शिमला। पूर्व आईपीएस अफसर ए एन शर्मा मामले में राज्यपाल कल्याण सिंह ने वीरभद्र सिंह सरकार को बड़ा झटका देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत न होने का फरमान जारी कर अजीब सिथति पैदा कर दी है। राज्यपाल कल्याण सिंह ने बीते रोज जयपुर से भेजी फाइल में साफ लिखा है कि धूमल के खिलाफ अभियोजन चलाने के लिए सरकार के मामले में पर्याप्त सबूत नहीं है।वहीं सरकार ने राज्यपाल के इस फरमान को ठेंगा दिखाते हुए साफ किया है इस मामले में चालान अदालत में पेश हो चुका है इसलिए राज्यपाल के फरमान को नहीं माना जा सकता।
विधानसभा में अपने कक्ष में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि सरकार पहले वाली राज्यपाल के आदेश को मानेगी। वह कानून सम्मत है और सुप्रीम कोर्ट के फैसलो के मुताबिक है।उन्होंने इस मसले पर राजभवन और सरकार के बीच किसी तरह के टकराव की स्थिति से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि अगर किसी को कोई आपति है तो वो अदालत जा सकता है। सीएम ने कहा कि राज्यपाल को किसी ने गलत सलाह दी है। वो गलत सलाह का शिकार हुए हैं। ऐसे में राज्यपाल के इस फरमान के स्टेटस की स्थिति पर सवाल खड़ा हो गया है।
राज्यपाल कल्याण सिंह इस मामले में फंसे पूर्व मुख्य सचिव रवि ढींगरा,पूर्व गृह सचिव पी सी कपूर और ए एन शर्मा के मामले में पूरी तरह से मौन रहे है। जयपुर से सीलबंद लिफाफे में आई फाइल को सरकार ने खोल दिया है और फाइल में राज्यपाल के फरमान को देखकर सरकार में उपर से लेकर नीचे तक हड़कंप मचा हुआ है। राज्यपाल के इस फरमान के बाद धूमल को जबरदस्त राहत मिल गई है। लेकिन कई सवाल भी खड़े हो गए है।
इस मामले में महत्वपूर्ण ये है कि सरकार ने इस मामले में अदालत में धूमल समेत सभी आरोपियों के खिलाफ चालान पेश कर दिया गया है। ऐसे में राज्यपाल की राय के कानूनी तोर पर क्या मायने है इसे लेकर कानूनविदों में बहस चल पड़ी है।सबसे अहम पहलू ये है कि इस मामले में 20 जनवरी को पूर्व राज्यपाल उर्मिल सिंह अपना अपना फरमान दे गई थी कि इस मामले में राज्यपाल से अभियोजन की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला भी दिया था और जिन अफसरों ने अभियोजन की मंजूरी राज्यपाल से मांगी थी ,उनके कृत्य को उन्होंने मिसकंडक्ट माना था और उनके खिलाफ मेजर पेनाल्टी लगाने के आदेश दिए थे। सरकार ने 20 जनवरी से लेकर 12 मार्च तक इस मामले में अदालत में चालान ही पेश नहीं किया। जब धूमल ने राज्यपाल को 12 मार्च को इस मामले में रिप्रेजेंटेशन दिया तो विजीलेंस आनन फानन में हरकत में आई तो चालान पेश किया।
इस मामले में एक अहम पहलू ये भी है कि सरकार ने कल्याण सिंह को अभियोजन मंजूरी के लिए कभी फाइल भेजी ही नहीं। धूमल के रिप्रेजेंटेशन के बाद कल्याण सिंह ने ये फाइल सरकार से वापस मंगाई । जब सरकार ने दो दिन के भीतर फाइल वापस उन्हें नहीं दी तो उन्होंने चिटठी लिख कर तुरंत फाइल उन्हें पहुंचाने के आदेश दिए। साथ ही आदेश दिए कि फाइल को जयपुर पहुंचाया जाए। लेकिन तब तक इस मामले में चालान पेश हो चुका था। अब स्थिति दिलचस्प बन चुकी है।
सोमवार को राज्यपाल ने फाइल में अपनी राय लिख कर जयपुर से वापस प्रदेश सरकार को भेज दिया था। ये सीलबंद थी ।
