शिमला। जिला किन्नौर में लगने वाला 960 मेगावाट का जंगी थोपन हाइडल पावर प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लाडले उदयोगपतियों अंबाणी व अदानी के हाथों से छिटक गया है।2006 से लेकर अब तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के शासन में सता के गलियारों में हाहाकार मचा देने वाले इस छह हजार करोड़ के प्रोजेक्ट को आगे किसे देना है इसका जिम्मा अब मोदी सरकार के उपक्रम को सौंपने का फैसला लिया गया है। ये फैसला शिमला में बुधवार को हुई केबिनेट में लिया गयाा।
बेहद विवादास्पद रहे जंगी-थोपन 960 मैगावाट जल विद्युत परियोजना के इस माामले में बहुद्देशीय परियोजनाएं एवं ऊर्जा विभाग को केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों के साथ समझौता करने के लिए प्राधिकृत किया।अब ये आगे समय ही बताएगा कि इस विवादास्पद प्रोजेक्ट को लेकर आगे क्या होना है।
इस प्रोजेक्ट को लेने से देश केे टॉप कारपोरेट रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लि. ने अचानक लेने से इंकार कर दिया। रिलायंस ने इस प्रोजेक्ट को हासिल करने के लिए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक 2009 से लेकर 2016 तक लंबी जंग लड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट से मामले को वाापस लेने से पहले 2015 में प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार ने बेहद दिलचस्प परिस्थितियों में इस मेगा पावर प्रोजेक्ट से रिलायंस को देने का फैसला कर लिया था।
एनर्जी विभाग ने रिलायंंस को लेटर ऑफ इंंटेट भी दे दिया था। जिसे रिलायंस ने मंजूर भी कर लिया था।बदले में रिलायंस ने हा था कि सुप्रीम कोर्ट से मामले को वाापस लेने के लिए सरकार व रिलायंंस ज्वाइंट अर्जी दायर करेंगे।वीरभद्र सिंह सरकार इसके लिए भी राजी हो गई। इसके अलावा रिलायंस ने सरकार से आग्रह किया था कि वो केंद्र से पर्यावरण मंजूरियोंं को सैंद्धातिक तौर पर ले दें। सरकार ने इसे नहीं माना थ।
सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट से मामला वाापस लेने के लिए रिलायंस व सरकार ने प्रक्रियाएंं भी शुरू कर दी। इस बीच दिलचस्प परिस्थितियां बदल गई। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के शिमला आवास हॉली लॉज में वीबीएस रिश्वत कांड व आय से अधिक संपति मामले में सीबीआई की छापेमारी हो गई और ये मामला लटकता गया व सरकार नेे यूटर्न लेते हुए रिलायंस को दो टूक कह दिया कि उसने मुकदमा दायर कर रखा है वहीं अपनी याचिका वापस लेने केे लिए अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दायर करे। मजबूरन रिलायंंस को खुद ही मामला वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल लेनी पड़ी।
2015 में ही जब प्रदेश की वीरभद्र सिंह केबिनेट ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को देने का फैसला लिया था, उसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी के बेहद करीबी कारपोरेट अदाणी की कंपनी को भी 280 करोड़ रुपए लौटाने का फैसला लिया गया था।सरकार ने तय किया थाकि जब रिलायंस अफ्रंट मनी जमा कराएगा तो उसमें से अदाणी की कंपनी का पैसा वापस लौटा दिया जाएगा।लेकिन अब बदली परिस्थितियों में रिलायंस ने प्रोजेक्ट लेने से इंकार कर दिया है। ऐसे में अदाणी की कंपनी को 280 करोड़ रुपया सरकार कैसे वाापस करेगी इस पर सबकी निगाहेंं लगी है।
दरअसल माजरा बेहद दिलचस्प व संगीन है। 2006-07 में प्रदेश की तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने 960 मेगावाट के जंगी थोपन हाइडल पॉवर प्रोजेक्ट को को विदेशीी कंपनी ब्रेकल को आंवटित कर दिया।प्रोजेक्ट के लिए लगाई बोली में ब्रेकल की बोली सबसे ज्यादा थी। लेकिन इस कंपनी ने निर्धारित अवधि में अपफ्रंट मनी जमा नहीं कराया। दूसरी ओर रिलायंंस इंफ्रास्ट्रक्चर लि. ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी व ब्रेकल कंपनी की कई खामिया उजागर कर दी। मामला लटकता रहा व दिसंबर 2007 में प्रदेश में वीरभद्र की सरकार सता से बाहर हो गई व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की कमान में भाजपा की सरकार सता में आ गई और इस बीच हाईकोर्ट के दखल के बाद ब्रेकल ने अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए जमा करा दिए।
