ओमप्रकाश ठाकुर
जिला सोलन के एक गांव में हाल ही मैं एक राजपुत घर से एक 18 -20 साल की बेटी ये कह कर घर से निकली कि वो सहेली के घर जा रही, पर वो अपने प्रेमी के पास जा पहुंची। कपड़ों का झोला ले, भरे पूरे परिवार के सामने दिन दिहाड़े वो घर से निकली । किसी को भी तो जरा सा संदेह नहीं हुआ था। बेटी पर भरोसा था। लेकिन जब पता चला कि वो अपने प्रेमी के साथ संग चली गई है तो सदमे से मां बेहोश हो गई, बिस्तर पकड़ लिया। पूरा परिवार सदमे में आ गया। घर के पुरुषों ने घर की बाकी बेटियों से पूछना शुरू किया तो शक हुआ कि इनको सब कुछ पता है। वो चुप हुईं तो नौबत मारपीट तक पहुंच गई। आखिर में सब कुछ पता चला। बेटी बगावत कर घर से बाहर जा चुकी थी।वो बालिग थी। उसने अपना घर बसा लिया । आगे की जिंदगी कैसी निभेगी ये मालूम ही नहीं । मां-बाप का भरोसा टूट गया तो बेटी से रिश्ता भी टूट गया। अभी ये भी मालूम नहीं कि जिस प्रेमी संग वो गई है वो किस जाति से है। राजपूत के साथ चली जाए तो शायद फिर कोई ज्यादा फिक्र भी नहीं है। ये इस छोटे से गांव में अभी चंद दिनों पहले ही हुआ है।
करीब तीन महीने पहले शिमला के एक घर में मां -बाप ने बेटी की शादी की पूरी तैयारियां कर ली।उन्हें नहीं मालूम घर में अंदर ही अंदर लाडलियों में कुछ और ही चल रहा है। बस तीन ही दिन तों बचे थे शादी को । सुबह पता चला कि बेटी घर पर नहीं है। वो भी बगावत कर अपने प्रेमी संग चली गई । इसकी कीमत उसकी बहन ने चुकाई । जिस युवक के साथ उसकी शादी होने वाली थी उससे छोटी बहन की शादी कर दी। पता चला कि इस छोटी बहन को सब मालूम था। उसी ने ने बड़ी बहन को बगावत करने के लिए तैयार किया और उसकी जगह दुल्हन बनने को तैयार हो गई। मां-बाप की इज्जत सलामत रह गई। लेकिन यहां ज्यादा झमेला नहीं हुआ क्योंकि जिस के साथ ये बेटी गई वो भी राजपूत था।
सोलन में कुछ साल पहले एक दलित के गांव में कोहराम मच गया था। इस गांव में मां की बुआ के बेटे के साथ उसकी बेटी चली गई थी। ये भाई बहन का सा रिश्ता था । मां बाप के लिए येसदमे से कम नहीं था। गांव व आसपास के समाज के लिए बिलकुल अनहोनी थी।मां बाप ने युवक पर हर जुल्म ढहाया । पीटा व पिटवाया भी ।लेकिन युवक ने ठान लिया था कि जिसका हाथ पकड़ा था उसी के साथ रहना है। मां – बाप ने बेटी से सदा के लिए रिश्ता तोड़ दिया जो आज तक नहीं जुड़ सका।
एक किस्सा और है। यहां प्रेमी दलित है पर प्रेमिका राजपूत है। दोनों यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है। एक दूसरे को पति पत्नी मान चुके है। पर शादी नहीं कर पा रहे है। लिव इन रिलेशन भी मंजूर नहीं । करनी तो बस शादी ही है। करीब दस साल ऐसे ही बीत चुके है। पर मां बाप बेटी की शादी दलित प्रोफेसर से करने को राजी नहीं।बेटी है कि मां-बाप की मंजूरी के लिए उम्रदराज होती जा रही है और युवक प्रेमिका की सहमति के लिए इंतजार में है।
