शिमला/नई दिल्ली। ऐतिहासिक फैसला लेते हुए एनजीटी ने मोदी व वीरभद्र सिंह सरकार को फटकार लगाते हुए हिमाचल के किन्नौर में प्रस्तावति कशांग पावर प्रोजेक्ट लिए फारेस्ट डायवर्शन के प्रस्ताव को प्रभावित गांवों लिप्पा,तेलंगी,पांगी और रारंग की ग्रामसभाओं के समक्ष पेश करने आदेश दिए है। एनजीटी ने सरकार को वनाधिकार कानून2006 की पालना के आदेश भी दिए है। अपनी जजमेंट में मोदी सरकार की पर्यावरण व वन विभाग को वनों से संबधित मंजूरियों को लेने के सारे दस्तावेजों को ग्रामसभाओं के समक्ष रखने के आदेश दिए है।
ये जजमेंट एनजीटी की जस्टिस स्वतंत्र कुमार वाली प्रधान पीठ ने प्रोजेक्ट के लिए दी गई फारेस्ट क्लीयरेंस को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा करते हुए दी।इन मंजूरियों को पर्यावरण संरक्षण संघर्ष समिति लिप्पा ने चुनौती दी थी। समिति ने कहा था कि ये सारी मंजूरियां वनाधिकार अधिनियम 2006 का उल्ल्ंघन कर दी गई है।इन कानून के तहत वनों को प्रोजेक्ट के लिए हसतातंरित करने के लिए प्रभावति गांवों से एनओसी लेना लाजिमी है।जजमेंट में कहा गया है कि ग्रामसभाएं वनों व पानी के स्त्रोतों के प्रभावित होने की सूरत में सामुदायिक व व्यक्तिगत सभी दावों पर विचार करेगी।
जिला किन्नौर में बिजली बोर्ड व हिमाचल पावर कारपोरेशन की ओर से एकीकृत कशांग प्रोजेक्ट चरण 1 व दो स्थापित किया जा रहा है 243 मेगावाट के इस एकीकृत प्रोजेक्ट में अभी 130 मेगावाट के प्रोजेक्ट पर कामशुरू किया जाना है।इनमें से पहले चरण के प्रोजेक्ट का काम चला हुआ है जबकि दूसरे चव तीसरे चरण के प्रोजेक्ट को पर्यावरण मंजूरियां मिल चुकी है लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण इन पर काम शुरू नहीं हो पाया है।
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