शिमला। हिमाचल प्रदेश के निर्माता डा.यशवंत सिंह परमार का राज्य हिमाचल प्रदेश आज भ्रष्टाचार और कर्ज के फंदे में फंसा दिया गया है। आज ये सवाल प्रासंगिक है या कि प्रदेश ने विकास की कितने पायदान चढ़े,ये। ये जवाब कांग्रेस व भाजपा दोनों की ओर से आना चाहिए।
खास कर प्रदेश के चार बड़े नेताओं की जवाबदारी तो बनती ही है। इनमें परमार के बाद मुख्यमंत्री बने ठाकुर रामलाल, शांता कुमार,मौजूदा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और सुखराम के नाम खासतौर पर शामिल है।सुखराम मुख्यमंत्री नहीं बने लेकिन बतौर केंद्रीय मंत्री वो भ्रष्टाचार का कलंक जो परमार के राज्य को दे गए,ऐसा हिमाचल निर्माता परमार ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। पूर्व मुख्यमंत्री रामलाल ठाकुर से लेकर मौजूदा सीएम वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के छींटे सवार हो चुके है।नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल का दामन साफ नहीं है।आज आलम ये है कि सीएम व नेता विपक्ष के परिवार भ्रष्टाचार के फंसे है। प्रदेश से दो लोकसभा सांसद अनुराग ठाकुर व वीरेंद्र कश्यप भी भ्रष्टाचार के मामले झेल रहे है।
सीबीआई,इडी और विजीलेंस,पुलिस के वाहनों के सायरनों की सांय- सांय एक अरसे से इस पहाड़ी राज्य की वादियों में गूंज कर यहां की भोली भाली जनता को शर्मसार कर रही है। 70-80 के दशक में वनकाटुओंं ने यहां पर जमकर हाहाकार मचाया। हाहाकार मचाने वालों में सफेदपोशों से लेकर खाकी पर सितारें पहनने वाले शामिल रहे।नौकरशाहों ने चांदी न कूटी हो ये क्या संभव है। खूब लूट मची। वो दौर खत्म हुआ तो लगा कि चीजें सुधरेंगे। कुछ संभवत: सुधरी भी। पर गलीचे के नीचे सब कुछ चलता रहा और हिमाचल निर्माता का राज्य दलदल में फंसता गया।
फिर हिमाचल के लिए दिल्ली से प्रदूषित हवाएं चली और 1996 में दूरसंचार क्रांति के दूत सुखराम के मंडी स्थित आवासों में करोड़ों की करंसी मिली।हिमाचल के लोगों ने कभी नहीं सोचा था कि प्रदेश का कोई नेता इतनी संपति अपनी झोली में डाल जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ।उन्हें दिल्ली की अदालत ने दोषी करार दिया।मामले आज भी देश की अदालतों में हैं।
1998 में भाजपा के प्रेम कुमार धूमल ने सरकार बनाई तो सहारा सुखराम का ही मिला। धूमल ने वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार को खंगालने के लिए अपने सिपाही लगा दिए। बड़े बाबू तैयार नहीं हुए तो छोटे बाबूओं को टोहा गया।वो तैयार हुए पर कीमत मांगी गई। कीमत दी भी गई।वो बाबू आज भी मौज उड़ा रहे है।पर भ्रष्टाचार पर लगाम तो लगी ही नहीं। डा. परमार की आत्मा इन करतबों को देखर जरूर मुस्कराई होगी।धूमल के शासन काल में पूरे पांच साल कुछ भी नहीं खोदा गया। उनकी सरकार गई तो वीरभद्र सरकार फिर सता में लौट आई।कई दांव पेच चले । एक भी नेता नहीं पकड़ा गया।एक रिटायर बाबू पकड़ लिया गया।फिर सीडी का सियार बाहर निकल आया।वीरभद्र के एक खाकी वाले अफसर ने पलटी मारी और 2008 में धूमल सरकार के दौरान वीरभद्र सिंह पर हमला बोल दिया। खूब हल्ला मचा। पर भ्रष्टाचार में लगाम तो लगी ही नहींं और के साथ -साथ अंबानी व अदानी ,डीएलएफ की घुसपैठ प्रदेश में हो गई।तब से लेकर अब तक प्रदेश की शांत वादियों में सीबीआई,इडी,विजीलेंस व पुलिस के वाहनों की सायरनों की आवाजें लोगों के कानों को दर्द दिए जा रही है।
ये तो हुआ ही। एक और बड़ा कारनामा हुआ। नेताओं के पास अकूत संपति आ गई और नेताओं केे पुत्र-पुत्रियों को ये बात समझ आ गई कि अगर पैसा कमाना है तो राजनीति में घुस जाओ।पुत्र सीएम का हो या नेता प्रतिपक्ष का ।प्रोफेशनल नहीं है।न डाक्टर हैं, न इंजीनियर। खैर,अपवाद तो होते ही है।
एक तर फ येहुआ तो दूसरी ओर रइसों के लिए 2009 से2014 तक कुल छह सालों में 35 हजार करोड़ रुपया बांट दिया गया।रइसों के लिए मजदूरों की लाशें बिछाने से लेकर उनकी हकों पर डाका डालने तक कुछ भी किया जा सकता है।ये किया भी जा रहा है। चमकीलें सितारों वाले व स्टील फ्रेम के बाबू आनंद लिए जा रहे है। सीएम व नेता प्रतिपक्ष हाथ भी मिलाते जा रहे हैं और खंजर भी घोंपते जा रहे है। पीठें किसकी लहूूलुहान हो रही है ये तय करना मुुश्किल नहीं है।
इस सब के बावजूद हिमाचल निर्माता डा.परमार की जयंती पर उनकी प्रतिमाओं पर फूलमालाएं चढ़ाना जारी है।
(0)