामी कार्यवाही होनी है। उन्होंने कहा कि यहां तो दस दिन का ही सत्र था।
इसके अलावा नियमों के मुताबिक यह नोटिस अगले सत्र के लिए भी वैध नहीं और यह स्वत: ही समाप्त माना जाएगा। विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के लिए एक तिहाई सदस्यों की आवश्यकता होेतीहै। इस नोटिस में 17 विधायकों ने दस्तख्त किए है अगर कांग्रेस के सभी सदस्य भी तो भी यह संख्या पूरी नहीं होती है। इसके अलावा विधायकों को यह सदन में उठाना होता है लेकिन यहा तो कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। भारदवाज ने कहा कि इस नोटिस को निरस्त कर देना चाहिए व वह इस वावत इस सदन में प्रस्ताव पेश करते है।
इस बीच वामपंथी विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि पिछले तीन चार दिनों में जिस तरह के हालात सदन में रहे है वह दुर्भायपूर्ण रहे है। अगर इस विवाद का निपटारा इस तरह से किया जाएगा तो विवाद समाप्त नहीं होगा व यह बढ़ता ही जाएगा। ऐसे में कोई बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए। अगर संसदीय कार्यमंत्री इस नोटिस को निरस्तत करने के प्रस्ताव सदन में पेश करते है तो वह खुद को इस से अलग करते है वह इसमें हिस्सा नहीं बनेंगे।
इसके बाद भारदवाज उठे व उन्होंने कहा कि यह नोटिस तो स्वत: की समाप्त हो जाएग क्योकिं यह नियमों के तहत ही नहीं है । उन्होंने कहा कि कांग्रेस विधायकों ने सियासी फायदा लेने की मंशा से इस तरह का नोटिस सदन में दिया है।
मुख्यमंत्रभ् जयराम ठाकुर ने कहा कि विपक्ष की मंशा राजनीति करने की है। नियमों में ऐसा नोटिस या प्रस्ताव लाने का प्रावधान ही नहीं है। यह गलत है।
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