शिमला। अप्रत्याशित तौर पर प्रदेश हाईकोर्ट को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव विनीत चौधरी के मैग्सेसे अवार्डी चर्चित आइएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ मानहानि की निजी आपराधिक शिकायत के मामले में इस मामले को दोबारा सुनने व तर्कसंगत आदेश पारित करने के निर्देश दिए है।यही नहीं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्िटस दीपक मिश्रा ने प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्िटस संजय करोल को याचिकाकर्ता के सबमिशंस को एड्रेस करने के निर्देश दिए है।सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कहा कि प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल ने अपने आदेश में याची के सबमिशंस का जिक्र तो कर दिया लेकिन उनको एड्रेस नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाईकोर्ट के याची की याचिका में दखल न देने के आदेश को भी खारिज कर दिया।सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले को प्रदेश हाईकोर्ट को रिमांड कर दिया है।
याद रहे कि प्रदेश के मुख्य सचिव विनीत चौधरी ने उतराखंड काडर के चर्चित आइएफएस अधिकारी व भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ने वाले अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ राजधानी की एसीजीएम की अदालत में आपराधिक मानहानि की निजी शिकायत दर्ज की थी। शिकायत में 1982 बैच के हिमाचल काडर के आइएएस अधिकारी चौधरी ने कहा कि संजीव चतुर्वेदी ने उनके भ्रष्टाचार के मामलों को जगह-जगह उजागर कर उनकी मानहानि की। इस शिकायत पर निचली अदालत ने संज्ञान लिया व चतुर्वेदी के खिलाफ जमानती वांरट जारी कर दिए।
इस पर संजीव चतुर्वेदी ने जमानती वारंट व चौधरी की ओर से दायर आपराधिक मानहानि की निजी शिकायत को निरस्त करने के लिए प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।
चतुर्वेदी ने अपनी याचिका में हाईकोर्ट से आग्रह किया था कि मुख्य सचिव विनीत चौधरी की ओर से उनके खिलाफ एसीजेएम दो की अदालत में दायर आपराधिक मानहानि की शिकायत और अदालत की ओर से ट्रायल का सामना करने के वास्ते उनके खिलाफ जारी वारंट को निरस्त किया जाए।
चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल ने छह अप्रैल के अपने आदेश में कहा याचिका कर्ता ने अपनी याचिका में तीन आग्रह किए है। जिनमें कहा गया है कि एसीजेएम की अदालत ने चौधरी की शिकायत पर संज्ञान लेने से पहले उनके खिलाफ मुकदमा चलाने को लेकर सक्षम अधिकारियों से ली जाने वाली मंजूरी नहीं ली है। चौधरी ने केवल यह इल्जाम लगाया है कि चतुर्वेदी ने उनके विजीलेंस प्रोफाइल को सर्कुलेट किया है ।
इसके अलावा चौधरी ने अपनी शिकायत में किसी संज्ञान योग्य अपराध का खुलासा नहीं किया है।
न्यायमूर्ति करोल ने अपने आदेश में कहा कि इस स्टेज पर दखल देना सही नहीं है। अदालत िनचली अदालत में लंबित शिकायत और अदालत की ओर से जारी जमानती वारंट के मामले में दखल देने की इच्छुक नहीं है। न्यायमूर्ति करोल ने अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता के लिए संबधित अदालत में जाने,निचली अदालत में पेश होने और उचित मंच पर इन सभी दलीलों को उठाने का रास्ता खुला है।
चतुर्वेदी ने न्यायमूर्ति संजय करोल के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि आधिकारिक तौर पर आधिकारिक लेटर पैड पर बंद लिफाफे में प्राधिकृत अनुशासनात्मक अधिकारी को लिखी चिटठी के आधार पर क्या उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत की जा सकती है। यह चिटठी उन्होंने प्रदेश के मुख्य सचिव को तब लिखी थी जब वह एम्स के सीवीओ थे। चिटठी में चौधरी के भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों का जिक्र था। इसके अलावा अपनी याचिका में चतुर्वेदी ने यह भी कहा था क्या बिना अनिवार्य कानूनी मंजूरियों के निचली अदालत की ओर ऐसी शिकायत पर संज्ञान लिया जा सकता था।
चतुर्वेदी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को स्टे करने और निचली अदालत में लंबित आपराधिक मानहानि की शिकायत को रदद करने का आग्रह किया था।
जिस पर 14 मई को सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए इस मामल को वापस हाइकोर्ट को रिमांड करते याचिकाकर्ता के निवेदनों पर गौर कर तर्कसंगत आदेश पारित करने के आदेश दिए है।
याद रहे मुख्य सचिव विनीत चौधरी की आपराधिक मानहानि की निजी शिकायत पर एसीजेएम दो की अदालत में 19 मई को हुई सुनवाई के दिन न्यायिक अधिकारी सिद्धार्थ सरपाल ने व्यक्तिगत कारण बताते हुए सुनवाई से खुद को अलग कर दिया था। अब इस मामले की सुनवाई 15 जून को होनी है।
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