धूमल सरकार ने मामले की विजीलेंस जांच कराई व ब्रेकल की ओर से दी गई बहुत सी जानकारियोंं को गलत पाया गया। धूमल सरकार इस आवंटन को रदद करने की दिशा में आगे बढ़ ही रही थी अचानक पता नहीं क्या हुआ कि धूमल सरकार ने इस मामले को सरकार के टॉप नौकरशाहों की कमेटी कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज के सुपुर्द कर दिया। इस कमेटी ने बेहद दिलचस्प स्टैंड लिया और आवंटन को रदद करने के बजाय ब्रेकल को ही देने की सिफारिश कर दी। मजे की बात यह कि धूमल सरकार ने बड़ा यूटर्न लेते हुुए इस प्रोजेक्ट को ब्रेकल को ही अाावंटित कर दिया।
जब कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज की बैठक में इस मामलेे में मंथन चल रहा था तो उस समय आश्चर्यजनक तरीके से अदाणी की कंपनी के प्रतिनिधि भी इस बैठक में मौजूद थे।वे किस हैसियत से बैठक में मौजूद रहे थे इसका खुलासा धूमल व वीरभद्र सिंह ने आजतक नहीं किया है।
इस दौरान यह सामने आया कि ब्रेकल कंपनी जो अपफ्रंट मनी जमा कराया है उसे अदाणी की कंपनी ने ब्रेकल को दिया था। लेकिन अदाणी की ये कंपनी कभी भी ब्रेकल की कंसोर्टियम नहीं है। हालांकि 2007 में ब्रेकल को प्रोजेक्ट आवंटित होने के बाद अदाणी की कंपनी ने कंसोर्टिंयम का हिस्सा बनने का आवेदन किया था। लेकिन इस पर कभी कोई फैसला नहीं हुआ।
धूमल सरकार ने जब ये प्रोजेक्ट सारा कांड बाहर आने के बाद भी ब्रेकल को ही आवंटित कर दिया तो रिलायंस ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक गुप्ता की अदालत ने 2009 इस आवंटन को रदद कर दिया व ब्रेकल व धूमल सरकार के तत्*कालीन नौकरशाहों की बनी कमेटी ऑफ सेक्रेटरीज को लेकर बेहद संगीन टिप्पणियां जजमेंट कर दी। अदालत ने इस आवंटन को रदद करतेहुए कहा कि अगर सरकार इसे रिलायंस को देना चाहती है तो रिलायंस को दे दे या दोबारा बोली लगाए। धूमल सरकार ने प्रोजेक्ट की दोबारा बोली लगाने का फैसला लिया।जिसके खिलाफ रिलाायंस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया।उधर ब्रेकल ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया कि हिमाचल हाईकोर्ट ने आवंटन को रदद कर गलत फैसला लिया है।
इस बीच अदाणी की कंपनी ने भी ब्रेकल की याचिका में अर्जी दायर कर दी व सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अपफ्रंट मनी उसने जमा कराया था।इस कंपनी ने बैंक की स्टेटमेंट भी रिकार्ड पर लाई। लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया कि उसने अदाणी की कंपनी से कभी भी अपफ्रंट मनील नहीं लिया। ये अदाणी की कंपनी व ब्रेकल के बीच का मामला है और इससे सरकार को कोई लेना देना नहीं है।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये भी कहा कि प्रोजेक्ट में देरी करने के लिए ब्रेकल पर 2775 करोड़ का हर्जाना लगाने का नोटिस दिया है व अप फ्रंट मनी को जब्त किया जाना है। सरकार की ओर से अदालत में ये स्टैंडलेने के बाद ब्रेकल ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस ले ली।ऐसेमें अदाणी की कंपनी की अर्जी भी तबाह हो गई ।लेकिन न तो 2775 करोड़ का जुर्माना कभी वसूला गया और न ही 280 करोड़ रुपए जब्त ही हुए। जबकि रिलायंंस की याचिका सुप्रीम कोर्ट में चलती रही।
ब्रेकल की ओर से याचिका वापस लेने के बादअदाणी की कंपनी ने मौजूदा वीरभद्र सिंह सरकार को 280 करोड़ रुपया लौटाने के लिए चिटिठयां लिखनी शुरू कर दी।इस बीच केंद्र में मोदी सरकार सताा में आ गई और वीरभद्र सिंह पर सीबीआई काा शिकंजा कसता गया।
ऐसे में 2015 को वीरभद्र सिंह सरकार ने उपरोक्त सारे तथ्यों के बावजूद अदाणी की कंपनी का 280 करोड़ रुपया लौटाने का फैसला ले लिया। तब से लेकर ये मामला चला हुआ हैंैं।
हाल ही वीरभद्र सिंह सरकार के टॉप अफसरों में से अतिरिक्त मुख्य सचिव पॉवर तरुण श्रीधर ने निदेशक एनर्जी समेत कई संबंधित विभागों को एक दिलचस्प चिटठी लिखी व उनकी राय मांगी कि क्या इस प्रोजेक्ट को दोबारा ब्रेकल को दिया जा सकता है या नहीं। इसके अलावा इस प्रोजेक्ट की दोबारा बोली लगाने व केंद्रीय या राज्य सरकार के उपक्रमों को देने बारे भी राय मांगी थी। बताते है कि ब्रेकल वाले बिंदु पर अफसरों के हाथ पांव फूल गए थे व विजीलेंस समेत उन्होंने आवंटन को लेकर साफ मनाा कर दिया।
अब सरकारने पावर विभाग को ही इस मामले को केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के साथ उठाने का फैसला लिया है। निश्चित तौर पर ये मामला आगे भी दिलचस्न होगा।
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