शिमला। उपलब्ध सबूतों के मुताबिक राजधानी के एक हिस्से की जनता को सरकार Shit Water आज से नहीं जनवरी 2012 से पिला रही है। इस कांड में वीरभद्र सिंह की मौजूदा सरकार ही नहीं भाजपा की पूर्व धूमल सरकार भी पूरी ताकत के साथ शामिल रही है।दुर्भाग्य है कि इस Shit Water की वजह से फैले पीलिए से अन्य लोगों के अलावा भाजपा के एक नेता को भी जान गंवानी पड़ी है।
अश्वनी खडड से शहर को सप्लाई हो रहे इस Shit Water का ये खुलासा हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ इंजीनियर की ओर से 14जुलाई2014को आईपीएच विभाग के शिमला डिवीजन 2 के एक्सीन को लिखी चिटठी में किया है। वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से एक जूनियर पुलिस अफसर की अगुवाई में गठित की गई एसआईटी ने नोटिस भेजने के लिए कुख्यात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों व यहां तैनात रहे रसूखदार सदस्य सचिवों की ओर निगाह तक डाली है।
इस चिटठी ने प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के जनवरी 2012 से अब तक रहे सदस्य सचिवों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल,उनके खासमखास आईपीएच मंत्री रविंद्र रवि तत्कालीन प्रधान सचिव आईपीएच,ततकालीन इंजीनियर इन चीफ आईपीएच से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, उनकी केबिनेट में नबंर दो मंत्री आईपीएच मंत्री विद्या स्टोक्स, अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रधान सचिव आईपीएच के अलावा मौजूदा इंजीनियर-इन- चीफ आईपीएच के मुख्यमंत्री के बेहद करीबी प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के उपाध्यक्ष् कुलदीप सिंह पठानिया के अलावा इस मामले की जांच कर रही एसआईटी को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।
कायदे से सरकार को एसआईटी का मुखिया एडीजीपी या आईजी स्तर के अफसर को बनाना चाहिए था ताकि वो बड़े लोगों पर हाथ डाल सके। इस कांड में में पर्दे के पीछे की ताकतों के चेहरे से तो कभी नकाब ही नहीं उठा पाएगा।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के इस इंजीनियर की चिटठी की पड़ताल करने से खुलासा होता है कि म्लाणा सीवरेज प्लांट आउटलेट से प्रदूषण् नियंत्रण बोर्ड की ओर से लिए गए सैंपल लगातर चार -चार महीने तक फेल होते रहे।चिटठी साफ करती है कि बोर्ड की ओर से26मार्च2012 को लिया सैंपल फेल पाया गया। बोर्ड एसटीपी से हर तीन महीने के बाद सैंपल लेता रहा।इसके बाद बोर्ड ने 22 जून को सैंपल लिया । वो भी फेल हो गया। इस समय प्रदेश में धूमल सरकार सता में थी और आईपीएच मंत्री रविंद्र रवि रहे। बात यही खत्म नहीं हुई।21 सितंबर 2012को बोर्ड की ओर से लिया गया सैंपल भी फेल हो गया।बात यहां रुक जाती तो भी शहर के लोग बच जाते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 29 नवंबर 2012 को लिया गया सैंपल भी फेल हो गया।2013 में वीरभद्र सिंह की सरकार में शहर में पीलिया फैल गया। कोई नहीं पकड़ा गया।क्योंकि आईपीएच विभाग और नगर निगम ने स्टैंड ले लिया कि पानी के सैंपल साफ है और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड खामोश रहा।
मामला 2012 में ही समाप्त हो जाता अगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आईपीएच विभाग के एक्सीन पर मुकदमा ठोक देता। लेकिन बोर्ड ने ऐसा नहीं किया। अब बड़ा सवाल ये कि उसने ऐसा किसने के कहने पर नहीं किया। ये आउटर एक्टर कौन थे।
2012के बाद प्रदेश में सता बदली और भ्रष्टाचारियों का खत्मा करने का भोंपू बजाकर प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार सता में आ गई।अब 2013 की तस्वीर भी भयावह ही रही।बोर्ड ने चार सैंपल लगातार फेल होने के बाद 24फरवरी 2013 को सैंपल लिया वो हैरतअंगेज तौर पर पास हो गया।अगले महीने 7मार्च 2013 को फिर सैंपल लिया । वो भी पास हो गया।उसके बाद 24मई 2013 को सैंपल लिया वो भी पास हो गया।
ये सैंपल पास कैसे हो गए ये किसी को पता नहीं है। लेकिन इसके बाद बोर्ड ने 16अगस्त2013,13नवंबर 2013 और 31 दिसंबर 2013 को सैंपल लिए और वो तीनों फेल हो गए।इसके बाद आया साल 2014 । बोर्ड ने नए साल के पहले ही महीने में 28 जनवरी को सैंपल लिया और वो भी फेल हो गया। ये लगातार चौथा सैंपल था जो फेल हुआ।
