शिमला। भाजपा सांसद अनुराग की ओर से एचपीसीए मामले में ट्रायल को स्टे करने व मामले को निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में वीरभद्र सिंह को पार्टी बनाना महंगा पड़ सकता है। पार्टी बना ही दिया था तो प्रदेश में जयराम सरकार के सता में आते ही उन्हें बतौर पार्टी हटा देना चाहिए था। कानूनन ऐसा किया जा सकता था। महज एक अर्जी दी जानी थी। लेकिन अनुराग ठाकुर के वकील चूक कर गए। खामियाजा बीते दिन सुप्रीम कोर्ट में भुगतना पड़ा। वीरभद्र सिंह को पूरा मामला अदालत के समक्ष लाने का मौका मिल गया है। अन्यथा बीते रोज ही यह मामला समाप्त हो जाता।
अनुराग ठाकुर और उनके पिता प्रेम कुमार धूमल व बाकियों के खिलाफ हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े मामलों को प्रदेश की जयराम सरकार की ओर से वापस लेने का वीरभद्र सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जमकर विरोध किया गया। वीरभद्र सिंह की ओर से पेश हुए थे जबकि इस बार वरिष्ठ वकील अनूप जार्ज चौधरी पेश हुए। मामले की अगली सुनवाई अब तीन मई को होनी है।
विवि विशेषज्ञों की माने तो इस मामले में अब अनुराग ठाकुर व धूमल का दांव उल्टा पड़ सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सारे तथ्य सामने लाए जा सकते है। बशर्ते धूमल और वीरभद्र सिंह के बीच को अंदरूनी डील न हो जाए।
इस मामले में पिछल्ली सुनवाई को पी चिंदबंरम अदालत सुप्रीम कोर्ट में बैठे रहे थे। ऐसे में प्रदेश सरकार की ओर से मामला वापस लेने को लेकर सरकार का पक्ष रखने गए एजी सहम गए थे। हालांकि बीते रोज न तो अनुराग ठाकुर के वकीलों और न ही प्रदेश के महाधिवक्ता ने सोचा था कि वीरभद्र सिंह की ओर से इस स्तर का विरोध जताया जाएगा।
प्रदेश की जयराम सरकार पर इन मामलों में दी गई अभियोजन मंजूरी को वापस लेने का दबाव है।
हालांकि अंदरखाते अब जयरम ठाकुर भी नहीं चाहते कि ये मामले में समाप्त हो । धूमल व उनक परिवार के अलावा उनके खेमे को वो भी अब दबाव में रखना चाहते है। वीरभ्द्र तो चाहेंगे ही नहीं कि धूमल के खिलाफ मामले समाप्त हो। जब तक वीरभद्र सिंह के मनी लाड्रिंग और आय से अधिक मामलों में कुछ हो नहीं जाता तब तक वह धूमल को भी नहीं छोड़ना चाहेंगे। दोनों परिवारों की रार डील के अलावा समाप्त नहीं हो सकती। अब तो मोदी सरकार का जलवा भी ढलान पर है और जब मोदी सरकार में वित मंत्री और धूमल परिवार के करीब अरुण जेटली का जलवा था तब वह वीरभद्र सिंह को गिरफतार नहीं करा पाए। कई सौदेबाजियां विफल हुई। कई दांव तबाह हुए। अब दोनों परिवार की रार का बाहर से सब मजा ले रहे हैं।
एचपीसीए मामले में सुप्रीम कोर्ट में अभी तक संभवत: पूरे तथ्य सामने नहीं आए है। अनुराग ठाकुर की ओर से एचपीसीए का ही पक्ष सामने आया है। अब जयराम सरकार भी एचपीसीए के साथ हो गई है। यानि की सरकार और एचपीसीए एक हो गई है। ऐसे में अदालत का रूझान रहेगा की वह मामले को समाप्त कर दें। लेकिन अगर वीरभ्द्र सिंह पार्टी रहते हैं तो यह मामला लटकता चला जाएगा। जो अनुराग व धूमल दोनों के लिए खतरा है।
अगर सुप्रीम कोर्ट के सामने सभी तथ्य आ गए तो हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट चंबा से विधायक आशा कुमारी के जमीन घोटाले मामले में निर्देश दे डाले। अभी तक यह कहीं से साफ नहीं हो पाया है कि एचपीसीए सोसायटी है या कंपनी । यह रजिस्ट्रार सहकारिता ने तय करना है। जमीन सोसायटी के पास है या कंपनी के पास । लीज सोसायटी के नाम हुई थी क्यावह कंपनी के नाम बदल दी गई है। जयराम सरक ार ने लीज मनी मंजूर कर ली है। यही तथ्य अगर इस तरह से सुप्रीम कोर्ट में चला गया कि सरकार व एचपीसीए में मिली भगत है। जानकारी के मुताबिक वीरभद्र सिंह ने पूरी तैयारी की हुई है। उधर ,मनी लांड्रिंग मामले में वीरभद्र सिंह के कारोबारी मित्र वकका मूला चंद्रशेखर की जमानत को इडी ने हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। अब देखना यह है कि मामला कहां जैसे व किस तरह से सुलटता है और अदालत क्या रुख अपनाती है।
गौरतलब हो कि सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस ए के सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की खंडपीठ में बीते रोजइस मामले की सुनवाई हुई और प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता अशोक शर्मा ने अदालत में कहा कि यह मामला राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से प्रेरित है और प्रदेश सरकार ने मंत्रिमंडल में यह फैसला लिया था कि वह ऐसे सो मामलोें को वापस लेंगी। पिछल्ली सुनवाई मं महाधिवक्ता अशोक शर्मा ने इस बावत साफ करने को कहा था। जिस पर उन्होंने अदालत से कहा था कि वह सरकार से इस बावत निर्देश लेकर अदालत को अवगत कराएंगे।आज उन्होंने प्रदेश सरकार की मंशा से सुप्रीम कोर्ट को अवगत करा दिया।
इस पर वीरभद्र सिंह की ओर से पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप जार्ज चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उनका पक्ष भी सुना जाए। इस तरह मामले को वापस नहीं लिया जा सकता। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि वह कोई आदेश पारित न करे।
इस बीच एचपीसीए की ओर से दलील दी गई कि वीरभद्र सिंह को वह बतौर पार्टी हटाना चाहती है। याद रहे कि जबभाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने इन मामलों को निरस्त करने के कि लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी तो उस समय वीरभद्र सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। अनुराग ठाकुर ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्होंने राजनीतिक दुर्भावना के तहत ये मामले दर्ज किए है। आज अनुराग ठाकुर के वकीलों की ओर से कहा गया कि अब वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री नहीं है ऐसे में उन्हें मामले में पार्टी बनाए रखने की जरूरत नहीं है।
इस पर वीरभद्र सिंह के वकील की ओर से अदालत में कहा गया कि वह पार्टी बनने के लिए अलग से अर्जी दायर करना चाहते है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अनुराग ठाकुर को लेकर कई बातें जुड़ी हुई है जो अदालत के नोटिस में आनी चाहिए। इस पर दोनों के वकील आपस में भिड़ गए। अदालत ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वह यहां ऐसा नहीं कर सकते। अब मामले की अगली सुनवाई तीन मई को होगी।
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