शिमला। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद बेशक कांग्रेस ने उछल्ल कूद मचा दी हैं लेकिन जिन तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत हुई हैं वह कांग्रेस की जीत नहीं हैं। वह पब्लिक एंगर हैं। पब्लिक एंगर अंगेस्ट मोदी-शाह। अन्यथा कांग्रेस को भारी बहुमत मिलता। छतीसगढ़ के अलावा कहीं कुछ नहीं मिला। याद रहेक पश्चिमी बंगाल में वामपंथियों के खिलाफ वहां की जनता ऐसा एंगर दिखला चुकी हैं। वह लौट कर वापस सता में नहीं आ पाए हैं। मोदी -शाह सरकार की असल परीक्षा तो आगामी लोकसभा चुनाव हैं।
बहरहाल ,इन चुनावों में केवल छतीसगढ़ में कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई हैं और ऐसी जीत की कांग्रेस को भी उम्मीद नहीं थी। चुनाव आयोग के आकड़ों के मुताबिक यहां पर 43 फीसद वोट शेयर के साथ कांग्रेस पार्टी को 68 सीटें मिली हैं। जबकि भाजपा के खाते में 33 फीसद वोट शेयर के साथ कुल पंद्रह सीटों से संतोष करना पड़ा हैं। यहां पर जोगी व मायावती का गठबंधन भी कांग्रेस को रोक नहीं पाया हैं। जनता ने मायावती की बसपा को 2 और जोगी की जनता कांग्रेस छतीसगढ़ को 5 सीटों पर निपटा दिया हैं। यहां की रमण सिंह सरकार व उनक ी सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता खुल कर बाहर निकली हैं। यहां पर 90 सीटें हैं। इसके अलावा मोदी -शाह व योगी की ओर से देश में जिस तरह का नैरेटिव चलाया गया है, छतीसगढ़ की जनता ने उसे भी नकार दिया हैं।
अगर कांग्रेस के पक्ष में लहर या हवा जो भी कह लें, होती तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बहुमत मिलता लेकिन यहां कांग्रेस की अंदरूनी जंग को जनता ने ज्यादा पसंद नहीं किया। कांग्रेस के तीन तीन दिग्गजों दिग्विजय सिंह, कमलनाथ व ज्योतिरादित्य सिंह के जोर लगाने के बाद भी जनता ने आंकड़ा 114 के पार नहीं जाने दिया।
यह मोदी सरकार के खिलाफ पब्लिक एंगर ही था कि फलोटिंग वोटर कांग्रेस की ओर मुड़ गया। बेशक कांग्रेस यहां पर सरकार बना लें लेकिन जनता की चाहत उसे सता सौंपने की नहीं थी । वह शिवराज सिंह से नाराज जरूर है लेकिन उन्हें भी जनता ने 109 सीटें देकर मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए मैदान में रखा हैं।
शिवराज सिंह व रमण सिंह की व्यक्तिगत छवियां अहंकारी नेताओं की नहीं हैं। लेकिन उनकी नाक के नीचे भ्रष्टाचार पनपता रहा । जनता इससे खफा थी। मध्यप्रदेश में मायावती की बसपा को 2 और मुलायम -अखिलेश की सपा को 1 जबकि निर्दलीयों को 4 सीटें मिली हैं।
दिलचस्प यह है कि मध्यप्रदेश में भाजपा का वोट शेयर कांग्रेस से ज्यादा हैं। भाजपा का 41 फीसद तो कांग्रेस को 40.9 फीसद वोट शेयर मिला हैं। 230 सीटें वाली मध्यप्रदेश में कांग्रेस में मुख्यमंत्री को लेकर जंग होनी ही हैं और भीतरी जंग का यह उदघाटन आगामी लोकसभा चुनावों में सामने जरूर आएगा। ऐसे में यह कहना कि राहुिल गांधी व कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जलवा चला,सही नहीं होगा। यह मोदी सरकार के खिलाफ पब्लिक एंगर की अभिव्यक्ति हैं।
