शिमला। गुजरात विधानसभा चुनावों में सौराष्ट्र पटटी से सतारूढ़ भाजपा को मिली हार को न्यू गुजरात मॉडल करार देते हुए देश के नामी कृषि अर्थशास्त्री देवेंद्र शर्मा ने कहा है कि किसानों के लिहाज से ये नतीजा अच्छा हैं। अगर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और कर्नाटक में भी किसानों के गुस्से की झलक इसी तरह सामने आई तो सरकारें किसानों के दर्द को समझना शुरू कर देगी। उन्होंने कहा कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों में भाजपा को कम सीटें मिली। तब राजनीतिक स्तर पर सोचे जाने लगा कि किसानों के मामले में कहीं गड़बड़ हो गई हैं। ऐसे में मोदी सरकार संभवत: फरवरी में पेश किए जाने वाले बजट में खेती को लेकर कोई कदम उठाएगी।
उन्होनें कहा कि देश में अब तक 3 लाख 30 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। हर 41 मिनट में एक किसान आत्महत्या कर रहा हैं। 2016 के अािर्थक सर्वे के हवाले से उन्होनें कहा कि देश के 17 राज्यों में प्रति किसान परिवार 20 हजार सालाना आय हैं। यानि 1700 रुपए। 17 सौ रुपए में कोई गाय भी नहीं पाल सकता। यही नहीं पंजाब जिसे अमीर राज्य माना जाता हैं,में किसान परिवार की औसतन आय 3400 रूपए महीना हैं। ऐसे में किसान कैसे गुजारा कर रहे हैं, इसका अंदाजा लगाया जा सकता हैं। उन्होंने कहा कि न्यू गुजरात मॉडल से सरकार को झटका लगा हैं।
उन्होनें कहा कि ये सोच गलत है कि अगर सिचाई की सुविधा बढ़ेगी, पैदावार बढ़गी इससे किसान संपन होगा। ऐसा नहीं हैं, महाराष्ट्र के विदर्भ में कुल 18 फीसद सिंचित भूमि हैं। वहां भी किसान आत्महत्या करते हैं। जबकि पंजाब जहां 98 फीसद सिचिंत क्षेत्र हैं और गेंहू ,धान व मक्का की प्रति बीघा पैदावार दुनिया में सबसे ज्यादा होती हैं। यहां का आंकड़ा चौंकाने वाला हैं। 2000 से 2017 तक पंजाब में 16 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। मामला पैदावार का नहीं हैं। मामला आय का है किसानों की आय नहीं बढ़ रही हैं।
जब किसानों के फसल आती है तो कीमतें घट जाती हैं। उन्हें सही मूल्य नहीं मिलता। उन्होनें कहा कि किसानों को राहत देने के लिए डेफिशियंसी पेमेंट स्कीम या भावांतर अदायगी योजना शुरू होनी चाहिए। मध्य प्रदेश सरकार ने इसे शुरू किया हैं। इस स्कीम के तहत अगर किसान कि 5500 की जिंस को बाजार में 35 सौ रुपए मिलते हैं तो दो हजार सरकार अदा करे। कुछ फसलों के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने ये योजना शुरू की हैं लेकिन किसानों की फसलों की कीमत मॉडल प्राइस के आधार पर तय की जा रही हैं। किसी मद की दिन पर ट्रेडिंग करने को औसत निकला वो ट्रेडिंग प्राइस हैं। शर्मा ने कहा कि ये सही तरीका नहीं हैं। यह कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर निकाली जानी चाहिए। तब किसानों को लाभ मिलेगा। इसके अलावा उन्होनें सरकारों को इस बात को लेकर भी आगाह किया इसमें कारटेल पनपने की ज्यादा गुंजाइश हैं । ऐसे में सरकारों को उनसे भी निजात दिलानी होंगी।
ेउन्होंने कहा कि किसानों के हितों को देखने के लिए किसान आय आयोग का गठन किया जाना चाहिए जो यह देखें की किसानों की आय कैसे बढ़े। देश के एक किसान परिवार की मासिक आय कम से कम 18 हजार रुपए होनी चाहिए। यह आय उन्हें न मिलने से उनकी जेबों को सालाना 12 लाख 80 हजार करोड् रुपए की चपत लगाई जा रही हैं। उन्होंने कहा कि ये फार्म थेफट हैं। ऐसे में किसानों ऊपर कैसे उठ सकते हैं।
उन्होंने कहा कि बड़ा सवाल ये डइाया जाता हैं कि इतना पैसा कहां से आएगा। लेकिन जब देश की कुल एक फीसद आबादी जो सरकारी कर्मचारियों व पैंशनरों की हैं उन्हें 7 वें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात आती हैं तो यह सवाल नहीं उठाया जा सकता। केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से सातवें वेतन आयोग को लागू कर देने पर सरकार के खजाने से 4 लाख 80 हजार करोड़ जाएगा। ऐसे में उद्योगों की प्रतिक्रिया होती हैं कि इससे आर्थिकी को बूस्ट मिलेगा। उन्होंने कहा कि अगर 52 फीसद आबादी जो किसानों की हैं ,उन्हें उनको देय उनका हक मिल जाए तो सोचो आर्थिकी की रफतार क्या होगी। यह अभी छह से सात फीसद हैं तब बीस फीसद से नीचे नहीं आएगी। सरकार एक फीसद को खुश करने में लगी हैं।
उन्होनें स्वामिनाथन कमिशन की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए कहा कि तब कीमत नीति का समय था। उनकी सिफारिशों के मुताबिक लागत पर 50 फीसद लाभ देने का फार्मूला था। विश्व व्यापार संघ व अमीर देश इसके खिलाफ हैं। वह किसानों को सबसिडी नहीं देने के पक्ष में हैं। लेकिन अब आय नीति का दौर हैं। सरकारों को किसानों की आय बढ़ाने के लिए काम करना होगा। जैसा कि अमेरिका और बाकी देशों में हो रहा हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में एक किसान को 60 हजार डॉलर की सीधी सबसिडी मिलती हैं। जबकि भारत में यह 350 डॉलर हैं और वह भी बीज,खाद व उपकरणों पर रियायतों के रूप में।
यही नहीं देश की सरकार रीजनल कांप्रेहेंसिव इक्नामिक पार्टनरशिप जिसमें आसियान के दस देशों के अलावा चीन, जापान, दक्षिणी कोरिया,भारत, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इन देशों के प्रतिनिधियों की हाल ही में बैठक हेदराबाद में हुई। चीन जोर डाल रहा हैं कि 92 फीसद मदों की टेरिफ को शून्य करने पर आमदा हैं। हालांकि अभी वह 90 फीसद मदों को इसकी रेंज में लाना चाहता हैं। लेकिन भारत 80 मदों को शामिल कराने के लिए सहमत हो रहा हैं। अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश की सेब की आर्थिकी तबाह हो जाएगी।
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