शिमला। भोजन से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों पर रोशनी डालते हुए देश के जाने-माने कृषि विशेषज्ञ देवेद्र शर्मा ने कहा कि आर्थिक ग्रोथ के फेर में आज खाना जहरीला कर दिया गया हैं। आलम ये है कि देश का हर दूसरा आदमी व हर तीसरी महिला दवाओं का सेवन कर रही हैं।
देवेंद्र शर्मा एचपीयू में स्टेट काउंसिल फॉर साइंस,टैक्नालॉजी एंड इनवायरमेंट की ओर से आयोजित व्याख्यानमाला ‘क्नेक्टिंग द पीपल विद नेचर’के तहत अपना व्याख्यान दे रहे थे।
देश के लोगों की एक राय बन गई हैं कि अमेरिका में जो बनता है वो ही ठीक हैं । आजादी के बाद दिमाग की ये प्रोग्रामिंग कर दी गई हैं कि हमारे पास जो कुछ भी हैं दोयम दर्जे का हैं।नतीजतन खेती को हाशिए पर धकेल दिया गया हैं । सरकार जुमलेबाजी कर रही है कि किसानों की आय दुगुनी कर दी जाएगी लेकिन ये कोई नहीं बताता कि उनकी मौजूदा आय कितनी हैं।
उन्होंने कहा कि 17 राज्यों में किसानों की प्रति परिवार सालाना आय 20 हजार रुपए हैं।यानि प्रति परिवार 1700रुपए प्रति महीना। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि देश में किसानों की क्या स्थिति हैं।किसान जीवित कैसे हैं इस पर न तो कोई विवि रिसर्च करता है और ही कोई सरकार।देश के 60 करोड़ किसानों को बोझ समझा जा रहा हैं।ये आबादी अमेरिका की आबादी से दुगुनी है।
अब इस आबादी को गांवों से शहरों की ओर निकालने का काम हो रहा हैं।देश की कोशिश आर्थिक ग्रोथ बढ़ाने की हैं। ये अवधारणा गलत हैं। अगर देश के सारे पेड़ काट दिए जाए तो भारत की आर्थिक ग्रोथ 27 फीसद बढ़ जाएगा लेकिन पर्यावरण के लिए घातक होगा। ऐसा नहीं किया जा सकता ।लेकिन जीडीपी के नाम पर इसी तरह के प्रयास हो रहे हैं।जीडीपी का ये मॉडल संसाधनों की लूट कर लाभ कमाने का हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि न्यू डवलपमेंट मॉडल को अपनाया जाए और जुमलों से बचा जाए।
अमेरिका व यूरोप जैसे देश रिसर्च कर बता रहे हैं कि एशिया में धान की खेती करने से वातावरण में मिथेन जा रही हैं। जो पर्यावरण के लिए खतरा हैं।एक किलो धान उगाने के लिए पांच हजार लीटर पानी इस्तेमाल होता हैं। यही नहीं ये भी कहा जा रहा है कि दक्षिणी एशिया में गायों की आबादी बहुत ज्यादा हैं व ये भी मिथेन गैस को वातावरण में छोड़ती हैं। इन देशों का दबाव है कि धान की खेती व गायों को पालने पर रोक लगनी चाहिए। लेकिन जब इसका जवाब दिया गया कि अमेरिका में सौ ग्रामबीफ तैयार करने में सात हजार लीटर पानी बर्बाद होता हैं व अगर एक किलो बीफ तैयार करना हैं तो सत्तर हजार लीटर पानी इस्तेमाल होगा।ऐसे में उनकी दलीलें है कि ये उनका लाइफस्टाइल हैं इस पर बात नहीं की जा सकती। ये दोहरापन गलत हैं।
उन्होंने कहा कि बोतलबंद पानी की एक बोतल को तैयार करने में छह लीटर पानी का इस्तेमाल होता हैं और आरओ का 25 लीटर साफ पानी हासिल करने के लिए 75 लीटर पानी जाया जाता हैं।
शर्मा ने कहा कि पर्यावरण बदलेगा तो सबसे ज्यादा नुकसान हमें होगा।लेकिन हम झेल लेंगे। मिसाल देते हुए कहा कि 2014 में फ्रांस में 1 डिग्री तापमान बढ़ा तो वहां पर एक साल में दस हजारलोगोंकी मौत हो गई। अध्ययन बताते है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग हुई तो अमेरिका व यूरोप रहने के काबिल नहीं रहेंगे। उन्हें ये देश छोड़ने पड़ेंगे। इसलिए गरीब देशों पर इल्जाम नहीं लगाया जा सकता। गरीब देश प्रदूषण फैलाने वाले नहीं इसके शिकार हैं।
देवेंद्र शर्मा ने कहा कि ये अवधारणा बदलने की जरूरत है कि देश में जो भी हैं वो दोयम दर्जें का हैं। आजादी के बाद ये भावना ज्यादा बढ़ी हैं। लेकिन ऐसा नहीं हैं ।ब्राजील दुनिया में भारतीय नस्लों की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया हैं। गीर गाय गुजरात की गायों में से एक नस्ल हैं। ब्राजील में ये गाय 77.3 लीटर दूघ दे रही हैं। जबकि हमारे यहां दो तीन या चार किलो दूघ देती हैं। देश में गायों की 39 नस्लें हैं लेकिन इनकी तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। बाहरके देशों की क्रॉस ब्रीडिंग नस्लों को बढ़ाया जा रहा हैं। अपनी नस्लों को उन्नत करने की जरूरत हैं।उन्होंने तंज कसा कि हमारा तो गधा भी घटिया किसम का माना जाता है, उसकी पर्शिया से क्रॉसब्रीडिंग की जा रही हैं।
अमेरिकी उत्पाद कोकाकोला के लिए देश भर में क्रेज हैं ।लेकिन सच ये है कि कोकाकाला के छोटे गिलास में 23 चम्मच चीनी होती है जबकि बड़े गिलास में 44 चम्मच चीनी होती हैं। ऐसे में अंदाजा लगायाजा सकता है कि इसका स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा। मीडिया को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए कहा कि मीडिया में प्रचार ने लोगों की राय को मैन्यूफैक्चर किया हैं,जिसका गलत प्रभाव पड़ा हैं।
भोजन पर रजौता दिवाकर की किताब ‘इंडिया सुपर फूड’ का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ये किताब हरेक भारतीय को पढ़़नी चाहिए व भारतीय भोजन को लेकर जो भ्रम फैलाए जा रहे हैं,रजौता ने उन सब भ्रमों को वैज्ञानिक आधार पर रिसर्च कर तबाह कर दिया हैं।
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