शिमला। चिनाब नदी पर लगने वाली साढ़े चार सौ मेगावाट की दुग्गर पन बिजली परियोजना से संयुक्त रूप से टाटा पावर व स्टेटक्राफट सिंगापुर प्राइवेट लिमिटेड की ओर से हाथ खींचने के बाद जयराम सरकार अप फ्रंट प्रीमियम की जंग भी हार गई है। सरकारी खजाने को खाली करने के नजरिए से यह मामला बेहद गंभीर हैं। यह दीगर है कि जयराम सरकार ने दुग्गर हाइडल परियोजना को एनएचपीसी को देकर इंवेंस्टर मीट में खूब डंका बजाया है।
अपफ्रंट मनी वापस करने के मामले को निपटाते हुए हाईकोर्ट की ओर से इस मामले में नियुक्त किए गए आर्बिट्रेटर सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायामूर्ति सुरेंद्र सिंह ठाकुर ने सरकार को दस फीसद ब्याज के साथ दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड कंपनी को अप फ्रंट मनी के 47 करोड़ 20 लाख रुपए लौटाने के आदेश दिए है। इसके अलावा 16 लाख रुपए आर्बिट्रेशन एक्ट के तहत कंपनी को देने के आदेश दिए है।
आर्बिट्रेटर न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह ठाकुर ने दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड की दलीलों को सही माना है व सरकार के अप फ्रंट मनी को बतौर जुमार्ना जब्त करने के फैसले को बिना सुनवाई का मौका दिए गलत करार दिया है।इसके अलावा न्यायमूर्ति ठाकुर ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि इस परियोजना से दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड की ओर से हाथ खींचने से क्या नुकसान हुआ है यह वह साबित नहीं पाई है। हालांकि इस बावत सरकार ने उनके सामने अपना पक्ष जरूर रखा था।
टाटा पावर व स्टेटक्राफट ने इस परियोजना के लिए दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड नाम से स्पेशल पर्पज व्हीकल बनाया था। दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड की ओर से इस 449 मेगावाट की परियोजना से 24 अप्रैल 2017 में हाथ खींचने के बाद सरकार ने इस इस परियोजना के आवंटन को रदद कर दिया था व बोली की शर्तों के मुताबिक अपफ्रंट मनी को जब्त कर लिया था। दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड ने आवंटन के कम से कम छह साल बाद इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट पर दस्तख्त करने से इंकार कर दिया था।ऐसे में सरकार के पास इस आवंटन को रदद करने व अपफ्रंट मनी को जब्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इन छह सालों में हाइडल नीति को लेकर केंद्र व राज्य सरकार के तौर पर कई कुछ हुआ ।
बाद में जयराम सराकर ने इंवेस्टर मीट के शोरगुल के बीच सरकार ने इस परियोजना को एनएचपीसी को आवंटित कर दिया है। दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड ने न्यायमूर्ति ठाकुर के समक्ष यह भी दलील दी कि सरकार ने जिन शर्तो पर उसे यह परियोजना आवंटित की थी उससे कहीं ज्यादा उदार शर्तों पर इस परियोजना को सार्वजनिक कंपनी एनएचपीसी को आवंटित कर दिया है।
याद रहे निवेश के नाम पर पूर्व की प्रेम कुमार धूमल सरकार ने अगस्त 2010 में इस परियोजना को बूट (बिल्ट,ओन आपरेट एंड ट्रांसफर) के आधार पर चलाने के लिए निविदाएं मांगी थी। मई 2011में इस परियोजना को दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड को दे दिया। 449 मेगावाट की इस परियोजना की लागत तब 5414 करोड़ 60 लाख आंकी गई थी। धूमल सरकार ने तब भी निवेश का खूब डंका बजाया था।लेकिन दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड ने 27 अप्रैल2017को सरकार को लिख कर दे दिया कि इस परियोजना को अंजाम देना तकनीकि व वितीय तौर पर संभव नहीं है।
दिलचस्प तौर पर दुग्गर हाइड्रो पावर लिमिटेड ने इस चिटठी के बाद 26 मई 2017 को डीपीआर सरकार को सौंपी। 2017 में प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार में सता में थी ।इसी दौरान नौ हजार मेगावाट की 960 मेगावाट की जंगी थोपन परियोजना से देश के शीर्ष उदयोगपति अंबाणी समूह की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने हाथ खींच लिए थे।पहले यह परियोजना नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन एनवी के पास थी।
याद रहे जंगी थोपन परियोजना में अदाणी पावर ने भी इसी तरह अप फ्रंट मनी के 280 करोड लौटाने के लिए प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की हुई है। इसके अलावा दर्जन भर की बाकी परियोजनाएं है जहां पर अपफ्रंट मनी के रूप में अरबों रुपए सरकार से लौटाने की मांग की जा रही है।अगर सरकार को अपफ्रंट मनी के रूप में अरबों रुपए इसी तरह निजी कंपनियों को लौटाने पड़े तो 53 हजार करोड़ के कर्ज के नीचे दबी सरकार को आर्थिक मोर्चे पर घुटने टेकने पड़ सकते है। जब टाटा व अंबाणी जैसे उदयोगपति हाइडल परियोजनाओं से हाथ खींचने लगे है तो सरकार को निजी निवेश को लेकर नए सिरे से विचार करना लाजिमी हो जाता है।हालांकि इंवेस्टर मीट को लेकर जयराम सरकार का शोरगुल भी कम नहीं है।
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