शिमला।मोदी सरकार के लाडले उद्योगपतियों अंबानी व अदाणी की कंपनियां जिस 960 मेगावाट के जंगी थोपन हाइड्रो् पॉवर प्रोजेक्ट को हासिल करने केे लिए हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गई थी,उसमें हुए तीन हजार करोड़(2994.69करोड़) के घोटाले का लेखा जोखा इस बार की कैग की रिपोर्ट में होगा या कोई और कांड हो जाएगा, इस पर सबकी निगाहें लगी हैं। सचिवालय के बाबू बताते हैं कि कैग व एजी से बड़ा पत्राचार हुआ हैं। एजी की टीम ने कई कुछ खंगाला हैं और बाद तक दस्तावेज मंगाए जाते रहे हैं। उम्मीद है कि मार्च-अप्रैल में विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में पेश की जाने वाली आडिट रिपोर्ट में इस का जिक्र होगा । जिसमें वीरभद्र व धूमल सरकार की केबिनेटों के कांडों से कुछ तो पर्दा उठेगा। सचिवालय के बाबूओं की ही नहीं राजनीतिक दलों केे नेेताओं की भी निगाह लगी हैं। चूंकि इसी साल प्रदेश में चुनाव हैं।
गौर हो कि वीरभद्र सिह सरकार ने सुप्रीम काेेर्ट में रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और अदाणी की कंपनी की ओर से दायर याचिकाओं के जवाब में कहा था सरकार ने ब्रेकल को 28 मार्च 2014 को कारण बताओ नोटिस जारी किया व इस नोटिस में कहा गया था कि प्रोजेक्ट में देरी करने के लिए उससे 2713.73 करोड़ रुपए क्योंं न वसूले जाए।(ये पैसे सरकार को फ्री पॉवर के रूप में मिलने थे अगर प्रोजेक्ट समय रहते चल पड़ता) इस नोटिस के बाद ब्रेकल ने 1 अप्रैल 2014 को अपनी याचिका वापस ले ली।
वीरभद्र सिंह सरकार ने दिसबंर 2006 में इस प्रोजेक्ट को ब्रेकल को दे दिया था। लेकिन इस बीच सरकार बदली तो इस पर पुनर्विचार किया गया व धूमल सरकार ने भी कड़ा कांड करते हुए इस प्रोजेक्ट को ब्रेकल को ही दे दिया। जबकि विजीलेस जांच में कई कुछ सामने आया था। इसके बाद रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने इस आवंंटन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। 7 अक्तूबर 2009 को हाईकोर्ट ने ब्रेकल को आवंटित करने के वीरभद्र सिंह व धूमल सरकार के फैसले को निरस्त कर इस आवंटन को रदद कर दिया। साथ ही फैसले में कहा कि सरकार तय करे कि इसे बोली में दूसरे नबंर पर रही रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को देना हैं या दोबारा बोली लगानी हैैं।
(Reporterseye.com ने इस पूरे कांड का खुलासा 14 सितंबर 2015 की अपनी रिपोर्ट में किया था। इस रिपोर्ट पर रिलायंंस ने Reporterseye.com को एक हजार करोड़ रुपए का नोटिस भी भेजा था।रिपोर्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:
धूमल सरकार ने इसकी दोबारा बोली लगाने का फैसला लिया। लेकिन तब तक रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लि.ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी कि वो दूसरे नंबर पर थी इसलिए ये प्रोजेक्ट उसे मिलना चाहिए था।
हैरानी की बात है कि हाईकोर्ट केे फैसले केे बाद भी धूमल सरकार ने ब्रेकल व उसके किसी भी आला अफसर व सरकारी अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसा क्यों किया गया ये अब राज ही बना हुआ हैैं।ब्रेकल ने हाईकोर्ट का फैसला आने से पहले अप फ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए जमा करा दिए थे।लेकिन न तो धूमल सरकार ने और न वीरभद्र सिंह सरकार ने इस अपफ्रंट मनी को जब्त किया। जब आवंटन का फैसला हाईकोर्ट ने रदद कर दिया था और सरकार ने दोबारा बोली लगाने का फैसला ले लिया था तो अपफ्रंट मनी जब्त हो जानी चाहिए थी। लेकिन 2012 तक सता में रही धूमल सरकार और उसके बाद सता में आई वीरभद्र सिंह सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया।
जब रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर सुप्रीम कोर्ट चला गया तो अदाण्ााी की कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर दावा किया कि जो 280 करोड़ अपफ्रंट मनी के ब्रेकल ने जमा कराए हैं वो उसकी कंपनी ने अदा किए हैं।उसने बतौर सबूत वहां पर कई कागजात भी रखे व आग्रह किया कि उसके ये 280.969 करोड़ रुपए लौटाए जाए।
