शिमला।कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी आका सोनिया गांधी व उनके पुत्र राहुल के गांधी के भूमि अधिग्रहण अधिनियम को प्रदेश की वीरभद्रसिंह सरकार व उनके लाडले नौकरशाह तार-तार करने पर जुटे है।इस अधिनियम को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2013 में संसद में मंजूर कराया था।
मामला हिमाचल प्रदेश के कुल्लू- मंडी में बनने जा रहे नागचला-मनाली फोरलेन से जुड़ा है। जहां पर फोरलेन के लिए किसानों की जमीनें अधिग्रहण हो रही है।जमीन मालिकों ने एलान किया है कि अगर संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ तो नेशनल हाइवे अथारिटी को जमीनों पर घुसने नहीं दिया जाएगा।
सरकार के खिलाफ जंग का एलान करते हुए फोरलेन संघर्ष समिति ने कहा कि सरकार व उसके बाबू एक्ट की अवहेलना कर संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे है। भूमि अधिग्रहण अधिनियम की मूल भावना को तार -तार कर रख दिया।आलम ये है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से लेकर उनके राजस्व व कानून मंत्री कौल सिंह ठाकुर,हिलोपा के अध्यक्ष महेश्वर सिंह,नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल के अलावा मंडी व कुल्लू जिलों के संबधित राजस्व अधिकरियों, डीसी,डिविजनल कमिशनर,राजस्व सचिव तक अपनी फरियाद पहुंचा चुके है लेकिन अधिनियम बावजूद इसके लागू नहीं किया जा रहा है।समिति ने 28 जनवरी को मंडी में विरोध रैली करने का एलान किया है।
समिति के अध्यक्ष ब्रिगेडियर( रिटायर)खुशाल ठाकुर ने एलान किया कि इस फोरलेन के लिए करीब दस हजार किसानों व बाकी लोगों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है। लेकिन मुआवजा भू अधिग्रहण अधिनियम 2013के प्रावधानों के तहत नहीं दिया जा रहा है। चूंकि ये अधिग्रहण अधिनियम की आपात धाराओं के तहत हो रहा है ऐसे में सरकार उनकी जमीनों की मालिक तो बन जाएगी लेकिन किसानों व बाकी लोगों को मुआवजा कौडि़यों के भाव मिलेगा। वह राजधानी में संवाददाताओं से सरकार व सरकार के बाबूओं की कारगुजारियों का भंडाफोड़ रहे थे।
ये तब है जब अधिग्रहण का सारा पैसा केंद्र की मोदी सरकार ने देना है। लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार व उनके बाबू सरेआम किसानों के हितों के खिलाफ पूरी ताकत से खड़े हो गए है।यही नहीं बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेशों व सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को भी वीरभद्र सिंह सरकार ने ताक पर रख दिया है।
समिति के महासचिव ब्रजेश महंत ने कहा कि किसान अपनी जान दे देंगे लेकिन अधिनियम की मू भावना को लागू किए बगैर जमीन सरकार के हाथ में नहीं जाने देंगे। बेशक इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।
यहां ये उल्लेखनीय है कि जब मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के इस अधिनियम को बिल लाकर पलटने की मुहिम छेड़ी थी तो कांग्रेस पार्टी व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लाडले व युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य ने प्रदेश भर में अपनी ब्रिगेड लेकर आंदोलन किए थे। समिति ने मुख्यमंत्री के अलावा उनके लाडले से भी सवाल पूछा है कि वो बताएं कि क्या ये आंदोलन महज दिखावा था।
