शिमला। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने बुधवार को संजय ठाकुर की पुस्तक तिश्नाकाम का विमोचन किया। मुख्यमंत्री ने लेखक के काम की सराहना करते हुए कहा कि यह एक अनुपम साहित्यिक कृति है जिससे साहित्य जगत और समृद्ध होगा।
तिश्नाकाम एक जीवन दर्शन है। इसका शाब्दिक अर्थ है, प्यासा। वास्तव में यह प्यास अन्धकार में छुपे एक प्रकाश को खोजने और अन्धेरे में भटके कुछ सवालों के जवाब पाने की है। यह प्यास मन की गहराइयों से उपजी एक आत्मिक या रूहानी प्यास है। इस पुस्तक में लेखक ने अपनी अब तक की जीवन यात्रा के कुछ अनुभवों को समेटा है। यह पुस्तक फ़ारसी, उर्दू, हिन्दोस्तानी भाषा के ठेठ काव्य पर आधारित है। इसमें ग़ज़लों, रुबाइयों, कतओं, नज़्मों और गीतों का संग्रह है।
इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि प्रत्येक रचना में भाषा का सटीक चयन किया गया है। जहाँ फ़ारसी भाषा के ठेठ शब्दों की आवश्यकता थी वहाँ फ़ारसी के विशुद्ध शब्दों का प्रयोग है तो जहाँ उर्दू भाषा के शब्दों की आवश्यकता थी वहाँ उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इसी प्रकार विभिन्न रचनाओं में आवश्यकता के अनुरूप हिन्दोस्तानी भाषा का प्रयोग किया गया है। शायर की ये रचनाएं मीर और ग़ालिब के ज़माने की याद दिलाती हैं।
तिश्नाकाम के लेखक संजय ठाकुर एक जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार हैं। संजय ठाकुर ने जनसत्ताए योजनाए कुरुक्षेत्ए, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी, दैनिक ट्रिब्यून, दिव्य हिमाचल, आपका फ़ैसला, दैनिक न्याय सेतु, हिमाचल दिस वीक, शुक्रवार, जनपक्ष मेल और प्रचण्ड हिमाचल जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र व पत्रिकाओं के लिए लेखन किया है। समाचार पत्र लेखन के लिए इन्हें वर्ष 2006 में सर्वश्रेष्ठ लेखक का पुरस्कार भी मिल चुका है। इन्होंने जनसत्ता, दैनिक जागरण और शुक्रवार जैसे समाचार पत्रों में संवाददाता के रूप में भी कार्य किया है। संजय ठाकुर ने दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर के लिए स्तम्भ लेखन भी किया है।
संजय ठाकुर साथ ही एक सामाजिक संस्था रिसर्च एण्ड वैल्फ़ेयर ऑर्गेनाइज़ेशन [आरडब्ल्यूओ] के अध्यक्ष भी हैं। इन्होंने वर्ष 2002 में दस हज़ार से ज़्यादा बाल मज़दूरों और बंधुआ बाल मज़दूरों को श्रम मुक्त करवाने और उनके पुनर्वास पर आधारित चाइल्ड लेबर ऐबोलिशन प्रोग्राम क्लैप की शुरुआत की थी जिसको चौदह वर्ष से ज़्यादा का समय हो चुका है।
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