ओमप्रकाश ठाकुर
अंग्रेजों ने जब भारत पर कब्जा किया तो उन्होंने सबसे पहले हमला मुल्क के देशज हुनर पर किया था।दुनिया भर में कारीगरी के लिए मशहूर कारीगरों के हाथ पांव काट दिए गए। उनके सारे हुनर को छीन लिया गया और औद्योगिकीकरण के नाम अपना जलवा दिखाया। उसके बाद आजादी मिली तो मुल्क में जो बड़ी क्रांतिआई वो थी हरित क्रांति। भूखे मुल्क वासियों को अनाज मुहैया कराने में इस क्रांति ने बड़ा योगदान दिया। खाद –कीटनाशकों का इतना इस्तेमाल किया गया कि बड़ी-बड़ी कंपनियां जिन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वो इतनी अमीर हो जाएगी, उन्होंने अपनी तिजोरियां भर ली। लालच की ऐसी बयार बही कि किसानों ने जितनी मिट्टी खेत की सतह पर दीखती थी उतने ही उसमें कीटनाशक व खाद मिला दी। खूब खेती हुई भी। साल बीतते गए ।।बाद में पता चला जो खेत कभी लहलहाते थे उसकी मिटटी जहरीली तो हो ही गई साथ में बंजर भी हो गई।,कीटनाशकों,खाद की कंपनियों के पास अब किसानों के लिए कुछ नहीं बचा था। किसानों के घरों में कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी पसर गई थी। जो आज भी मातम का सबब बनी हुई।
इस क्रांति ने मुल्क की भूख को कम करने में बेशक बड़ी भूमिका निभाई हो लेकिन सबसे बड़ा नुकसान किया हमारे खेती करने के देशज हुनर को। जिसे इसने लील लिया। वो सारी देशज तकनीकें व तौर तरीके तबाह कर दिए जो दुनिया में कहीं नहीं थे। जिनपर पर कभी हमें नाज था,हम उनसे विहिन हो चुके हैं।
मिटटी के बाद जहरीला हुआ पानी। आज सारे बड़े शहरों में पानी स्वच्छ हो ये कोई भी दावा नहीं कर सकता। अगर कोई ऐसा दावा करता है तो वो निश्चित तौर पर झूठ बोलता है। चुनिंदा जगहों को छोड़कर गंगा जैसी नदी जहरीली हो गई है। शहरों के लोग सीवरेज युक्त पानी पीने को मजबूर है। पानी को स्वच्छ रखने के देशज हुनर व पारंपरिक ज्ञान को बाजार की चकाचौंध और पैसा कमाने की तरकीबों ने अपह्त कर लिया।
शहरों में क्या अब गांवों में भी पानी बिकता है। बिकने वाली चीजों में मिलावट होना मामूली सी बात है। मिलावट से मुनाफे का अनुपात कई गुना बढ़ जाता है।अवैध मुनाफा मौतों का सबब बनता है।
ब्रिटिश राज की राजधानी शिमला में यही हुआ। इसी मुनाफे ने यहां के वाशिंदों को मौत के कगार पर पहुंचा रखा है।पीलिया से आधा शहर ग्रस्त है। मुनाफा कमाने वालों ने पानी में सीवरेज मिला दिया। पैसे के आगे सारे कायदे कानून व तय मानदंड दंडवत हो गए।अस्पतालों में पीलिया का इलाज है,इस पर शंका बनी हुई है। डाक्टर खुद भरोसे से नहीं कह पाते कि हमारे पास इसका ये इलाज है।
शहर के लोग इन दिनों शहर व साथ लगते गांवों में पीलियां को झाड़ने वालों के पास नतमस्तक है।सरसों के तेल की थाली और एक खास प्रकार के पौघे की टहनी व कोई अनाम मंत्र,पीलिया को छूमंतर करने में जुटा है। ये पता नहीं कि ये देशज हुनर सच में कामयाब हो भी रहा है या नहीं।
विज्ञान के पैरोकार इसके खिलाफ अभियान चलाए हुए है। पता नहीं, वो दवा कंपनियों के प्रचार से प्रभावित है या असल में विज्ञान के अचूक गुर से वो परिचित हैं। पीलिया के मरीज झाड़ फूंक वाले इन मसीहाओं के शुक्रगुजार जरूर है कि उन्होंने देशज हुनर को जिंदा रखा है जो जिंदगियां सलामत रख रहा है। काश,इस पर आज कोई शोध हो पाता और साफ हो जाता कि ये पीलिया झाड़े से ठीक हुआ है या किसी और वजह से ।
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