शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश विवि की ओर से प्रवेश परीक्षा के आधार पर विभिन्न पाठयक्रमों में दिए जाने वाले दाखिलों को बिना प्रवेश परीक्षा के दिए जाने के फैसले पर कडी टिप्पणी करते हुए इस मामले को एक सप्ताह के भीतर विवि कार्यकारी परिषद के सामने रखने व कार्यकारी परिषद को इस मामले पर तीन सप्ताह के भीतर फैसला लेने के आदेश दिए है।
प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तिरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ ने छात्रों की ओर से दाखिल याचिका का सुनवाई के बाद ये आदेश दिए।
याचिका में कहा गया था कि विवि ने मई में स्नातक व स्नातोकतर कक्षाओं में दाखिेले के लिए प्रवेश परीक्षा का कार्यक्रम जारी किया। लेकिन बाद में एलएलबी, बीएड और मास्ट डिग्री इन टूरिज्म पाठयोंक्रमों में दाखिला लेने के लिए ही प्रवेश परीक्षा करवाई। बाकी पाठयोंक्रमों में यूजीसी के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए प्रवेश परीक्षााएं ही नहीं करवाई व पिछली कक्षा में आइ मेरिट के आधार पर ही इन पाठयोंक्रों में दाखिला दे दिया । जबकि इन पाठयक्रमों में 1990 से ही प्रवेश परीक्षा के आधार पर बनने वाली मेरिट पर दाखिला दिया जाता रहा है।
याचिकाकर्ता ने इस इन तमाम दाखिलों को रदद करने व प्रवेश परीक्षाएं करवाने की अदालत से अाग्रह किया था।
दूसरी ओर विवि की ओर से दलीले दी गई कि कोरोना महामारी की ओर से सभी पाठयक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करवाना संभव नहीं था। कोविड की वजह से भीड एकत्रित नहीं की जा सकती थी। इसके अलावा यूजीसी के दिशा निर्देशों में प्रवेश परीक्षा करवाना जरूरी नहीं था। विवि के पास समय भी ज्यादा नहीं था।
अदालत ने विवि की इन दलीलों को दरकिनार कर दिया कि सितंबर में कोरोना को लेकर कई शतो्रं में छूट दे दी गई थी। इसके अलावा यूजीसी ने ऐसा कहीं नहीं कहा था कि प्रवेश परीक्षा नहीं करवाई जाएफ। जब एलएलअी, बीएड और मैट के लिए प्रवेश परीक्षाएं हो सकती थी तो बाकी पाठयक्रमों के लिए भी हो सकती थी। लेकिन विवि के अधिकारियों ने इस बावत एक बार भी नहीं सोचा और कोई कोशिश भी नहीं की। इस बाावत ज्यादा संसाधन लगाए जा सकते थे। इसके अलावा विवि प्रशासन ने यूजीसी के दिशानिर्देशों की मनमानी वयाख्या की। विवि का रवैया एकदम एकतरफा रहा है।
अदालत ने कार्यकारी परिषद को आदेश दिए कि वह इन दाखिलों को लेकर , इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम न देने वाले तमाम दोषी अधिकारियों और आगे के लिए जारी किए जाने वाले दिशानिर्देशों के संदर्भ में फैसला लें और इन तमाम पहलुओं को एक सप्ताह के भीतर यूजीसी के समक्ष भी पेश करें।
अदालत ने कहा कि इन पाठयक्रमों में दो महीनों से पढाइर् चल रही है और ये छात्र इस मामले में पक्षकार भी नहीं है। ऐसे में अदालत ने इन दाखिलों को अभी रदद करने से परहेज करती है।
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