बोर्ड के उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक बोर्ड ने22 फरवरी 2014 को सैंपल लिया वो पास हो गया।जबकि 29अप्रैल 2014 का लिया सैंपल फेल हो गया। रिपोर्ट्ज आइ डॉट कॉम के पास इसके बाद के दिसंबर 2014 तक के सैंपलोंकी जानकारी इस वक्त मौजूद नहीं है। लेकिन11 दिसंबर 2014 को बोर्ड ने जो सेंपल उठाया वो भी फेल हो गया।
2015 में 25 सितंबर के सैंपल की जानकारी मिली है। वो भी फेल हो गया। ऐसे में साफ है कि बोर्ड की ओर से लिए जनवरी 2012 से अब तक अधिकतर सारे सैंपल फेल होते रहे । लेकिन बोर्ड ने कभी भी आईपीएच विभाग के अफसरों पर मुकदमा दायर नहीं किया। जबकि वो हर बार जब भी नोटिस भेजते तो नोटिस में धमकी देते कि उनके खिलाफ मुकदमा दायर कर देंगे जिसमें छह साल तक की जेल की सजा है।लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ।
नतीजा दिसंबर 2015और 2016 के शुरू में शहर के बड़े हिस्से में पीलिया फैल गया और मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अब तक करीब 6से 7 लोगों की मौत हो चुकी है।
यहां पढ़े प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वो चिटठी जिसमें जनवरी 2012 से जनवरी 2014 तक एसटीपी के आउटलेट से लिए सैंपलों की रिपोर्ट ।ये सैंपल सब कुछ ब्यान करते है-:
लेकिन ये किन लोगों के दम पर चलता रहा वो बेनकाब नहीं हो पाए है। क्यास लगाए जा रहे है कि जो सैंपल पास हुए वो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की परवाणु स्थित लैब में हुए कारनामों या सैंपल लेने से पहले ही ठेकेदार को जानकारी दे देने की वजह से ही हुए हो। अन्यथा पास हो ही नहीं सकते थे।एसटीपी से निकला ये वायरस वाला पानी अश्वनी खडड में मिल जाता और वहां से लोगों के घरों व पानी की टंकियों में जा पहुंचा।
ये सब ठेकेदार से पूछताछ में सब कुछ सामने आ सकता है। 2012 में जो एक्सीन था उसे तो किसी ने पकड़ा ही नहीं। बाकी लोगों को भी नहीं पकड़ा गया।
म्लाणा व शहर के बाकी एसटीपी से निकलने वाले सीवरेज केपानी के फेल होने के लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये प्रदूषणनियंत्रण बोर्ड के इंजीनियरों,सदस्य सचिवों व आईपीएच विभाग के इंजीनियरों को अच्छी तरह मालूम था।इस अरसे में प्रदूषण बोर्ड में अब तक रहे सदस्य सचिव भारतीय वन सेवा के अफसर रहे हैं जो अपने छात्र काल में नॉन मेडिकल व मेडिकल के स्टूडेंट रहे है। इन सबकों को मालूम था कि एसटीपी से अश्वनी खडड को जा रहा सीवरेज लोगों के स्वास्थ्य के साथ क्या गुल खिला सकता है।लेकिन किसी भी अफसरने अलर्म नहीं बजाया न मुकदमा दायर किया।
अब सवाल खड़ा होता है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व आईपीएच विभाग के अफसरों ने ऐसा क्यों नहीं किया।मुकदमा तो ठेकेदार पर कभी भाी हो सकता था औरआईपीएच के अफसरों पर । आखिर ऐसा करने से किसने रोका। ये बड़ा सवाल है। क्या रिश्वत का कोई बड़ा खेल चलता रहा ।क्या इस सारे कांड में धूमल,रविंद रवि,वीरभद्र सिंह,विद्या स्टोक्स या इन जैसा कोई और बड़ा नेता कहीं न कहीं जिम्मेदार नहीं है। आखिर एसटीपी के ररखरखाव के धंधे में ऐसा क्या था जो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर नोटिसों में ढांपते रहे।क्या नोटों के नीचे लोगों की जिंदगियां दबती रही और अफसरों व नेताओं की तिजोरियां भरती रही। ये सब करने वालों के चेहरे क्या एसआईटी बेनकाब कर पाएगी। इसका जवाब सरकार व एसआईटी को देना है। आखिर लगातार सैंपल फेल होने पर ठेकेदार की पेमेंट कैसे होती रही। किसकी भुगतान के लिए किस कीमत पर कौन सिफारिश करता है। कहा तो ये भी जा रहाहै कि आईपीएच विभाग के एक एक्सीन ने ठेकेदार की पेमेंट रोक दी थी। इस पर शिमला के एक नेता ने एक्सीन को अपने घर बुलाया और ठेकेदार की पेमेंट करने का आदेश दिया। एक्सीन ने इस नेता की सिफारिश को तरजीह नहीं दी तो एक्सीन का तबादला हो गया और नए आए एक्सीन ने दस दिनों के भीतर ठेकेदार को लाखों रुपए की पेमेंट कर दी। संभवत: ये सब आईपीएच की पुरानी फाइलों में होगा। एक्सीन का तबादला किसकी सिफारिश पर हुआ होगा ,ये भी फाइलों में होगा। क्या एसआईटी ये सब छान पाएगी।
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