शिमला। अदाणी पावर लिमिटेड की ओर से विवादित अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए लौटाने के मामले को इस पर पुनर्विचार करने के लिए दोबारा केबिनेट पर ले जाने पर जयराम सरकार सवालों में आ गई है। बीते रोज अदाणी पावर की ओर से दायर याचिका पर प्रदेश हाईकोर्ट ने जयराम सरकार को आदेश दिए है कि वह आचार संहिता समाप्त होने के बाद इस मसले को पुनर्विचार करने के मंत्रिमंडल की बैठक में ले जाए।
अदालत के आदेश के मुताबिक जयराम सरकार की ओर से अदालत में जवाब दिया गया था कि ऊर्जा विभाग के कुछ अधिकारियों की इन दिनों चुनावों में डयूटियां लगी है।इस लिए जवाब दायर नहीं किया जा सकता । ऐसे में सरकार को जवाब दायर करने के लिए समय दिया जाए।
मुख्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की खंडपीठ की ओर से किए आदेश में कहा गया कि जवाब दायर करने के लिए समय मांगने को लेकर दायर अर्जी के बाद महाधिवक्ता ने निर्देशों पर अदालत से आग्रह किया कि और समय दिया जाए ताकि उपयुक्त फैसले को लेने के लिए मंत्रिमंडल की ओर से मामले पर पुनर्विचार किया जा सके।
आदेश में कहा गया है कि इस उददेश्य के लिए आचार संहिता के समाप्त होने के तुरंत बाद मामले को मंत्रिमंडल की बैठक में ले जाया जाए। यही पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि एजी को जयराम सरकार ने क्यों इंस्ट्रक्ट किया कि वह अदालत में ऐसा कहे कि सरकार इस मामले में पुनर्विचार करना चाहती है। साथ ही यह भी बड़ा सवाल है कि जयराम सरकार में कौन है जिसने ये इंस्ट्रक्शन एजी को दी। क्या नेताओं के स्तर पर ये सब हुआ या नौकरशाहों के स्तर पर कुछ हुआ है।
इसके अलावा ये जगजाहिर है कि अदाणी समूह की प्रधानमंत्री मोदी से घनिष्ठता है। पीएमओ स्तर पर कुछ हुआ है कि इस मसले को केबिनेट में ले जाने का फैसला लेना पड़ रहा है या मुख्यमंत्री कार्यालय स्तर पर कुछ हुआ है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पूर्व बिजली मंत्री अनिल शर्मा को मंत्रिमंडल से जयराम ठाकुर ने इसलिए हटाया कि वह इस रकम को वापस देने के खिलाफ थे। अनिल शर्मा कह चुके है कि जब वह पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार में मंत्री थे तो उन्होंने तब भी इस रकम को वापस करने का विरोध किया था। बेशक तब उनके पास बिजली का महकमा नहीं था।
उधर, शिक्षा मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि बिजली महकमा मुख्यमंत्री के पास है। कांग्रेस सरकार ने पैसा देने का फैसला लिया था व बाद में फैसला वापस ले लिया था। हमने पैसा नहीं दिया है।
खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 20 जून को निर्धारित की है। आदेश में कहा गया है कि इस बीच ऊपर दी गई स्टेटमेंट के मुताबिक उपयुक्त फैसला लेने के लिए कानून के मुताबिक मामले पर मंत्रिमंडल में पुनर्विचार किया जा सके। बेशक उसी सक्षम अथारिटी ने पहले इस पर विचार किया हो।
हाईकोर्ट के इस आदेश को लेकर महाधिवक्ता अशोक शर्मा ने कहा कि सरकार को पिछल्ले आदेश के मुताबिक जवाब देना था। लेकिन कुछ संबंधित अधिकारी चुनाव डयूटी पर है इसलिए जवाब नहीं बन पाया।
याद रहे 960 मेगावाट का जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट तब कि वीरभद्र सिंह सरकार ने नीदरलैंड की ब्रेकल कारपोरेशन एनवी को आवंटित किया था। लेकिन बाद में ब्रेकल के दावों में धांधलियां पाई गई थी। इन धांधलियों के सामने आ जाने के बाद 2008 के बाद सता में आई प्रेम कुमार धूमल सरकार ने यह प्रोजेक्ट ब्रेकल को आवंटित रहने दिया था। इस पर बोली में दूसरे नंबर पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। इस पर हाईकोर्ट ने 2009 में इस आवंटन को रदद कर दिया था।
