शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने जिला अस्पताल ऊना के परिसर में फार्मेसी दुकान के आवंटन में वित्तीय अनियमितता के मामले में मुख्य सचिव को चिकित्सा अधीक्षक और मुख्य चिकित्सा अधिकारी ऊना के खिलाफ कानून का उल्लंघन करने के लिए उचित कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया है।अदालत ने कहा कि वित्तीय अनियमितताएं और उनकी ओर से किए गए ऐसे सभी कृत्यों के लिए, भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत भी मामले दर्ज किए जाए।
प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने ऊना जिला केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट अलाइंस एक याचिका की सुनवाई के बाद ये आदेश दिए हैं। खंडपीठ ने याचिका का मंजूर करते हुए इस बावत जारी की गई निविदा को खारिज कर दिया और मनीष कुमार जिसे यह आवंटन हुआ है को आदेश दिए कि वह 20 अगस्त से पहले कब्जे को जिला ऊना के सुपुर्द कर दें।खंडपीठ ने चिकित्सा अधीक्षक और मुख्य चिकित्सा अधिकारी से तमाम वितीय अधिकार छीन लिए है और कहा है कि जब तक जिला उपायुक्त इस मामले में जांच पूरी नहीं कर देते और भारतीय दंड संहिता की धारा के तहत कार्रवाई नहीं कर देते तब तक ये दोनों अधिकारी किसी भी तरह की वितीय शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। अदालत ने 23 अगस्त तक अनुपालना रपट तलब कर ली है।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि ऊना के क्षेत्रीय अस्पताल की रोगी कल्याण समिति ने अस्पताल के परिसर में फार्मेसी की दुकान आवंटित करने के लिए निविदाएं मांगी थी व इसके लिए एक लाख रुपए मासिक किराए और तीन साल बाद दस फीसद की बढोतरी के साथ याचिकाकर्ता की बोली बोली को मंजूर कर लिया गया थ। इसके अलावा दो लाख रुपए की जमाानत राशि जमा करने की शर्त भी थी। लेकिन बाद में अलावा फार्मेसी की दुकान आवंटित करने के लिए निविदा मंगवाई गई थी की थी। इसके अलावा दो लाख की जमानत रकम भी जमा करानी थी। लेकिन 18 मार्च 2020 को पता चला कि इस दुकान को 98 सौ रुपए के मासिक किराए पर किसी व्यक्ति को आवंटित कर दिया गया है। जिसे यह दुकान आवंटित की गई वह फार्मासिस्ट तक नहीं था।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने मुख्यमंत्री, सचिव स्वास्थ्य और निदेशक स्वास्थ्य तक को कई चिटिठयां लिखी लेकिन किसी ने कोई कार्रवाई नहीं की।
याचिकाकर्ता ने इल्जाम लगाया कि इस आवंटन को बिना को निविदा मंगवाए ही कर दिया गया । उसने इस आवंटन को खारजि करने कर आग्रह किया व आवंटन को तमाम कायदे कानून को अपनाते हुए करने का आग्रह किया।
अदालत ने पाया कि किसी गैर फार्मासिस्ट को फार्मेसी की दुकान का आवंटन करने से लोगों की जान को भी खतरे में डाल दिया गया है। इसके अलावा निविदा का प्रचार किया जाना चाहिए था ताकि जो सबसे ज्यादा बोली देता उसकी निविदा को मंजूर किया जाता । इससे सरकार को फायदा होता। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में वितीय अअनियमितताएं बरती गई है। पहले इस दुकान के आवंटन से सरकार को एक लाख रुपए प्रति महीना मिलना था। लेकिन इस आवंटन से कुल 98 सौ रुपए प्रति महीना मिल रहा है। जमानत रकम तक नहीं ली गई और केवल तीन महीने की अग्रिम रकम ली गई । खंडपीठ ने कहा कि इसे गलती नहीं माना जा सकता । यह जानबूझ कर किया गया कृत्य है।
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