ब्रिगेडियर खुशाल ने कहा कि सोनिया गांधी की पार्टी के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सरकार ने किसानों को मिलने वाले मुआवजे को फैक्टर एककी अधिसूचना जारी कर दी जो बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना है ।इस बावत मोदी सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विकास के संयुक्त सचिव हुक्म सिंह मीणा की प्रदेश के मुख्य सचिव पी मित्रा को 15दिसंबर 2015 को लिखी चिटठी भी मीडिया को जारी की। जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेशों को मानने का आदेश दिया गया है।इस चिटठी को भी वीरभद्र सिंह सरकार के बाबूओं ने रददी की टोकरी के हवाले कर दिया है।मुख्यमंत्री तो मुख्यमंत्री तो राजस्व व कानून मंत्री कौल सिंह ठाकुर जिनकी खुद की जमीन भी अधिग्रहित हो रही है,सर्कल रेट बढा़ने का चुग्गा डाल रहे है। जबकि अधिनियम में मार्केट रेट का प्रावधान है।
यहां पढ़े ये चिटठी-:
ब्रिगेडियर खुशाल ने कहा कि अधिग्रहण का सारा पैसा केंद्र सरकार ने अदा करना है और प्रदेश सरकार को 9 प्रतिशत कमीशन मिलना है।फैक्टर एक कानून के मुताबिक लागू ही नहीं किया जा सकता।
यही नहीं जिला कलेक्टर/डीसी को अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होने के बाद अधिग्रहित होने वाली जमीन की मौजूदा मार्केट कीमत निर्धारित करनी थी।लेकिन आरटीआई के जवाब में कहा गया है ये काम अभी नहीं किया है।वीरभद्र सरकार के बाबू सर्कल रेट को मार्केट रेट बनाने का कारनामा दिखाने में जुटे है।
उन्होंने दावा किया कि सर्कल रेट व मार्केट में जमीन -आसमान का फर्क है। ये किसानों से जमीनें जबरन छीनने जैसा है।उन्होंने दावा किया कि जिन जमीनों की बाजार कीमत कीमत छह से 10 लाख रुपए है उसके सरकार 40 हजार देने का कारनामा दिखाने जा रहा है।उन्होंने कहा कि ये मामला नागचला से मनाली तक बनने वाले फोरलेन का ही नहीं है। बल्कि प्रदेश में बनने वाले सारे फोरलेन का मामला है।
खुशाल ठाकुर ने एक और खुलासा किया कि नागचला से मनाली तक के फोरलेन की बोली पीपीपी मोड में की गई है इसमें जमीन की कीमत सहमति से तय होनी है लेकिन इससे जमीन मालिकों को अंधेरे में रखा गया है।यही नहीं सरकार अधिग्रहण अधिनियम और नेशनल हाइवे अथारिटी एक्ट का घालमेल कर जमीन मालिकों को सताया जा रहा है।अधिनियम में रिहैबिलिटेशन व रिसेटलमेंट का प्रावधान भी है। लेकिन इसकी अधिसूचना जारी ही नहीं की गई है।ऐसे में तो ये कानून 1894 के अंग्रेजों के कानून से भी घातक होगा।
पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का कत्लेआम कर दिया है।यही नहीं कुल्लू -मनाली ब्लाक में 3डी की कार्यवाही के अलावा सड़क निर्माण के टेंडर भी हो चुके है । जमीनों को रौंदने के लिए बुलडोजर व मशीनें भी आ गई है।लेकिन जमीन मालिकों को न तो अपनी जमीनों की एवज में मिलने वाली कीमतों का पता है और न ही पुनर्वास व पुनर्स्थापन का।किसानों से कोई संवाद नहीं कर रहा है।इसके लिए कोई कमेटी ही नहीं बनी है। अब सारे मामले को बाबूओं ने लॉ विभाग को भेजा है। इससे लाखें रुपए की तनख्वाह हजम करनेवाले एसडीएम से लेकर डीसी व अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व कटघरे में आ गए है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व राजस्व व कानून मंत्री कौल सिंह तो पहले ही कटघरे में है।संवाददाता सम्मेलन में मंगत राम शर्मा,धर्मेेंद्र ठाकुर और रुचिर चौहान ने भी शिरकत की।
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