शिमला। अदाणी समूह की प्रदेश में एंट्री कांग्रेस के जमाने में हुई थी जब प्रदेश में सेब के कारोबार को उसके लिए इजाजत दी गई थी। अब बागवान अदाणी समूह पर बाजार में सेब कीमतें प्रभावित करने के लगातार इल्जाम लगा रहे हैं। पिछली बार अदाणी समूह के शीत भंडारों के बाहर बागवानों ने धरने प्रदर्शन भी किए। लेकिन ज्यादा कुछ नहीं हुआ।
उसके बाद 2008 में धूमल सरकार की सरकार में अदाणी समूह ने 980 मेगावाट के जंगी थोपन बिजली परियोजना में नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल की ओर से 280 करोड का अप फ्रंट मनी और जुर्माना जमा कराया था। इस परियोजना के ठेका वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल कंपनी को दिया था। लेकिन बाद में 2009 में उच्च न्यायालय में यह आवंटन रदद हो गया।
इसके बाद मामले में सुपी्रम कोर्ट में चले गए।इस रकम को उसने 2019 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर वापस लेने का मुकदमा जयराम सरकार के कार्याकाल में ही जीत लिया हैं। यह मामला उसने जयराम सरकार के कार्याकाल में दायर किया और उसी सरकार के कार्याकाल में इसका फैसला भी हो गया।
अभी यह मामला अपील में है और मामले में स्टे नहीं मिला हैं। यह रकम अदाणी पावर ने ब्रेकल कंपनी के लेटर पैड पर ब्रेकल की ओर से जमा कराई थी। लेकिन उसने कभी भी इस रकम को ब्रेकल से नहीं मांगा।उल्टे सरकार से मांगा।
2015 -16 में पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार ने जंगी थोपन मामले को अंबाणी की कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को देने का अजीबों गरीब फैसला लिया था व साथ ही तय किया कि रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर से मिलने वाली अफ फ्रंट मनी की रकम में से अदाणी समूह का अप फ्रंट मनी को वापस लौटा दिय जाएगा। यह फैसला एक तरह से गैर कानूनी था ।लेकिन यह बिंदु कभी कहीं उठा ही नहीं न भाजपा ने उठाया और कांग्रेस ने । दिलचस्प यह है कि इस मसले पर वामपंथी भी खामोश रहे।
जब ब्रेकल ने जंगी थोपन परियोजना पर काम नहीं किया और उच्च न्यायालय ने इस आवंटन् को रदद कर दिया तो यह रकम ठेके के विभिन्न प्रावधानों के तहत जब्त हो जानी थी। लेकिन इसके बावजूद वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015-16 में इस रकम को अदाणी को लौटाने की चिटठी भेज दी । लेकिन बाद में जब 2017 के चुनावों के लिए आचार संहिता लग चुकी थी दिसंबर महीने में इस चिटठी को अचानक वापस ले लिया। अदाणी ने इसी चिटठी को चुनौती दे दी व जयराम सरकार इस मसले को अदालत मे हार गई। वह कैसे हारी यह जांच का विषय हैं। जो सुक्खू सरकार में करने की हिम्मत नहीं लग रही हैं।
इसके अलावा अदाणी समूह की कंपनी अदाणी विल्मार लिमिटेड को खादय आपूर्ति निगम और कुछ और सरकारी अदारों को खादय सामाग्री की आपूर्ति का काम दिया गया हैं। यह काम भी जयराम सरकार में ही दिया गया हैं। विल्मार कंपनी के वेयर हाउस पर पिछले दिनों परवाणु में सुक्खू सरकार की आबकारी व कराधान विभाग ने छापेमारी की थी।इसे अदाणी समूह ने बाद में निरीक्षण करार दिया था। इस छापेमारी या निरीक्षण में क्या निकला इस बावत पूरी सुक्खू सरकार खामोश हैं।
याद रहे बेक्रल कंपनी के खिलाफ विजीलेंस ने धारा 420 के तहत मुकदमा दायर कर रखा हैं। इस मुकदमें में ब्रेकल कंपनी के कर्ताधर्ता फरार हैं। उनको पकडने के लिए जयराम सरकार में व अब क्या क्या कदम उठाए गएहैं इस बावत कुछ जानकारी नहीं हैं। दिलचस्प यह है कि इस मामले कोविड के दौरान ब्रेकल कंपनी के दो निदेशकों बाहल बंधुओं जमानत की अर्जियां दाखिल की थी। जयराम सरकार में विजीलेंस ने एक बंधु की जमानत याचिका का विरोध किया व दूसरे की याचिका कोई विरोध नहीं किया । ऐसे में दोनों बाहल बंधुओं को जमानत मिल गई थी।
जंगी थोपन मामले में 2006 से लेकर अब तक वीरभद्र ,धूमल और जयराम सरकार में क्या-क्या हुआ है इस बावत जांच हो जाए तो कारोबारियों, राजनेताओं और नौकरशाहों की कलाबाजियों का खुलासा हो जाएगा। लेकिन सुक्खू सरकार ऐसी कोई जांच करा पाएगी ऐसे आसार नजर नहीं आ रहे हैं। अब तक कानूनविदों की टीमें एक-एक मसले पर पडताल कर चुकी होती।
विल्मार कंपनी के बाद अदाणी समूह ने 2022 में बिलासपुर के बरमाणा में एसीसी और दाडलाघाट में अंबुजा सीमेंट कंपनी का अधिग्रहण कर लिया । जैसे ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी अदाणी समूह ने मालभाडे के मसले पर 14 दिसंबर को अचानक इन दोनों कारखानों को बंद कर दिया व सात हजार ट्रक आपरेटरों को सडक पर ला दिया। तब से लेेकर अब तक सुक्खू सरकार ने अदाणी समूह की कंपनी के प्रबंधन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की हैं। वार्ताओं पर वार्ताओं के दौर चला रही हैं।
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