शिमला। प्रदेश की जयराम सरकार प्रदेश की पहली ऐसी सरकार बन गई है जो प्रदेश में किसी अस्पताल में चल रहे मुफत लंगर की मजिस्ट्रेट जांच करवाने जा रही है। प्रदेश में लाखों करोड़ों के घपलों के मामले लंबित है लेकिन उनकी जांच की तो समीक्षा तक नहीं हो रही है। लेकिन लंगर चलाने को अस्पताल परिसर में स्थान कैसे आवंटित हो गया इसकी जांच जरूर की जा रही है। यह अपने आप पर हैरान करने वाला व सरकार की मंशा को जाहिर करने वाला मामला बन गया है।
मामला प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल इंदिरा गांधी मेडिकल अस्पताल के कैंसर अस्पताल के पास पिछले सात सालों से रोगियों व उनके तिमारदारों के लिए मुफत में चलाए जा रहे लंगर का है। जयराम सरकार ने इस लंगर को चलाने के लिए अस्पताल में कमरे व बाकी जगह कैसे आवंटित की इसकी जांच करने के लिए एडीएम कानून व व्यवस्था को राहुल चौहान का जांच अधिकारी नियुक्त कर 15 दिन के भीतर जांच रपट सौंपने के निर्देश दिए है। जांच के आदेश जिला उपायुक्त ने नहीं बल्कि प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह की ओर से जारी किए गए है।
मजेदार तौर पर सरकार को यह चार साल बाद पता चला कि आइजीएमसी में लंगर चलाने के लिए दिए कमरे , पानी और बिजली कनेक्शन सब अवैध है। अवैध कनेक्शन तो राजधानी के कई होटलो में भी पाए गए थे। करोड़ों के बिल थमाए भी गए थे। नामी स्कूल का ही पानीी का बिजली 75 लाख रुपए का लंबित था जहा पर बड़े घरों के लाडले पढ़ते थे। इन घरों के लाडले तो यह खर्च उठा भी सकते थे लेकिन मरीजों को मुफत लंगर चलाने के लिए बिजली -पानी कराने के लिए बिजली पानी दे दिया तो इसे सरकार
सरकार की ओर से कहा गया है है कि आईजीएमसी शिमला में लंगर सेवाओं के संचालन के संबंध में कुछ मुद्दों को ध्यान में आने के बाद जांच का आदेश देने का फैसला किया जिसमें इसके परिसर के नियम और शर्तों का आवंटन भी शामिल है। आदेश में कहा गया है कि जनहित में उचित समाधान सुनिश्चित करने के लिए मुद्दों की बारीकी से जांच करने के लिए मजिस्ट्रियल जांच कराना जरूरी समझा गया है।
याद रहे पिछले सप्ताह आईजीएमसी प्रशासन ने पुलिस की मदद से एक गैर सरकारी संगठन सर्वशक्तिमान आशीर्वाद ऑलमाइटी ब्लैसिंग की ओर से इस्तेमाल किए जा रहे सभी बर्तनों और अन्य उपकरणों को अस्पताल परिसर से बाहर निकाल दिया था। इस पर राजधानी शिमला में हंगामा हो गया था व दर्जन भर संस्थाओं व कांग्रेस समेत कई नेताओं ने इस समाज सेवा में लगी किसी संसथा को बाहर करने का विरोध किया था। कांग्रेस व युवा कांग्रेसने तो राजधा नी के रिज मैदान पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने मौन विरोध भी जताया था।
आइजीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सक जनक राज ने दावा किया कि अस्पताल प्रशासन समाज सेवा करने की इच्छा रखने वाले किसी के खिलाफ नहीं है लेकिन अस्पताल के संसाधनों के अवैध इस्तेमाल पर रोक लगाना उनका काम है। लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि इन संसाधनों का इस्तेमाल क्या लंगर चलाने वाले अपनी कमाई के लिए कर रहे थे। जनक राज ने कहा कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को कानून और प्रक्रियाओं का पालन करने की आवश्यकता है। उन्होंने बिना अनुमति सरकारी जमीन पर ढांचों के निर्माण और उस पर दावा पेश करने पर सवाल उठाया ।
इस लंगर को चलाने वाले आलमाइटी ब्लैसिंग के सर्बजीत सिंह बॉबी चंडीगढ़ में अपनी किसी बीमारी का इलाज करा रहे है। सरबजीत सिंह बॉबी 2014 से अस्पताल परिसर में गरीबों और जरूरतमंदों के लिए चौबीसों घंटे लंगर सेवा चला रहे थे। इससे पहले 2014 तक वह लावारिस और शवों के दाह संस्कार में अस्पताल प्रशासन के साथ भी काम कर रहे थे। उन्होंने कोरोना से पहले व कोरोना महामरी के दौरान भी शवों को शमशन घाट तक ले जाने व उनका अंतिम संस्कार करने में भूमिका निभाई है। अब जयराम सरकार मजिस्ट्रेट जांच कराने जा रही है।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब सरकार के नजदीकी किसी व्यक्ति ने यहां पर अपना लंगर चलाने का जुगाड़ भिड़ाया व इसके बाद अस्पताल प्रशासन ने इसके लिए टेंडर तक निकाले हैं। मुफत लंगर चलाने के लिए शायद ही दुनिया में कहीं टेंडर मंगवाए गए हो। इसके अलावा लंगर भी अवैध हो सकते है यह भी जयराम सरकार दुनिया की पहली सरकार है जो यह पता कराने जा रही है।
याद रहे 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बॉबी को यहां पर लंगर लगाने की इजाजत दी थी व वह उन्होंने व उनकी पत्नी व पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह ने भी यहां अस्पताल के मरीजों और उनके तिमारदारों को मुफत में सेवा के तहत लंगर खिलाया है।
(44)