जीशानुल हक़
यह सच्चाई है कि जितनी सुविधाएँ शहरों में रहने वाले लोगों को मिलती हैं उतनी सुविधाएँ गांव में रहने वाले लोगों को नहीं मिल पातीं। भले ही सरकार कितनी भी उपलब्धियां गिना दे पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सरकार की नज़रें गांवों के बच्चों पर तभी पड़ती है जब वो अपने कद से ऊपर उठ कर कुछ कर गुजरते हैं। इस देश में अधिकांश प्रतिभाएं गांवों में जन्म लेती हैं और वहीं दम तोड़ देती हैं। हमसे ईतर कई देश प्रतिभाएं ढूंढ़ते हैं और उन्हें उचित प्रशिक्षण देकर लक्ष्य को साधते हैं।
अभी हाल का वाक्या जेहन में हैं। हिमाचल प्रदेश के ऊना ज़िले के ईसपुर गांव में जन्मी और 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा बक्शो देवी ने जिला स्तरीय स्कूल एथलेटिक्स में पांच हजार मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीत कर प्रदेश ही नहीं देश के लोगों को चौंका दिया।बक्शो इसलिए भी खास हैं क्योंकि उन्हें गरीबी की जंजीरें भी अपनी मंजिल हासिल करने से ना रोक पाई। स्वर्ण पदक की इस रेस के लिए बक्शो के पास ना तो ट्रैक सूट था और ना ही स्पोर्टस शू, उसने तो नंगे पैर और स्कूल की वर्दी में ही अपनी मंजिल को हासिल कर लिया।
बक्शो देवी के पिता करीब नौ साल पहले इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। लेकिन जब इरादे बुलंद हो तो गरीबी की जंजीरें तो क्या कोई भी जंजीर रास्ता नहीं रोक पाती हैं।
बक्शो देवी के पित्ताशय में पत्थरी थी ।उसे दौडते हुए दर्द उठने लगा, पर उसने मैदान में हार नहीं मानी और सुविधाओं से लैस लड़कियों को पीछे छोड़ सोने के तमगे को अपने सीने पर झूलने के लिए मजबूर कर दिया। बक्शो का सपना है कि वो उड़न परी पी. टी. ऊषा जैसी धावक बन कर देश को गौरवांवित करें।संभवत: ये सपना भी पूरा होगा। ऐसी बहुत सी प्रतिभाएं हमारे गांवों में मौजूद हैं बस ज़रुरत है उन्हें पहचानने और तराशने की।
महाराष्ट्र के प्रणव धनवाड़े ने तो ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि देश-दूनिया के सभी चैनलों पर कुछ दिनों से वही छाये हुए हैं। सारे दिग्गज मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर से लेकर सुनील गावस्कर जैसे तमाम क्रिकेटर भी उनका गुणगान कर रहे हैं। 15 वर्ष के इस जाबांज खिलाड़ी ने स्कूली क्रिकेट में 323 गेंदों पर 1009 रन का जादुई आंकड़ा पार कर सभी को दांतों तले ऊंगली दबाने पर मजबूर कर दिया। 117 साल पुराना रिकार्ड तोड़ कर एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। प्रणव के पिता पेशे से टैक्सी ड्राइवर हैं।
अब ज़रा सोचिए अभी ये आलम है तो जब इन होनहारों को सारी सुविधाएं मुहैया करा दी जाएंगी और बेहतर ट्रेनर से ट्रेनिंग दिलवाई जाएंगी तब क्या होगा। ऐसी बहुत सारी प्रतिभाएं रोज़ाना पनप रही हैं, पर ज़रुरत है उन्हें पहचानने की। तभी हमारे देश के युवा इतिहास के पन्नों पर नई इबारत लिख पाएंगें।
जीशानुल हक़ बिहार के गोपालगंज में पत्रकार हैं।
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