पूर्व आईपीएस अफसर एएन शर्मा मामले में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की ओर से दिए खुद को पाक साफ बताने को लेकर एक रिप्रेजेंटेंशन कल्याण सिंह को दिया था। ये पहली बार है कि किसी राज्यपाल ने अदालत में पहुंच चुके मामले की अभियोजन मंजूरी की फाइल को वापस मंगाया हो।
सूत्रों के मुताबिक 13 मार्च को जिस दिन धूमल ने ये रिप्रेजेटेशन कल्याण सिंह को थमाया। उसी दिन कल्याण सिंह ने चीफ सेक्रेटरी को फरमान जारी कर दिया कि वो इस फाइल को तुरंत राजभवन पहुंचाए।चीफ सेक्रेटरी ने सचिव जीएडी मोहन चौहान को फाइल पुट अप कराने के आदेश दिए। मोहन चौहान ने दूसरेदिन शाम को फाइल मित्रा के पास पहुंच दी।वहां से जब फाइल सीएम केपास पहुंची तो वो हैरान रह गए। कानूनविदों से सलाह ली गई और फाइल वहीं रुक गई। चूंकि वीरभद्र सिंह बेटी की शादी थी तो फाइल लटकाने का बहाना मिल गया। इस बीच राज्यपाल ने चालान पेश होने के बाद फिर पी मित्रा को फरमान निकाला कि फाइल तुरंत भेजे।
गौरतलब हो कि 13 मार्च को धूमल व पार्टीअध्यक्ष सतपाल सती की कमान में भाजपा मुख्यालय पर 29 जनवरी को हुए खूनीकांड की जांच कराने को कल्याण सिंह को ज्ञापन दिया था। उसी दिन धूमल ने व्यक्तिगत तौर पर राज्यपाल को एक तीन पन्नों का रिप्रेजेंटेशन दिया। जिसमें उन्होंने कहा कि वीरभद्र सिंह सरकार ने पूर्व आईपीएस अफसर ए एन शर्मा की दोबारा नौकरी बहाली पर उन्हें गलत मुलजिम बनाया है।उनका इस मामले से कोई लेना देना नहीं है।जो कार्यवाही भी हुई वह अधिकारियों ने जो उन्हें फाइल भेजी उसके मुताबिक हुई। इसलिए उनके खिलाफ जो मामला चलाया जा रहा है उसकी समीक्षा की जाए।
।धूमल सरकार ने पूर्व आईपीएस शर्माको 2008 में दोबारा नौकरी पर बहाल कर दिया था।शर्मा ने तब भाजपाके टिकट पर चुनाव लड़ने की मंशा से अपने पद से इस्तीफा दे दियाथा। वो कायदे से एक महीने की अवधि में अपना इस्तीफा वापस ले सकते थे। लेकिन 2007 में जिस दिन ये एक महीना पूरा हुआ उस दिन सरकार केपास इस्तीफा वापस लेने का कोई दस्तावेज सचिवालय के रिकार्ड में नहीं था।जिस पर तत्कालीन सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर कर दिया।इसके सात दिन बाद भाजपा के टिकटों का एलान हुआ और ए एन शर्मा कहीं कोई नाम नहीं था।
शर्मा ने अपने इस्तीफे को मंजूर किए जाने को इस दलील पर चुनौती दी कि उन्होंने तो एक महीना पूरे होने के दिन ही इस्तीफा वापस लेने की चिटठी सरकार को लिख दी थी। इस पर कैट ने सरकार की ओर सेउनके इस्तीफा मंजूर किए जाने के फॅैसले को स्टे दे दिया। इस बीच प्रदेश में धूमल सरकार सतासीन हो गई और शर्मा ने सरकार को एक रिप्रेजेंटशन देकर खुद की बहाली का आग्रह किया।जिसपर धूमल ने एग्जामिन लिख कर फाइल अफसरों को सरका दी।इस तरह शर्मा की बहाली हो गई।इस मामले की 2012 में वीरभद्र सिंह के सतासीन होने पर शिकायत हुई और एसपी सोलन रमेश छाजटा को जांच का जिम्मा सौंपा गया। छाजटा ने इस मामले में धूमल,तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी रवि ढींगरा,तत्कालीन गृह सचिव पीसी कपूर व ए एनशर्मा को मुलजिम बना दिया ।
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