इसके बाद वीरभद्र सिंह सरकार ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में स्टैंड लिया कि अप फ्रंटमनी को जब्त किया जाना हैं और ब्रेकल से 2713 करोड़ रुपए नुकसान की एवज में वसूले जाने हैं। साथ ही ये भी कहा कि अदाणी की कंपनी से सरकार का कुछ लेना देना नहीं हैं।अदाणी की कंपनी ब्रेकल की कंसोरटियम कभी भी नहीं रही ।लेकिन हुआ कुछ नहीं।
इस बीच वीरभद्र सिंह सरकार ने बड़ा कांड कर दिया केबिनेट में फैसला ले लिया कि 28 मार्च 2014 को ब्रेकल से 2713.73 करोड़ वसूलने के शो कॉज नोटिस को ड्राप्ा किया जाता हैं। ये क्यों किया गया ये अभी तक राज हैं। इससे सरकारी खजाने को सीधे ही 2713.73 करोड़ का नुकसान हो गया। यही नहीं केबिनेट ने ये भी फैसला ले लिया कि मैसर्स अदाणी पॉवर लिमिटेड ने जो 280 करोड़ का अफ्रंटमनी जमा कराया हैं उसे बिना ब्याज के वापस किया जाएगा। ये तब होगा जब रिलायंस एनर्जी अपफ्रंट प्रीमियम जमा करा देगी। याद रहे 2015 में सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले में फैसला आने ही वाला था तो वीरभद्र सिंह सरकार ने इस प्रोजेक्ट को रिलायंस को देने का एलान कर सबको चौंका दिया था। (तब वीरभद्र सिंह सीबीआई केशिकंजे में बुरी तरह से फंसे हुए थे) रिलायंस ने आफर को मंजूर भी कर लिया था। लेकिन जुलाई 2016 में जब सुप्रीम कोर्ट से उसने याचिका वापस ली तो इस प्रोजेक्ट को लेने से मना कर दिया।ऐसे में रिलायंस से अप फ्रंट प्रीमियम का पैसा आया नहीं और इसे अदाणी की कंपनी को नहीं लौटाया जा सका।
खजाने को 2713.73 करोड़ के अलावा अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ जो जब्त होने हैं , उन्हें जब्त न करके वीरभद्र सिंह सरकार ने सरकारी खजाने को करीब तीन हजार करोड़ का नुकसान पहुंचा दिया हैं। ये अपने आप बड़ा घोटाला हैं। ये सब क्यों किया गया हैं किसी को पता नहीं हैं। ब्रेकल पर धूमल व वीरभद्र सिंह सरकार की मेहबानियां क्यों बन रही ये भी राज ही हैं।रिलायंस को वीरभद्र सिंह सरकार ने 2015 में अचानक इस प्रोजेक्ट को क्यों आवंटित कर दिया इस पर से भी पर्दाफाश नहीं हो पाया हैं।
अब 21 सितंबर 2016 की केबिनेट में फैसला लिया गया कि 960 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट को मोदी सरकार के अधीन केद्रीय लोक उपक्रमों को दिया जाए। ऐसा क्यों किया गया हैं ये भी राज ही हैं। यहां यह गौर करने काबिल यह हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह केे बीच याराना हैं, और अदाणी जिसके 280 करोड़ फंसे हैं,जिन्हें न तो धूमल और ही वीरभद्र सिंह सरकार जब्त करने की हिम्मत कर पाई हैं ,की मोदी व वीरभद्र सिंह से दोस्ती हैं।ये जगजाहिर हैं। अब प्रदेश सरकार इन उपक्रमों को ये प्रोजेक्ट कैसे देती हैं इसपर सबकी निगाहें हैं व फाइलों की मूवमेंट के अलावा करामात दिखाने वालों की मूवमेंट पर भी निगाहें हैं।
इसीलिए सचिवालय के बाबू टिप्पणियां करते रहे हैं कि कैग की रिपोर्ट में कुछ आ ही जाएगा , ये जरूरी नहीं हैं।
960 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट में 2006 से लेकर अब तक वीरभद्र सिंह सरकार और धूमल सरकार में गजब के कांड हो चुके हैं।सचिवालय की अलमारियों में पड़ी संबंधित फाइलों की पड़ताल में सामने आया हैंं कि कैग, हिमाचल एजी और हिमाचल सरकार के बीच इस मसलेे पर ढेर सारा पत्राचार हुआ हैं।जब से ये पत्राचार शुरू हुआ हैं तभी से कई स्टेकहोल्डर्स के दिल्ली दौरेंं शुरू हो चुके थे। बाबू बताते हैं इनमें सरकारी बाबूओं के अलावा नेता व उद्योगपतियों के प्रतिनिधि भी शामिल हैैं।चूंकि ये मामला कहीं भी अदालतों में लंबित नहीं हैं ऐसे में खेल खुल कर खेला जा रहा हैं।
एनर्जी विभाग के दस्तावेजों के मुताबिक मोदी सरकार के अधीन उपक्रमों एनएचपीसी ने अपना प्रस्ताव विभाग को भेज दिया व जबकि सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के कई बेहद करीब अफसर तैनात हैं ,ने 28फरवरी तक प्रस्ताव जमा कराने के मोहल्लत मांगी हैं। उधर किन्नौर मेंजहां ये प्रोजेक्ट लगना हैं वहां की जनता विरोध में अभी से उतरचुकी हैं। जनता का कहना है कि इन प्रोजेक्टों ने किन्नौर केपयार्रवरण को तबाह कर दिया हैं। ऐसे में किसी भी सूरत में यहां पर प्रोजेक्ट को लगने नहीं दिया जाएगा। पिछले ही दिनों वहां के लोगों ने बैठक भी की थी।
पर अब निगाहें सबकी कैग की रिपोर्ट पर लगी हैं।
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