एक अरसा पहले की एक और ऐसी ही घटना है। सिरमौर की एक बेटी ने दिल तो किसी और से लगा लिया ।पर मां बाप से ये राज साझा नहीं कर सकी।मां-बाप ने उसकी शादी किसी और से जोड़ दी। मां-बाप की खुशी के लिए ये बेटी अपने होने वाले दूल्हे से मिल भी आई और दूल्हे को हां भी कर आई।वो वापस घर आ गई तो चंद दिनों बाद उसे लगा कि वो प्रेमी के अलावा किसी दूसरे के साथ नहीं रह सकती। उसका चैन चला गया। उसकी नींदें उड़ गई। जब उससे रहा नहीं गया तो आखिर उसने फोन कर रिश्ता तोड़ दिया। जब मां -बाप को पता चला तो पिता ने सदमे की वजह से बिस्तर पकड़ लिया। समाज में रौबदाब वाले पिता को उम्मीद ही नहीं थी कि जिस बेटी पर वो भरोसा करते आए, वो ऐसा कुछ कर सकती हैं।सिरमौर के जिस हिस्से की ये घटना हैं वहां पर किसी राजपूत की बेटी का ब्राहमण युवक से शादी करना बुरा माना जाता है। दलित के साथ कोई बेटी रिश्ता जोड़ ले तो भूमिगत होने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मां निशाने पर आ गई। कभी जान देने के लिए तैयार सभी भाई जान लेने पर आमदा हो गए। बस, ऐसे ही समय बीतता गया । पर आखिर में मां-बाप राजी हो गए । जिंदगी चल पड़ी।इस तरह की सैंकड़ों घटनाएं हमारे आस-पास घट रही है।
कुछ साल पहले की एक और घटना है। यहां पर एक राजपूत की बेटी एक दलित के साथ चली गई।जिस गांव में गई वे भी ज्यादा दूर नहीं था। पास ही था। पर मां-बाप ने रिशता तोड़ दिया।
एक घटना कॉलेज के जमाने की है। जब एक राजपूत बेटी जो अपनी बहन के पास रहती थी।उसने अपने ही कॉलेज के एक दलित लड़के से विवाह कर लिया। वो सदा के लिए बहन व मां – बाप से जुदा हो गई।
अमूमन ऐसे मामलों में मां-बाप को लगता है कि उनकी बेटियां उनका दिल तोड़ गई है और ये कसक उनके दिलों पर ताउम् रहती है। बहुत बार वे उन्हें आखिरी दम तक माफ भी नहीं कर पाते है। पर जो बेटियां अपने मन में बसाए युवक से बंधन में नहीं बंध पाती शायद वो भी तो माता-पिता को ताउम्र माफ नहीं कर पाती। खुद को भी सजा और जिस परिवार में जा रही उसे भी सजा। ये एक पक्ष हो सकता है, पर है जरूर।
जेहन में और भी बहुत सी घटनाएं है पर ज्यादातर बगावत कर माता-पिता के घर से गई इन बेटियां ने बहुत तरजीह सुरक्षित भविष्य को नहीं दी। तरजीत उसे दी जो दिल को भा गया। फिर बाद में क्या हुआ क्या नहीं, ये अलग मसला है। कहीं बहुत बेहतर जिंदगी मिली तो कहीं जिंदगी बदतर हो गई।
हिमाचल के गांवों में इस तरह के सेंकड़ों घटनाएं है। बेटी की बगावत को बंद क्या ,अर्धखुले समाजों में भी अच्छा नहीं माना जाता। पर अच्छे समाजों में बेटियों पर दमन भी अच्छा नहीं माना जाता।बेटियों पर दमन, हिंसा को जन्म देता है। हिंसक समाज, न्याय खा जाता है और अन्याय सल्तनतों को तबाह कर देता है।तबाह सल्लतनतें सभ्यताओं को खत्म कर देती है।
ये घटनाएं ये साबित नहीं करती कि यहां कौन सही है और कौन गलत।सभी का चीजों को देखने का अपना-अपना नजरिया है । ये साबित करती है कि समाज के भीतर कुछ अलग किस्म का भी चल रहा है जो समाज के तय मानदंडों के मुताबिक नही है। ऐसे में या तो समाज के तय मानदंडों को समय के हिसाब से बदलना होगा या फिर समाज के भीतर जो अलग किसम का कुछ चल रहा है उस पर गौर करना होगा।
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