शिमला।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल से न जाने क्या नाराजगी है कि उन्हें भाजपा ने पिछले पांच सालों से हाशिए पर ही धकेला हुआ हैं।
केंद्र सरकार की ओर से आए दिन विभिन्न राज्यों के राज्यपालों को तैनात व उनके तबादले किए जा रहे हैं। लेकिन इन फेहरिस्तों में धूमल का कहीं नाम ही नहीं आता हैं।
आज भी 13 राज्यपालों की तैनाती व तबादले किए गए हैं। हिमाचल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर का तबादला बिहार कर दिया गया है । उन्हें बिहार का राज्यपाल बना दिया गया हैं। जबकि हिमाचल का राज्य पाल शिव प्रताप शुक्ला को बनाया गया हैं।
हिमाचल में धूमल के करीबी नेताओं को इस बात की हैरानी है कि केंद्रीय नेताओं को धूमल का चेहरा व नाम क्यों याद नहीं आता होगा। यह सही है कि 2017 का विधानसभा चुनाव हार जाने के बाद प्रदेश में संगठन व सरकार में जो खेमा सता में काबिज हुआ उसने धूमल को ठिकाने में लगाने कोई कोर कसर नहीं छोडी।धूमल सुजानपुर से विधानसभा का चुनाव लडना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पूरी तैयारी भी कर ली थी। लेकिन आखिर में उन्हें यह कहने के लिए मजबूर कर दिया गया कि वह चुनाव नहीं लडना चाहते हैं। हमीरपुर में पांचों सीटें कांग्रेस जीत ले गई।
अकेले धूमल को ही नहीं उनके करीबी बाकी नेताओं और उनके समर्थकों को भी हाशिए पर धकेले रखा। नतीजतन भाजपा उप चुनावों में तीन विधनसभा की और एक लोकसभा की सीट हार गई व अब ताजा-ताजा विधानसभा के चुनावों में भी उसे हार मिली हैं। विधानसभा चुनावों में हार पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और भाजपा के राज्य अध्यक्ष सुरेश कश्यप और संगठन् मंत्री पवन राणा की ही नहीं बल्कि यह हार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नडडा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की भी हैं।
मोदी व शाह ने चुनावों के आखिरी दस दिनों में प्रदेश भर में पूरी ताकत झोंक दी थी । यही नहीं गुजरात के चुनावों के घोषणा भी तब करवाई जब प्रदेश में मतदान के लिए चंद दिन ही बचे थे। लेकिन भाजपा तब भी हार गई। इस हार को यूं हवा कर देना अपने आप में दिलचस्प तो है ही भाजपाइयों की अंदरूनी स्थिति को भी बयान करता हैं।
मजेदार है कि विधानसभा चुनावों में हार के कारणों को लेकर भाजपा पूरी तरह से खामोश हैं। बीते दिनों ऊना में भाजपा की कार्यसमिति की दो दिन तक बैठक हुई। पार्टी विधानसभा चुनाव क्यों हारी इस बावत कार्यसमिति की बैठक के बाद नेताओं की ओर से एक शब्द नहीं बोला गया।
अब 2024 में लोकसभा के चुनाव है अगर जमीनी स्तर के भाजपाइयों का ठिकाने लगाने का काम जारी रहा तो इन चुनावों में क्या होगा इसका अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं हैं।
बहरहाल , भाजपा आलाकमान विभिन्न राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति कर ही रही हैं। ऐसे में धूमल को किसी भी राज्य का राज्यपाल बनाकर भेजा जा सकता हैं। इससे प्रदेश में तो भाजपा को फायदा होता ही साथ ही पडोसी राज्यों में भी भाजपा को मजबूत करने में मदद मिलती।
लेकिन मोदी व शाह की न जाने कौन सी नाराजगी है जो कि धूमल को लगातार पर हाशिए पर धकेला हुआ हें। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नडडा भी तो उनके सहयोगी हैं।
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