शिमला। रिलायंस समूह के अध्यक्ष अनिल धीरूभाई अंबानी व रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर उसकी सहयोगी कंपनी पार्वती कौल ट्रांसमिशन प्राइवेट लिमिटेड के बोर्ड आफ डायरेक्टर्ज और बाकियों के खिलाफ निचली अदालत के आदेशों पर दर्ज तीन एफआइआर को रदद करने से प्रदेश हाईकोर्ट ने इंकार कर दिया है। चार साल पहले 2015 में निचली अदालत के आदेशों पर बिलासपुर के थानों में ये मामले दर्ज हुए थे और पुलिस ने जांच भी शुरू कर दी थी। लोगों ने शिकयत दर्ज कराई थी कि पीकेटीसीएल ने लोगोंं की सहमति के बगैर उनकी जमीन पर टावर खड़े कर दिए और ट्रांसमिशन लाइन बिछा दी। पीकेटीसीएल ने कुल्लू से लुधियाना तक ये ट्रांसमिशन लाइन बिछाई थी।
प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंदर भूषण बारोवालिया की अदालत ने निचली अदालत को आदेश दिए है कि वह यह भी देखे कि कंपनी व उसके अधिकारी व कर्मचारी लोगों की सहमति के बगैर उनके संपति में कैसे घुस गए। अदालत ने कहा कि इन मामलों की गहराई से जांच की जरूरत है।
लेकिन पीकेटीसीएल ने इन मामलों को रदद करने के लिए अनिल अंबाणी व उनकी कंपनी ने प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पुलिस जांच को स्टे करने व मामलों को रदद करने का आग्रह किया था। तब प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने पुलिस जांच को स्टे कर दिया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा था निचली अदालत के पास इस तरह एफआइआरदर्ज करने के आदेश देने का अधिकार ही नहीं है।
याद रहे कि जिला बिलासुपर के दर्जनों लोगों ने पीकेटीसीएल की ओर से उनकी सहमति के बगैर उनकी जमीनों पर 440 केवी की टावर व ट्रांसमिशन लाइन बिछा देने के खिलाफ ये मामले दर्ज किए थे । पहले पुलिस ने मामले नहीं दर्ज किए लेकिन बाद में लोग अदालत में चले गए व निचली अदालत के आदेश पर पुलिस ने अनिल अंबाणी समेत दोनों कंपनियों के बोर्ड आफ डायरेक्टर्ज के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी,145,351,464,467,468,405,415,416,417,422,420,452,283,271,341,379,392,395,399,506,148,166 के अलावा पर्यावरण अधिनियम की धारा 14,भारतीय वन अधिनियम की धारा 41 व42 के तहत तीन मामले दर्ज कर दिए।
इसके खिलाफ कंपनी के शेयरधारकों ने आलोक के राय को हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की शक्तियां दे दी । उन्होंने आगे अतिरिक्त वाइस प्रेजिडेंट दलजीत सिंह बिजराल को याचिका दायर करने की पावर आफ अटार्नी दे दी। अदालत ने कहा कि जिसके खिलाफ एफआइआर दर्ज है,वहीं एफआइआर रदद करने के लिए याचिका दायर कर सकता । ऐसे में यह याचिका खारिज की जाती है।
अदालत में एफआर दर्ज करने वाले लोगों की की ओर से इल्जाम लगाया गया था कि पीकेटीसीएल ब्ूट कंपनी यानि बिल्ट,आपरेट,ओन एंड ट्रांसफर कंपनी थी ,लेकिन सरकार ने इसे बाद में बिल्ट आपरेट एंड ओन कंपनी बना दिया। ऐेसे में कंपनी इस ट्रासंमिशन लाइन की मालिक बन गई। इन परिस्थितियों में कंपनी नुकसान की भरपाई के लिए बाध्य ही नहीं है। लोगों की ओर से अदालत में कहा गया कि कंपनी को दंडित करने की जरूरत है और याचिकाकर्ताओं की एफआइआर दर्ज करने की याचिका को रदद कर देना चाहिए।
अदालत ने कहा कि वह अभी मेरिट पर नहीं जाना चाहती लेकिन प्रथम दृष्टया यह लगता है कि पीकेटीसीएल विभिन्न कानूनों के प्रावधानों की पालना करने में नाकाम रही। अदालत ने कहा कि इसके अलावा तत्कालीन एसडीएम बिलासपुर हरीश गज्जू की अध्यक्षता में गठित तथ्य अन्वेषण समिति ने भी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की है। प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंदर भूषण बारोवालिया ने अपने फैसले में कहा है कि निचली अदालत के पास एफआरआर दर्ज करने और की पूरी शक्तियां है।
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