शिमला। हिमाचल प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं ने प्रदेश सरकार से ग्रामीण महिलाओं के अलग से ग्रामीण महिला नीति बनाने की मांग की है। इसके अलावा महिलाओंं के अधिकारों को लेकर इन महिलाओं ने राजधानी शिमला में ज्ञान विज्ञान समित और राज्य संसाधन केंद्र के बैनर तले ग्रामीण महिला दिवस के मौके पर आयोजित राज्य स्तरीय समाारोह में रैली भी निकाली।
समारोह में जिला सहित सोलन और बिलासपुर के सैंकड़ों प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। महिलाओं ने स्थानीय पंचायत घर से उपायुक्त कार्यालय तक जलूस निकाला और अपनी मांगों को लेकर नारेबाज़ी की।
इस मौके पर हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति की समता उप समिति की राज्य संयोजिका रीना सिंह ने कहा कि ग्रामीण महिलाओं की ग्रामीण आर्थिकी में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में ग्रामीण महिलाओं का ज़मीन तैयार करने में 32 फीसद, बीज बोने में 76 फीसद, रोपाई करने में 90 फीसद, खेत से घर तक फसल लाने में 86 फीसद और देश की 10 करोड़ गाय-भैंसों को पालने में अधिकतर योगदान है और हिमाचल प्रदेेश में 90 फीसद आबादी ग्रामीण है जो देश में सबसे ऊंची दर है। यहां भी पषुपालन में महिलाओं का योगदान 86.2 प्रतिशत, बागवानी 37.2 प्रतिशत, सब्ज़ी उत्पादन में 45.2 फीसद है।
उन्होंने कहा कि ग्रामीण महिलाओं के इसी योगदान को देखते हुए 1995 में बीजिंग में हुए चौथे महिला सम्मेलन में ग्रामीण महिला दिवस को मनाने का फैसला लिया गया और 2007 में 15 अक्तूबर को इस दिवस को मनाने की घोषणा की गई। 2008 से हर साल 15 अक्तूबर को यह दिन मनाया जाता है।
समारोह में इन ग्रामीण महिलाओं ने अपनी मांगों को लेकर एक चार्टर भी सीएम वीरभद्र सिंह को सौंपा जिसमें ये मांगे शामिल की गई-:
प्रदेश सरकार ग्रामीण महिलाओं के लिए अलग नीति तैयार करे।
जहां अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे मषीनें लगी हुई हैं वहां तकनीषियन दिए जाएं। ताकि सारा बोझ राज्य और क्षेत्रीय अस्पतालों पर न पड़े।
प्रदेश के एकमात्र महिला अस्पताल कमला नेहरू अस्पताल में बिस्तरों की संख्या बढ़ाई जाए।
क्षेत्रीय स्तर पर महिला अस्पताल खोले जाएं।
बन्दरों को डराने या भगाने के लिए निषानेबाज़ों के दल चिन्हित करवाए जाएं।
खण्ड स्तर पर चारा बैंक और उिपुओं में माध्यम से सस्ती पशु फीड उपलब्ध करवाई जाए।
वन भूमि और बेकार पड़ी भूमि से घास कटाई के काम को मनरेगा के काम के तहत लाया जाए।
पषुओं के लिए पीने के पानी की अलग से व्यवस्था की जाए।
चुनी हुई महिला प्रतिनिधियों को एक और महिला सहित मुफ्त बस पास की सुविधा प्रदान की जाए।
8 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय दिवस से महिला ग्राम सभा की तारीख बदल कर किसी और दिन रखी जाए ताकि महिलाएं महिला दिवस के समारोह में भी भाग ले सकें।
इस ग्राम सभा में पारित प्रस्तावों को अंतिम माना जाए और अगली ग्रामसभा में इन्हें पास करवाने की षर्त हटाई जाए।
महिलाओं के लिए पंचायतों में अलग से बजट का प्रावधान हो।
पीसी-पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू करवाया जाए।
पीसीपीएनडीटी-एक्ट के अन्तर्गत सलाहकार समितियों में महिला आन्दोलनों से जुड़ी महिलाओं को नामित किया जाए।
नशे के काले कारोबार को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। नशा माफिया को राजनैतिक संरक्षण देना बन्द किया जाए।
कार्यस्थल पर होने वाले यौन शोषण के खिलाफ आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को समय पर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए।
हर दफ्तर के बाहर यौन शोषण के खिलाफ शिकायत पेटी रखी जाए।
घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण कानून के तहत प्रोटेक्शन आॅफिसर के रूप में अनुभवी व्यक्तियों को नियुक्त किया जाए जो या तो डिग्री धारक हों या कानून के ज्ञाता हों।
महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए आंगनबाड़ी स्तरीय समन्वय समिति की मासिक बैठकों में उनकी ज़रूरतों से सम्बन्धित साहित्य व पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाई जाए।
ए ग्रामीण स्तर पर साक्षरता एवं सतत शिक्षा केन्द्र एवं पुस्तकालय खोले जाएं जहां पर महिलाओं को योजनाओं, विभिन्न आय वृद्धि कार्यक्रमों व स्वास्थ्य से सम्बन्धित जानकारियां मिले।
असंगठित क्षेत्र में काम कर रही महिला को 6 महीने का मातृत्व अवकाश मिले।
आंगनबाड़ी केन्द्रों के लिए ऐसे सरकारी भवन बनाए जाएं जहां पर पानी व शौचालय की उचित व्यवस्था हो।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं का नियमितिकरण किया जाए।
स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को 4 प्रतिशत ब्याज पर ऋण मिले।
उनके द्वारा तैयार उत्पादों के विपणन की सुचारू व्यवस्था हो।
उनके द्वारा तैयार उत्पादों का सरकारी संस्थाओं में इस्तेमाल हो।
उन्हें समय पर व्यवसायिक प्रशिक्षण दिए जाएं।
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