शिमला। पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार के दौरान मिलीभगत के चलते 2006-07 में कथित तौर पर जाली दस्तावेजों के आधार पर अनुमानत: नौ हजार करोड़ रुपए के 960मेगावाट के जंगी थोपन पावर परियोजना को हासिल करने वाली कंपनी नीदरलैंड की ब्रेकल कारपोरेशन एन वी के एक निदेशक मनीष वाहल को विजीलेंस ने 9 अक्तूबर को पूछताछ के लिए बुलाया है।
भारी दबाव के अलावा लंबी जददोजहद व कानूनी मजबूरी के चलते विजीलेंस ने अगस्त 2019 में ब्रेकल कारपोरेशन के खिलाफ मामला दर्ज किया था। लेकिन तब से लेकर अब तक इस मामले में आरोपियों से पूछताछ नहीं हो पाई। विजीलेंस ने मनीष वाहल को पहले 29 सितंबर को डीएसपी विजीलेंस के कार्यालय में पेश होने के निर्देश दे दिए थे । इस पर वाहल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया।अदालत में वाहल ने कहा कि इस मामले में अगस्त 2019 में एफआइआर दर्ज की थी लेकिन आल ही में उन्हें विजीलेंस के कार्यालय में हाजिर होने का नोटिस भेजा है।वह मुबंई में रहते है और कोरोना महामारी की वजह से शिमला पहुंचना आसान नहीं हैं। उनकी अर्जी पर अदालत ने अगली सुनवाई तक एक लाख रुपए के मुचलके पर उन्हेंै अंतिरम जमानत दे दी और दोनो पक्षों की सुविधा के मददेनजर वाहल को नौ अक्तूबर को विजीलेंस के सामने पेश होने के आदेश दिए है।
इतनी देरी से इस मामले में बनाए गए आरोपी को पूछताछ के बुलाने को लेकर विजीलेंस ही नहीं जय सरकार भी सवालों के घेरे में है। जबकि पीपीइ किट घोटाले में तत्कारलीन भाजपा अध्यरक्षराजीव बिंदल को पद से हटाना था तो पीपीइ घोटाले में एफआइआर भी और गिरफतारी तुरंत हो गई थी।
विजीलेंस इस मामले में अभी 2008 से पहले के कारनामों कही जांच कर रही है लेकिन पूर्व की प्रेम कुमार धूमल सरकार और उसके बाद पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार के दौरान इस मामले में क्याम –क्यास गुल खिलाए गए है, उनकी जांच भी होगी इसे लेकर अभी कुछ भी नहीं कहा जा रहा है। इस 960 मेगावाट की परियोजना के आवंटन को प्रदेश हाईकोर्ट ने रदद कर 2009 में रदद कर दिया था। तब से लेकर तत्कावलीन धूमल व वीरभद्र सिंह सरकारों में इस मामले में तत्काकलीन दोनों मुख्य मंत्रियों व वरिष्ठू आइएएस अधिकारियों ने कानूनों की धज्जिकयां उड़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
अदाणी पावर ने इसी ब्रेकल की ओर जमा कराया था अप फ्रंट मनी
याद रहे अदाणी पावर ने इसी ब्रेकल कारपोरशन एनवी को आवंटित इस 960 मेगावाट की परियोजना की एवज में जुर्माने समेत 280 करोड़ का अप फ्रंट मनी जमा कराया था। इस रकम को लौटाने को लेकर अदाणी पावर भी हाईकोर्ट में है।विजीलेंस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आखिर ब्रेकल कारपोरेशन को खड़ा करने के पीछे किसका हाथ है। अधिकारियों की माने तो ब्रेकल ने दुनिया में एक भी यूनिट पन बिजली का आज तक उत्पादन नहीं किया है।ऐसे में वीरभद्र सिंह ने इस परियोजना को ब्रेकल को आवटिंत कर दिया व 2008 में धूमल ने तमाम तथ्यद सामने आने के बाद भी इसे ब्रेकल के पास ही क्यों रहने दिया।क्याम कोई लेनदेन हुआ था।इसके बाद वीरभद्र सिंह सरकार में 2014 के बाद ब्रेकल पर सरकार के खजाने को नुकसान पहुंचाने की एवज में 2700 करोड़ के जुर्माने का नोटिस भेजा था उसे क्यों वापस लिया गया ।
वीरभद्र सरकार ने इस परियोजना को किस कानून के तहत अंबाणी इ्रफ्रास्ट्राकचर को आवंटित कर दिया व अदाणी पावर को 280 करोड़ का अप फ्रंट मनी लौटाने का फैसला किस कानून के तहत लिया था। ये तमाम सवाल है जिनका जयराम की विजीलेंस को प्रदेश की जनता को जवाब देना है।इसके अलावा2010 से लेकर 2019 तक इस मामले में एफआइआर दर्ज करने में किसने रुकावट डाली ये भी जांच के दायरे में आना चाहिए।बहर हाल नौ अक्तूरबर को वाहल की पूछताछ हो पाती है या नहीं और क्या विजीलेंस वाहल की अंतिरम जमानत का विरोध कर पाती है ये अहम सवाल है।
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