मंडी!कांगड़ा के बाद सरकार बनाने में सबसे अधिक योगदान देने वाले मंडी जिला की करवट इस बार नेताओं के होश उड़ाने को तैयार है। बेशक विधान सभा चुनाव को एक साल से भी अधिक समय शेष हैं लेकिन भाजपा और कांग्रेस चुनावी मुद्दों की तलाश आज से ही करने को मजबूर हैं। मंडी में फिफ्टी.फिफ्टी से आगे बढऩे के लिए दोनों प्रमुख दल बिसात बिछाने लगे हैं। इस होड़ में भाजपा ने पहल की है। भाजपा जहां फोरलेनए ईएसआइसी मेडिकल कॉलेज नेरचौक , जोगेंद्रनगर मंडी ब्राडगेज रेल सर्वे,पठानकोट-जोगेंद्रनगर ब्राडगेज तथा नए एनएच की मंजूरी जैसे मुद्दों को लेकर लोगों के बीच पहुंच चुकी है, वहीं कांग्रेस के मंडी से तीन मंत्री एवं दो सीपीएस भी प्रदेश सरकार की उपलब्धियों के सहारे जनता से तालमेल बैठाने के लिए डट चुके हैं।
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का 23 मई का प्रस्तावित मंडी दौरा जहां विकास की कई घोषणाओं, शिलान्यासों एवं उद्घाटनों से मंडी कांग्रेस को मजबूती प्रदान करेगा वहीं कार्यकर्ताओं को चुनावी तैयारी के लिए उत्साहित करेगा। उधर पहली बार सांसद बने रामस्वरूप शर्मा अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान केंद्र से मिली सौगातों का पिटारा लेकर जनता के बीच घूम रहे हैं जिससे भाजपा को निश्चित तौर पर लाभ मिल रहा है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी 5 जून के अपने मंडी दौरे के दौरान कई सौगातें जिला को देकर भाजपा को मजबूती प्रदान करेंगे। बताते चलें कि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के लगातार मंडी दौरों के बाद कांग्रेस अर्लट हो गई है। धूमल के नेतृत्व में भाजपा मंडी की पांच सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के साथ ही अन्य पांच सीटें कांग्रेस से छीनने की फिराक में है। भाजपा गत विस चुनावों में बगावत की वजह से पांच सीटें मंडी जिला से गंवाने की गल्ती को इस बार नहीं दोहराना चाहेगी। इसके लिए भाजपा हारी हुई सीटों पर हार के कारणों का मंथन कर पहले से ही रणनीति बनाने में वयस्त है। आम आदमी पार्टी की बढ़ती सक्रियता को लेकर भी दोनों दल अपने कुनबे को संभालने में लगे हुए है। आप की नजर भाजपा और कांग्रेस के असंतुष्टों पर टिकी हुई है।
पिछले विधान सभा चुनाव में मंडी में रही फिफ्टी-फिफ्टी की स्थिति-:
जिला से ज्यादातर चुनावों में हालांकि कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है, लेकिन छोटी काशी की करवट का अंदाजा लगाना मंडी के नेताओं के लिए भी मुश्किल हो गया है। 1993 के चुनावों पर नजर डालें तो उस समय एक तरफ ा कांग्रेस ने मंडी से नौ सीटें प्राप्त की थीं। इसके बाद 1998 में भी भाजपा की दो सीटों के मुकाबले कांग्रेस को मंडी से चार सीटें मिलीं। 2003 में सत्ता में आने के समय मंडी से कांग्रेस को छह सीटें मिली थींएजबकि भाजपा के खाते में दो ही सीटें आई थीं। 2012 के विस चुनाव में दं्रग,धर्मपुरए,सराज, सरकाघाट और जोगिंद्रनगर में कांटे की टक्कर रही जिसमें दं्रग को छोड़ अन्य सीटें भाजपा के खाते में रही। बल्ह, नाचन,मंडी सदर, करसोग और सुंदरनगर में पकी खिचड़ी से कांग्रेस व भाजपाए,दोनो दलों के पसीने छूट गए थे। बागियों और आजाद उम्मीदवारों ने पांच सीटों को दोनो पार्टियों के लिए डेंजर जोन बना दिया था। दोनो दल इस बार फिफ्टी.फिफ्टी की स्थिति से आगे निकलने के लिए जोर लगाएंगे।
काली भेड़ों और बागियों ने बिगाड़े दोनों दलों के समीकरण-:
मंडी जिला में वर्तमान में कांग्रेस के पास मंडी सदरए बल्ह, सुंदरनगर, करसोग, और दं्रग सीटें हैं जबकि भाजपा के पास सराज से जयराम ठाकुर, जोगिंद्रनगर से गुलाब सिंह ठाकुरए धर्मपुर से महेंद्र सिंह ठाकुरए सरकाघाट से कर्नल इंद्र सिंह और नाचन से विनोद कुमार पांच विधायक है। गत विस चुनावों के अलावा इस बार हुए पंचायती राज संस्थानों के चुनाव में भी कांग्रेस में काली भेड़ों व भाजपा के कुछ बागियों ने चुनावी समीकरण बदलनें में अहम भूमिका निभाई। भाजपा और कांग्र्रेस चुनावी मुद्दों के साथ ही काली भेड़ों और बागियों पर विशेष नजर रखने के लिए पहले से ही मजबूर हैं। कांग्रेस काली भेड़ों और भाजपा बागियों को ठिकाने लगाने की तैयारी में हैं। आने वाले दिनों में मंडी की राजनीति का पारा चढऩे के साथ ही राजनीतिक महौल गर्माने की तैयारियां शुरू हो गई है
(0)