शिमला।हिमाचल प्रदेश में मत्स्य उद्योग लोगों को आजीविका के अनेकों अवसर उपलब्ध करवाने के साथ-साथ राज्य के लिए राजस्व सृजन का भी महत्वपूर्ण स्रोत्र बनकर उभरा है। प्रदेश सरकार ने राज्य में नीली क्रांति लाने के उद्देश्य से अनेक कदम उठाए हैं। युवाओं को स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने तथा मत्स्य पालन गतिविधियों की ओर आकर्षित करने के लिए अनेक प्रोत्साहन दिए गए हैं।
राज्य के सभी जलस्रोत्रों से चार वर्षों में 38994.6 लाख रुपये मूल्य की 42881.475 मी.टन मछली का उत्पादन किया गया। मत्स्य विभाग प्रदेश के राजस्व में सालाना 4 करोड़ से अधिक राजस्व अर्जित कर प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ हजारों लोगों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है।
इस क्षेत्र में स्वरोजगार की संभावनाओं को अमलीजामा पहनाने तथा आर्थिक स्वावलंबन के सुदृढ़ीकरण के दृष्टिगत सरकार के प्रयासों से केन्द्रीय प्रोद्यौगिकी संस्थान कोचीन के तकनीकी सहयोग से प्रदेश में पहली बार चार फिश प्रोसैसिंग यूनिट भाखड़ा गोविंद सागर, खटियार पौंग डैम, कटौहड़ कलां ऊना तथा रतयोड़ सोलन में स्थापित करने की योजना बनाई गई है। इससे मछली का आचार, फिश फिलैटस, फिश बाउल, फिश फिंगर पापड़ आदि उत्पाद तैयार करके मार्किट में उपलब्ध करवाए जा सकेंगे। इन उत्पादों को आधुनिक तकनीकी के प्रयोग के चलते एक वर्ष से भी अधिक लम्बे समय उपयोग में लाया जा सकता है।
इस क्षेत्र में स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए गत चार वर्षों में सामान्य बजट से हटकर 35 करोड़ रुपये से अधिक राशि की परियोजनाएं स्वीकृत की गई तथा ‘नीली क्रांति’ योजना के तहत इस वर्ष 13 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। योजना के तहत स्थानीय लोगों को स्वरोजगार प्रदान करने के लिए 80 हजार से एक लाख रुपए सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है ताकि अधिक से अधिक लोगों को इस क्षेत्र में स्वरोजगार प्राप्त हो।
हैचरियों से लेकर नर्सरी के लिए छोटे-बड़े आकार के तालाबों का निर्माण, मत्स्य आहार संयंत्रों तथा ट्राउट इकाईयों की स्थापना व मछली दोहन के उपरान्त उसके सही रख-रखाव और मत्स्य उत्पादों को तैयार करने का कार्य किया जा रहा है। प्रदेश के सभी फार्मों का आधुनिकीकरण व विस्तारीकरण किया जा रहा है तथा निजी क्षेत्र में हैचरियों की स्थापना करवाई जा रही है ताकि मछली बीज की कमी न हो।
युवाओं को मत्स्य पालन गतिविधियों से जोड़ने के लिए प्रदेश में अनेक योजनाएं लागू की गई हैं। मत्स्य पालन के लिए एक हैक्टेयर क्षेत्र के तालाब निर्माण में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के लाभार्थियों को एक लाख रुपये जबकि सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों लिए 80 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है।
सरकार के प्रयासों तथा मछली पालन के प्रति लोगों की बढ़ती रूचि के फलस्वरूप राज्य के प्रमुख जलाशयों में 6098 मछुआरों को पूर्णकालीन स्वरोजगार उपलब्ध करवाया गया है, जिनमें गोविन्द सागर में 2741, पौंगडैम में 2831, चमेरा में 145, महाराजा रणजीत सागर में 41 तथा कोल डैम में 340 मछुआरे शामिल हैं।
मत्स्य फार्म मत्स्य पालन गतिविधियों का आधार हैं। हिमाचल प्रदेश मत्स्य पालन विभाग द्वारा 12 मछली बीज फार्मों के माध्यम से मत्स्य सहायक सेवाएं उपलब्ध करवाई जा रही है। इन 12 मत्स्य फार्मों में से 6 ट्राऊट मछली जबकि अन्य 6 कार्प मछली के फार्म कार्यरत हैं। दो ट्राऊट मछली फार्म भरमौर के थला और कुल्लू के बन्जार (हामनी) तथा एक कार्प फार्म पांवटा में निर्माणाधीन है। चम्बा के धरवाला में एक एक्वेरियम हाउस एवं म्यूजियम केन्द्र स्थापित करने के लिए भी राशि स्वीकृत की गई है। प्रदेश में रेनबो ट्राऊट पालन तकनीक के सफलतापूर्वक हस्तांतरण के फलस्वरूप निजी क्षेत्र में इस अवधि के दौरान 611 ट्राऊट इकाइयों की स्थापना की गई है।
प्रदेश की जलधाराओं में मछलियों की मुख्यतः ट्राउट, महशीर, सहित बेरीलस, ग्लाईप्टोथोरेक्स इत्यादि प्रजातियां पाई जाती हैं। प्रदेश में नीली क्रांति लाने के उद्देश्य से मछली की दो नई प्रजातियां हंगेरियन कॉमन कार्प व अमूर कामन कार्प आयात की गई हैं। हंगेरियन कॉमन कार्प का प्रजनन बिलासपुर के दयोली (घाघस) में सफलतापूर्वक किया जा रहा है, जिससे प्रदेश में नीली क्रांति को एक नई दिशा मिली है।
प्रदेश सरकार मछुआरों की सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य में मत्स्य आखेट की गतिविधियों में कार्यरत 12000 मछुआरों को जीवन सुरक्षा निधि के अन्तर्गत लाया गया है। मत्स्य आखेट के दौरान मृत्यु होने अथवा पूर्ण अपंगता की दशा में उनके आश्रितों को 2 लाख रुपये तथा आशिंक अपंगता की दशा में 1 लाख रुपये प्रदान किए जाने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, अस्पताल में उपचार के दौरान व्यय पर 10 हजार रुपये का बीमा छत्र प्रदान किया जाता है।
प्रदेश सरकार मत्स्य आखेट गतिविधियां बंद रहने के दौरान भी मछुआरों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाती है। इस उद्देश्य से बचत एवं राहत योजना के अन्तर्गत मुछआरों को बंद सीजन के दो माह के दौरान मिलने वाली 1800 रुपये की धनराशि को बढ़ाकर अब 3000 रुपये किया गया है, जिसे दो किश्तों में मछुआरों को प्रदान किया जाता है। इसके लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा अनुपातिक 1600-400 रुपये का योगदान दिया जाता है, जबकि शेष राशि प्रत्येक मछुआरे द्वारा मत्स्य आखेट गतिविधियों वाले 10 माह में 100 रुपये प्रतिमाह की दर से जमा करवाई जाती है।
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