कांग्रेस पार्टी राजस्थान की जीत पर भी खूब इतरा रही हैं। लेकिन यहां भी कांग्रेस को 39.3 फीसद वोट शेयर के साथ जनता ने 99 सीटों पर आकर रोक दिया। 199 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा में सरकार बनाने के लिए सौ सीटों की दरकार हैं। साफ है जनता कांग्रेस को जीताना नहीं चाहती थी लेकिन मोदी -शाह को भी सता में नहीं रखना चाह रही हैं। वसुंधरा राजे का राज चलाने का अपना ही शाही अंदाज हैं। बावजूद इसके 38.8 फीसद वोट शेयर के साथ उन्होंने 73 सीटें जीत ली। अगर जनता कांग्रेस को जीताना चाहती तो भाजपा को इतनी सीटें मिलती क्या। यहां मायावती की बसपा ने 6 सीटें अपने खाते में डाल ली जबकि निर्दलीयों के खाते में 13 सीटें गई हैं। दिलचस्प तौर पर वामपंथियों की ओर से राजस्थान में दो सीटें जीतना अपने आप में महत्वपूर्ण हैं। जो बंगाल व त्रिपुरा से उखड़ गए वह राजस्थान, हिमाचल जैसे प्रदेशों में एकएक ,दो-दो सीटें जीत रही है। इसके अलावा भारतीय ट्राइबल पार्टी ने दो, राष्टÑीय लोक दल 1 और राष्टÑीय लोकतांत्रिक पार्टी ने तीन सीटें जीत ली। अगर जनता कांग्रेस को जीताना चाहती तो इन दलों को यह सीटें कतई न मिलती। जनता का भाजपा की तरह कांग्रेस पर कोई ज्यादा भरोसा नहीं हैं। जनता ने भाजपा की तरह ही कांग्रेस की लूट व अहंकार को देखा, परखा व झेला हैं।
जनता की चाहत कांग्रेस की ओर होती तो मिजोरम व तेलांगना में उसे सीटों की बारिश होती । दोनों जगह कांग्रेस को जनता ने रौंद दिया हैं। मिजोरम में कुल पांच सीटें मिली । हालांकि वोट शेयर 30.2 फीसद मिला है । मिजो नेशनल फ्रंट ने 37.6 फीसद वोट शेयर के साथ यहां पर बहुमत हासिल कि या हैं। कांग्रेस के कुशासन को यहां की जनता ने उखाड़ फेंका। भारतीय जनता पार्टी ने यहां एक सीट के साथ खाता खोला हैं। आठ निर्दलीय जीतें हैं। निर्दलीयों को 22.9 फीसद वोट बैंक हासिल हुआ हैं। यहां विपक्ष कमजोर हैं। पांच सालों तक यहां की जनता को इसकी कमी जरूर खलेगी।
तेलांगाना में तो कांग्रेस व तेलगु देसम पार्टी को जनता ने औंधे मुंह गिरा दिया। यहां पर स्थानीय नेता टी चंद्रशेखर राव की तेलांगाना राष्टÑ समिति ने 64.9 फीसद वोट शेयर पर कब्जा कर 88 सीटें जीत ली। 119 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस पार्टी को कुल 19 सीटें ही मिली। कांग्रेस का वोट शेयर 28.4 फीसद रहा हैं। यहां पर ओवैसी बंधुओं ने भी जीत हासिल की। भजपा को यहां एक सीट मिली हैं। आल इंडिया मजलिस ए इतेहादुल मुस्लिमहन पार्टी को यहां पर सात सीटें मिली हैं।
बहरहाल इन पांच राज्यों में जिस तरह का फैसला जनता ने सुनाया है, उससे साफ है कि पब्लिक ने मोदी -शाह सरकार के खिलाफ अपना एंगर तो अभिव्यक्त किया ही है साथ ही यह भी जतला दिया है कि वह भाजपा कांग्रेस की चाहवान भी नहीं हैं।
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी का यह कहना की कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता बब्बर शेर है, यह इतना ही बचकाना है जितना मोदी -शाह ही सस्ती ब्यानबाजी हैं। प्रदेशों में कांग्रेस पार्टी व उसके नेताओं की धूर्ततताओं से जनता वाकिफ है तो भाजपाइयों के फरेब व छल्ल की भी उसके पास जानकारी हैं। ऐसे में अब दोनों को यह समझना होगा कि जनता बेहतर चाहती है। वह फरेब , छल्ल व धूर्ततता के खांचे से बाहर आना चाहती हैं। अन्यथा पांच साल झेलने के बाद उसका एंगर सता को जला डालेगा।
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