शिमला। हिमाचल में अपनी सरकार होने के बावजूद भाजपा का सुपड़ा साफ होने के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की कुर्सी पर तलवार लटक गई है। चूंकि ये उपचुनाव 2022 को देखते हुए सेमीफाइनल माने जा रहे थे व उम्मीद जताई जा रही थी कि कम से कम दो सीटें तो भाजपा जीत ही जाएंगी।
मंडी संसदीय की जीत को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व उनका पूरा खेमा पूरी तरह से आश्वस्त था कि वह सीट निकाल लेंगे। इस सीट को निकालने के लिए मुख्यमंत्री ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। अधिकांश समय मुख्यमंत्री मंडी में ही प्रचार करते रहे।लेकिन वह जनता का मत अपने मनमाफिक करने में नाकाम रहे और बुरी तरह से हार गए।
याद रहे प्रदेश में चार नगर निगमों के चुनावों में दो में हार मिलने के बाद भाजपा आलाकमान ने पहले उतराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उनके पद से हटा कर उनकी जगह पर पुष्कर सिंह धामी की ताजपोशी कर दी थी। जयराम को हटाने की अटकलें तब भी लगी थी लेकिन आएसएस में पैंठ होने की वजह से जयराम ठाकुर अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहे थे।
लेकिन इन चार उपचुनावों में उन्होंने प्रदेश भाजपा का एकछत्र नेता बनने की चाहत पाल ली और अकेले ही अपने खेमे संग चुनावी रण में छलांग लगा दी। उनकी अगल-बगल में भी वो ही नेता रहे जिनका जनाधार न के बराबर हैं। इसी तरह सलाहकारों की भी वह जुंडली उन्हें घेरे रही जिनके पास जमीनी हकीकत का जरा भी इल्म नहीं थाा।अधिकारी अपनी ताजपोशी के लिए किसी की चरणधुलि जब तक माथे पर नहीं लगा लेते थे तब आदेश ही नहीं होते थे। चरणधुलि का यह चलन जयराम सरकार में अनोखा था। इससे अधिकारी ही नहीं विधायक व मंत्री भी खफा थे।
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल सरीखे वरिष्ठ भाजपा नेताओं जिनका प्रदेश में जनाधार है उन्हें इन चुनावों में कहीं फटकने तक नहीं दिया।
इसके अलावा भी पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेताओं जिनमें पूर्व सांसद महेश्वर सिंह, पूर्व भाजपा अध्यक्ष खीमी राम समेत दर्जनों नेताओं को अपने ही हलकों तक सीमित कर दिया।
यही नहीं सरकार के कामकाज के लेकर भी पिछले एक साल से पार्टी के स्तर पर कई बार प्रश्न चिन्ह उठे और पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह तक रपटें भेजी गई । लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ। सरकार के स्तर पर नौकरशाही पर लगाम नहीं रही और सरकार के कामकाज से नौकरशाही भी पूरी तरह असंतुष्ट रही। अपने ही अधिकारियों को ठिकाने लगाया जाता रहा। यह भान होने लगा कि सरकार को कोई रिमोट से चला रहा है ।
आलाकमान के डर के आगे हालांकि सराकर व संगठन में विद्रोह खुल कर सामने नहीं आ पाया लेकिन वरिष्ठ विधायक रमेश ध्वाला जैसे नेता अपने आवाज बुलंद करते रहे। लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।
यही नहीं पार्टी के वरिष्ठ व तेजतर्रार नेता राजीव बिंदल से लेकर पूर्व विधायक नरेंद्र बरागटा को हाशिए पर धकेले रखा। केवल जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर का ही डंका बजता रहा। सरकार के स्तर पर कुछ ही हलकों खास कर मुख्यमंत्री के हलके सिराज और काबिना मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर के हलके धर्मपुर में ही विकास के तमाम काम होते रहे , भाजपा के बाकी विधायक इसलिए भी नाराज रहे और इसका असर इन चुनावों में मिली हार के रूप में सामने आ भी गया।
अब जाहिर है कि जयराम ठाकुर अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं पाएंगे। उन्हें अब आरएसएस का साथ भी मिले यह संभव नहीं लग रहा है। हालांकि आखिरी फैसला तो आलाकमान को ही लेना है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि अगर उन्हें अपदस्थ किया जाता है तो उनकी जगह पर ताजपोशी किसकी होगी।
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