शिमला। भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार के नाम वायरल हुई चिठठी में स्वास्थ्य विभाग में लगे भ्रष्टाचार के इल्जामों पर जयराम सरकार ने प्रदेश भर में बवाल मच जाने के बाद अब जाकर जवाब भेजा है। बताते है कि सरकार चिटठी के सूत्रधारों का इंतजार करते रहे कि वह सबूत लेकर भी सामने आएंगे। लेकिन जब कोई सबूत लेकर नहीं आया तो सरकार की ओर से जवाब भेजा गया। विपिन परमार से पूछा भी गया कि जवाब भेजने में इतने दिन क्यों लगा दिए व बस इतना बोले की चिटठी के सूत्रधार को सबूत देने चाहिए थे।
इस जवाब में शांता खेमे से स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार की ओर से ही जवाब आया है। जयराम सरकार में उद्योग मंत्री व धूमल खेमे के बिक्रम ठाकुर की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। शांता के नाम अनाम कार्यकर्ता की इस वायरल चिटठी में बिक्रम सिंह पर भी इल्जाम लगाए गए है।
सरकार ने कहा है कि वायरल इस चिटठी में स्वास्थ्य विभाग में दवा खरीद में अनियमितताओं को लेकर लगे आरोप पूरी तरह निराधार, तथ्यहीन और असत्य हैं। सरकार के प्रवक्ता ने पूर्व भाजपा विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेहद करीबी रविंद्र रवि व चिटठी के सूत्रधारों का नाम लिए बगैर कहा कि कुछ लोग जान-बूझकर भ्रांतियां फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें चाहिए कि लोगों को गुमराह करने के बजाय अगर उनके पास अनियमितता को लेकर कोई पुख़्ता सबूत है तो सरकार के सामने लाएं जिसकी छानबीन होगी और अगर कोई दोषी पाया जाता है तो उसके विरूद्ध उचित आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
प्रदेश सरकार ने एक प्रवक्ता ने आज यहां कहा कि यह कहना पूर्णत: गलत है कि किसी एक व्यक्ति को 35 करोड़ रुपये के सप्लाई आॅर्डर दिए गए हैं क्योंकि सरकार ने इस कार्य के लिए 42 फर्मांे को सूचीबद्ध किया गया है। ऐसे में किसी एक व्यक्ति विशेष को यह कार्य देने का सवाल ही नहीं उठता।
जहां तक आयुर्वेदिक विभाग में अधिक दरों पर दवाइयों को खरीदने का सवाल है, आयुर्वेद विभाग के तत्कालीन निदेशक को राजकीय कोष में 39 लाख रुपये के नुकसान और कुप्रबन्धन के लिए चार्जशीट किया गया है। इसी प्रकार क्रय समिति के तीन सदस्यों को भी निलम्बित किया गया है और लापरवाही व राजकोष में घाटे के लिए चार्जशीट किया जा रहा है।
इसी प्रकार, जिला मण्डी के एक डॉक्टर की ओर से 2 रुपये के बजाय 16 रुपये के अधिक मूल्य पर दवाइयां खरीदने संबंधी जो मामला उठाया गया है, वह निराधार है और विभाग के संज्ञान में ऐसा कोई मामला नहीं आया है।
उन्होंने कहा कि पालमपुर में दवाई की दुकान के आवंटन के संबध में मीडिया में उठाया गया मामला भी झूठा और आधारहीन है। यह दुकान 1997 से नागरिक आपूर्ति निगम को आवंटित की गई है, जिसमें फार्मासिस्टों की नियुक्ति नागरिक आपूर्ति निगम की ओर से ही की जाती है।
प्रवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में सभी दवाइयों, शल्य चिकित्सा उपकरणों और अन्य उपभोग्य सामग्री की खरीद में पूर्ण पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से अगस्त से प्रदेश में पहली बार ई-टेंडर प्रणाली आरंभ की है। इसके तहत दवा निमार्ताओं व आयातकों से सीधे तौर पर निविदाएं आमंत्रित की गईं, जिनमें 118 फर्मों ने भाग लिया और 73 फर्म स्वीकृत की गईं।
अब सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों और मेडिकल कॉलेजों के लिए सभी प्रकार की दवाइयों और उपकरणों की खरीद का कार्य ई-टेंडर के माध्यम से किया जा रहा है। वर्ष 2018 से पूर्व यह कार्य राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड की ओर से निर्धारित किए जाने वाले रेट कांट्रेक्ट के आधार पर होता था।
उन्होंने कहा कि ड्रग्स वैक्सीन वितरण प्रणाली पोर्टल के माध्यम से सबसे कम बोली लगाने वाले बोलीदाता के कोड को जनरेट करके सभी आपूर्ति आदेश जारी किए जा रहे हैं। इस प्रणाली को मुख्य चिकित्सा अधिकारी,चिकित्सा अधीक्षक,खण्ड चिकित्सा अधिकारी के स्तर पर संचालित किया जा रहा है।
प्रवक्ता ने कहा कि रेट कांट्रेक्ट के आधार पर अधिकतर दवाएं लेने के प्रयास किए गए और जो दवाएं रेट कांट्रेक्ट राज्य दर उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें सीपीएसयू, मेडिकल कॉलेजों व ईएसआई की अनुमोदित दरों, बीपीपीआई दरों जन औषधी और स्थानीय निविदाओं के आधार पर खरीदी जा रहा है। कुछ शर्तों के आधार पर मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व चिकित्सा अधीक्षकों को भी खरीद की अनुमति दी गई है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में लगभग 44 करोड़ रुपये की दवाइयां खरीदने के आदेश दिए गए हैं जिसमें लगभग 8.33 करोड़ की राशि जिला मण्डी से सम्बन्धित है। सारी खरीद प्रक्रिया हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अनुमोदित दरों पर की गई है। ब्रांडेड दवाएं किसी भी सीएमओ, बीएमओ या चिकित्सा अधीक्षक द्वारा नहीं खरीदी जा सकती क्योंकि रेट कांट्रेक्ट पर उपलब्ध सभी दवाएं जेनरिक हैं। अगर किसी को ब्रांडेड ड्रग्ज रेट कांट्रेक्ट से हटकर या बाहर से खरीदने का दोषी पाया जाता है तो उसके विरूद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी क्योंकि यह न केवल नियमों के विरुद्ध है बल्कि इससे राजकीय कोष को घाटा भी होता है। प्रवक्ता ने दावा किया कि विभाग दवाओं और उपकरणों की खरीद में पूरी पारदर्शिता बरत रहा है ।
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