शिमला।ये कोई और नहीं, मां ही थी जिसने अपनी नन्हीं सी बच्ची को अफीम की लत डलवा दी। शायद उसने सोचा नहीं था कि लत पड़ जाएगी और जिस बच्ची को वो सुलाने की खातिर अफीम खिलवा रही है उसके लिए वो ताउम्र का अभिशाप बन जाएगा। आखिर ये अभिशाप बना भी और आज साठ साल से ज्यादा की उम्र की कौशल्या और उसकी 50 साल से ज्यादा उम्र की भतीजी कला देवी (दोनों के नाम बदले हुए है)के लिए ये लत जिंदगी ओर मौत का सवाल बन कर उभरा है। दोनों रामपुर के चूहा बाग में रहती है ।
कलादेवी की बुआ को लत कैसे पड़ी इसकी भी वो दिलचस्प लेकिन त्रासदीपूर्ण कहानी बयां करती है। उसने कहा कि गांव में लोग गरीब होते थे।खेत खलिहानों से लेकर मजदूरी कर जिंदगी की गाड़ी चलानी पड़ती थी। कौशल्या के जन्म पर भी यही स्थिति थी। मां जब बाहर काम को जाती तो इस नन्हीं बच्ची को अफीम खिलवा कर सुला देती। ये बच्ची सोई रहती। ऐसे में मां बेटी का काम चला रहता। लेकिन मां को कभी पता ही नहीं चला कि बेटी लत की शिकार हो चुकी है। जब पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी। मां के पास विकल्प नहीं बचे थे। कलादेवी कहती भी है नशे की लत जिंदगी तबाह कर देती है। जिसे लत होती है उसकी भी ओर साथ वालों की भी।
जब डाक्टर कौशल्या की अफीम की लत को छुड़वा नहीं सके तो उन्होंने उसे सरकारी खाते से अफीम की डोज देने का इंतजाम कर दिया। जिला शिमला में अभी भी चार ऐसे लोग है जिन्हें अफीम की तलब होती है और उस तलब को सरकार पूरा करती है। सरकार के इंतजाम में से कौशल्या को हर महीने 25 ग्राम अफीम मिलती है। उसके पास वांछित लाइसेंस या सर्टिफिकेट भी है।जो अफीम को अपने पास रखना वैध बनाता है। पर कौशल्या तब जिंदगी के लिए तड़पने लग जाती है जब उसे समय पर अफीम नहीं मिलती। उसकी इस तड़प से उसकी 50 साल से ज्यादा उम्र की भतीजी कलादेवी भी दहल जाती है, और फिर सिलसिला शुरू होता है सीएम वीरभद्र सिंह से लेकर सुभाष आहलुवालिया और कमिश्नर आबकारी व जिला ट्रेजरी अफसर के दर पर फरियाद करने का।
कलादेवी अपनी बुआ के लिए अफीम हासिल करने के लिए वो हर दरवाजा खटखटाती है जहां से उसे लगता है कि उसकी मदद होगी। सीएम वीरभद्र सिंह और सुभाष आहलुवालिया से लेकर सता के दरबार के कई प्रभावशाली कारिंदे कलादेवी के जानने वाले में से है।लेकिन समय पर मदद न मिलने पर कलादेवी विद्रोह भी कर उठती है और संभवत: बुआ की जान बचाने के लिए अफीम माफियाओं से अफीम का इंतजाम करने से भी नहीं चूकती होंगी। हालांकि वो इस सवाल पर खामोश हो जाती है।कला देवी ने कहा कि सीमए वीरभद्र सिंह ने बरसों पहले उसकी बुआ का इलाज कराने के लिए दिल्ली में उसे भर्ती भी कराया था। लेकिन उसकी लत नहीं छूट पायी थी।तब उसका लाइसेंस बना।
जिस महीने सरकार से अफीम की खेप नहीं मिलती तो फिर कहां से इंतजाम होता है। बातूनी कलादेवी खामोश हो जाती है। बस इशारा भर करती है कि इंतजाम करना पड़ता है। समझा जाता है कि पहाड़ में अफीम का कारोबार करने वाले कई लोग है।वो उन्हीं से अफीम का इंतजाम करती होंगी।वो कहती है जब उसकी बुआ को अफीम नहीं मिलती तो वो तड़पने लगती है। वो तड़प देखी नहीं जाती। इसलिए वो इंतजाम करने निकल पड़ती है।कलादेवी कहती है कि सरकार की ओर से फरवरी से उसकी बुआ को अफीम नहीं मिली। सरकार के कारिंदे कहते है कि जब पीछे से आएंगी तो दे जाएगी। आबकारी विभाग का बाबू यहां कलादेवी के लिए किंग से कम नहीं लगता।यही बाबू है जो गाजीपुर पैसे व आर्डर भेजता है और अफीम मंगवाता है।अफीम के इन चारों तलबगारों को ये खेप जिला ट्रेजरी अफसर से मिलती है।
शिमला जिला के ट्रेजरी अफसर रोजेंद्र डोगरा ने कहा कि जून में इन चारों को इनके कोटे की अफीम दे दी जा चुकी है।लेकिन एरियर देने का प्रावधान नहीं है।एरियर नहीं मिलता है।
कलादेवी फरवरी से लेकर जून तक अपनी बुआ के लिए अफीम का इंतजाम करने के लिए सरकारी बाबूओं के दर पर फरियाद करती रही।इस बीच उसने कहां से इंतजाम किया ये किसी को पता नहीं है। एएसपी संदीप धवल कहते है कि पुलिस महकमे का इससे कोई संबंध नहीं है।क्या कोई बाहर अफीम का कारोबार भी करता है ,इस सवाल के जवाब में वो कहते है कि ऐसा उनकी जानकारी में नहीं है। लेकिन बताते है कि लोग त्यूणी के किसी शख्स से ये इंतजाम करते है और अचछी खासी रकम खर्च करते है। बताते है कि जब सरकारी खजाने से अफीम का इंतजाम नहीं होता तो लोग दो-दो लाख की अफीम ऐसे ही शख्सों से खरीदते है। हालांकि ये तथ्य अपुष्ट है।
साल 2015 में भी स्वास्थ्य विज्ञान इस तरह की लत को छुड़ाने का इंतजाम नहीं कर पाया हैं,जो त्रासदी से कम नहीं है।
(0)