इसी याचिका के दौरान हाईकोर्ट में सामने आया था कि ब्रेकल ने 280 करोड़ रुपए अदाणी पावर से कर्ज लिए थे व तब जाकर अपफ्रंट मनी अदा किया किया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अदाणी व अंबाणी दोनों सुप्रीम कोर्ट में गए थे व सुप्रीम कोर्ट में तब की वीरभद्र सिंह सरकार ने कहा था कि ये 280 करोड़ रुपए उसने कभी भी अदाणी पावर से नहीं लिए थे। ये ब्रेकल व अदाणी पावर का मामला है।
सरकार का इसे कोई लेना देना नहीं है। अदाणी पावर की ओर से वीरभद्र सिंह सरकार को इस 280 करोड़ रुपए लौआने के लिए कई चिटिठयां लिखी गई । लेकिन 2015 में तब की वीरभद्र सिंह सरकार ने इस पैसे को अदाणी को लौटाने का मंत्रिमंडल में फैसला ले लिया । इस बावत विधानसभा चुनावों के दौरान आचार संहिता के बीच 26 अक्तूबर 2017 को सरकार ने अदाणी पावर को लिखा कि सरकार 2015 में उसके 280 करोड़ लौटाने बावत लिए फैसले को लागू करना चाहती है।
इसके बाद 7 दिसंबर 2017 को दोबारा अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने अदाणी पावर को लिखा की मंत्रिमंडल ने उसके 280 करोड़ लौटाने बावत लिए फैसले को बापस ले लिया है। उन्होंने लिखा कि मामले में कानूनी पेचीदकियां व ठेके से संबंधित जटिलताएं है।
याद रहे इस रकम को लौटाने को लेकर 2015 में वीरभद्र मंत्रिमंडल की ओर से लिए फैसले पर कैग ने भी सवाल उठाए थे व कहा था कि यह सरकारी खजाने को चपत है। लेकिन अब इस मामले को लेकर जयराम सरकार पर निगाहें है कि वह क्या फैसला लेती है। इस मामले में अब तक ऊल जलूल फैसले लेने वाले नौकरशाहों व राजनेताओं के खिलाफ कोई जांच नहीं हुई है। वह अब तक जेल के भीतर हो जाने चाहिए थे। साथ ही बड़ा सवाल यह है कि अदाणी समूह ने जब ये अपफ्रंट मनी की रकम ब्रेकल कारपोरेशन एनवी की ओर से जमा कराई थी तो अदाणी समूह सरकार के बजाय ब्रेकल से ये रकम वापस क्यों नहीं लेता है। क्या ब्रेकल कोई कंपनी है भी या नहीं । अगर कंपनी का अस्तित्व है तो उसने 2006 से लेकर अब तक दुनिया में कहां पर बिजली प्रोजेक्ट लगाएं है ।
इन तमाम सवालों का जवाब जयराम ठाकुर सरकार और उनकी विजीलेंस को देना है। ब्रेकल के खिलाफ विजीलेंस में मामला है। विजीलेंस ने पूर्व वीरभद्र सिंह सरकार में इस मामले में नियमित एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी मांगी थी। वीरभद्र सिंह सिंह सरकार ने मंजूरी नहीं दी थी। क्या जयराम ठाकुर सरकार ने मंजूरी दे दी है ।
अगर दे दी है तो फिर ब्रेकल को लेकर क्या निकला। वीरभद्र सिंह सरकार ने ब्रेकल व रिलायंस की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि प्रोजेक्ट में देरी होने की वजह से सरकार के खजाने को 2713 करोड़ रुपए की चपत लगी है। सरकार ने इस बावत ब्रेकल को 2713 करोड़ रुपए बतौर हर्जाना जमा करने का नोटिस दिया था। पूर्व की वीरभद्र सिंह सरकार ने इस नोटिस को भी ड्राप करा दिया था। उनके मंत्रिमंडल ने ऐसा क्यों किया था। इस बावत पूरे मंत्रिमंडल से लेकर संबधित नौकरशाहों से जवाबतलबी की जरूरत थी। लेकिन जयराम सरकार ने जवाबतलबी नहीं की। जबकि सता में आने के बाद जयराम सरकार ने पूर्व सरकार के छह महीनों के फैसलों की समीक्षा की थी। क्या नौकरशाहों ने इस बावत कोई समीक्षा नहीं होने दी। बड़ा सवाल ये कि जयराम सरकार की विजीलेंस ने इस मसले को किसके इशारे पर दबा कर खा हुआ है।
2713 करोड़ रुपए बतौर हर्जाना के नोटिस पर कैग ने भी गड़बड़ी की है। मंजूरी के लिए पहले जो ड्राफट पैरा था उसमें 2713 करोड़ रुपए के हर्जाने वाले नोटिस का भी जिक्र था। लेकिन जब कैग ने विधानसभा के पटल पर आडिट रिपोर्ट रखी तो उससे ये पैरा गायब था। केवल 280 (260) करोड़ का जिक्र था।
यह रहा पहले का आदेश-:
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