शिमला। अपनी फसलों को बचाने के लिए प्रदेश में चूहे मारने की दवा का इस्तेमाल कर प्रदेश के किसानों ने हजारों बंदरों का सफाया कर दिया है। यह दावा किसी और ने नहीं बल्कि प्रदेश किसान सभा के विभिन्न जिलों से आए किसान प्रतिनिधियों ने खुद किया है। किसान सभा की राज्य समिति की बैठक में राजधानी में सिरमौर, सोलन, मंडी, शिमला, कांगड़ा व चंबा से आए प्रतिनिधियों ने कहा कि अपनी फसलों को बचाने के लिए मजबूर होकर किसानों ने खुद ही हजारों उत्पाती बंदरों को जहर देकर खत्म कर दिया है।
किसानों ने सरकार पर इल्जाम लगाया कि सरकार की ओर से किसानों की कोई सुध नहीं ली जा रही है। चूंकि सरकार ने किसानें को असलाह मुहैया नहीं कराया इसलिए उन्हें बंदरों को जहर देकर मारना पड़ा । बंदरों को मारने की एवज से सरकार से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि से किसानों को वंचित रहना पड़ा है क्योंकि यह प्रोत्साहन राशि तभी मिलनी थी अगर किसान मारे गए बंदरों की तस्वीरें वन विभाग को दिखाते।
बैठक में किसानों ने बंदरों की नसबंदी पर तीस करोड़ की रकम खर्च करने पर भी सवाल उठाया व कहा कि सरकार ने ये पैसे की बर्बादी कर दी है। उन्होंने कहा कि जब बंदरों को मारने की अनुमति ही सरकार नहीं दे रहीं है तो नसंबदी क्यों की जा रही है। किसानों ने कहा कि नसबंदी से अच्छा तो ये होता कि सरकार प्रशिक्षित शूटरों की टीमें बनाकर बंदरों को मारने के काम को अंजाम देती। बंदरों को वर्मिन तो घोषित कर दिया लेकिन इन्हें वैज्ञानिक तरीके से मारने व इसके बाद इन्हें ठिकाने के लागाने का कोई इंतजाम नहीं किया। वर्मिन घोषित करने का यह काम नाटक के अलावा कुछ नहीं है। अगर गांवों में ने मारना था तो शहरों में शूटरों के जरिए इन बंदरों को मारा जा सकता था।
इस मौके पर किसान सभा के राज्य अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने कहा कि राजधानी में महीने में दर्जनों लोगों को बंदर काट रहे है।
तंबर ने कहा कि मोदी सरकार ने श्रम कानूनों को भारी बदलाव कर मजदूरों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। उन्होंने कहा कि पांच सिंतबंर को प्रदेश के सभी 25 खंडों में किसान व मजदूर संगठनों की ओर से श्रम कानूनों को कमजोर करने व किसानों की अनदेखी करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।
इस मौके पर अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय सह सचिव विजू कृष्णन ने कहा कि पिछल्ले पांच सालों का इतिहास देशभर में किसानों के व्यापक आंदोलनों व संघर्षों के लिए याद रखा जाएगा। आजादी के बाद इतनी बड़ी लामबंदी पहली बार हुई। उन्होंने कहा कि इन आंदोलनों का लाभ किसानों के पक्ष की व्यवस्थता बनाने में नहीं परिवर्तित हो पाया व वही सरकार दोबारा सता में आ गई । किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं आ रहा है,रोजगार के मौके लगातार कम होते जा रहे है। अनगिनत कारोबार व औद्योगिक इकाइयां बंद हो रही है जिससे मिला हुआ रोजगार उजड़ गया।
इस मौके पर वामपंथी माकपा विधायक राकेश सिंघा ने किसानों,बागवानों और मजदूरों के पक्ष में किए गए आंदोलनों का जिक्र किया व कहा कि मोदी सरकार की नीतियों की वजह से मेहनतकश तबकों को आर्थिक संकट से बाहर निकालने का रास्ता और ज्यादा संकटग्रस्त होता जा रहा है। मौजूदा सरकारों के पास इस संकट का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने किसानों, बागवानों व मजदूरों से आहवान किया कि वो संगठित आंदोलन चलाए तभी कोई समाधान निकलेगा। बैठक में नौ जिलों के 60 किसान प्रतिनिधियों ने शिरकत की ।
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