शिमला।हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भाजपा सांसद व बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के खिलाफ प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार की ओर से दर्ज एक और एफआईआर को रदद कर दिया है।इसके अलावा सीजेएम धर्मशाला की अदालत में चल इस मामले में पुलिस की ओर से दायर चालान को भी रदद कर अनुराग ठाकुर को राहत दी है। जबकि प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार को बड़ा झटका लगा है। सरकारी जमीन के अतिक्रमण को लेकर दर्ज इस एफआईआर और चालान को जस्टिस राजीव शर्मा ने रदद किया है।इस मामले में हिमाचल प्रदेश क्रिकेट के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर व विशाल मरवाह के खिलाफ चालान पेश किया गया था। अनुराग ठाकुर ने हाईकोर्ट से इस एफआईआर और चालान को रदद करने की याचिका दायर की थी।अदालत अनुराग ठाकुर की याचिका को मंजूर कर लिया।
प्रदेश हाईकोर्ट के इस आदेश ने प्रदेश की वीरभद्र सिंह सरकार बड़े बाबू अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह व कांगड़ा के रेवन्यू अफसरों की कारगुजारी को जगजाहिर कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि वीरभद्र सिंह के अपने अधीन गृह विभाग के सबसे बड़े बाबूू ने अदालत में अनुराग की याचिका पर vague and sketchy जवाब दिया। इस बाबू ने आखिर ऐसा जवाब क्यों फाइल किया होगा।इस पर सवाल है।
हाईकोर्ट के आदेश में जो खुलासा हुआ है वो बेहद संगीन व चौंकाने वाला है। तहसीलदार धर्मशाला ने अतिक्रमण के इस मामले में डिमारकेशन के समय एचपीसीए के पदाधिकारियों को पार्टी ही नहीं बनाया। डिमारकेशन रिपोर्ट में जिन खसरा नंबरों पर अतिक्रमण किया गया है वही गलत है। तहसीलदार ने उन्हेंठीक ही नहीं किया । दोबारा डिमारकेशन के लिए पुलिस व विजीलेंस को डिमारकेशन रिपोर्ट कोरिव्यू कराना चाहिए था वो कराया ही नहीं गया।अतिक्रमण वाली जमीन के साथ जिन लोगों की जमीनें थी उन्हें डिमारकेशन के समय पार्टी ही नहीं बनाया गया।यही नहीं धर्मशाला पुलिस ने जिन धाराओं 441व447 केे तहत मामला दर्ज किया वो धाराएं बनती ही नहीं थी।
इस तरह भ्रष्टाचार व आय से अधिक संपति के मामले में मोदी सरकार की सीबीआई व इडी की ओर से दबोचे गए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अपनी सरकार व उनके अपने बाबू अजीबों गरीब गुल खिला रहे ।
अनुराग के खिलााफ ये था मामला-: 15 सितंबर2001 को तब की धूमल सरकार के सचिव शिक्षा ने कुछ शर्तों पर खेल विभाग को जमीन ट्रांसफर की।इस जमीन जो 49118.25वर्गमीटर थी,को भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर की हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन ने विभाग के तत्कालीन निदेशक सुभाष आहलुवालिया जो अब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के सलाहकार हैं,के साथ इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण कराने के लिए लीज पर लेने के लिए लीज डीड साइन की।अनुरााग ठाकुर ने यहां पर स्टेडियम बना दिया।
दिसंबर2012में प्रदेश में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की सरकार बनी तो उन्होंने इस मामले की विजीलेंस जांच शुरू करा दी। विजीलेंस के धर्मशाला में तैनात डीएसपी ने डीसी कांगड़ा़ा को लिखा कि विजीलेंस ने 3अक्तूबर2013 को एचपीसीए के खिलाफ आईपीसी की धारा 447,120बी,3पीडीपीएक्टऔरभ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा13(2)के तहत एफआइआर नंबर 14/2013दर्ज कर रखी है व जांच तेजी से चल रही है। इसलिए इस जमीन की डिमारकेशन चाहिए।डीसी ने तहसीलदार धर्मशाला को डिमारकेशन करने केआदेश दिए। तहसीलदार ने14नवंबर 2013 को डिमारकेशन कर दी और 16 नवंबर को डीएसपी को इस बावत जानकारी दे दी।
डिमारकेशन रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि मोहाल चैलाएं में एचपीसीए ने खसरा नंबर 3620/2826/1में 216.25 वर्गमीटर,खसरा नंबर 3618/2826में 756.38वर्गमीटर,3647/3547/3335में966.56 वर्गमीटर और खसरा नंबर 460/207में414.20वर्गमीटर पर अतिक्रमण कर रखा है।
ऐसे में एचपीसीए के कब्जे में 45959-68वर्गमीटर जमीन है जबकि 29सितंबर 2002 को डीड नंबर 678के तहत इन खसरा नंबरों में 49118.25 वर्गमीटर जमीन लीज पर दी गई थी। ये खुलासा होने के बाद एडीजीपी विजीलेंस ने एसपी कांगड़ा को 20 फरवरी 2014 को इस मामले में धारा 447 के तहत एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच करने को कहा। पुलिस स्टेशन धर्मशाला में एफआईआर दर्ज होने के बाद 16 अप्रैल 2014 को थाने के प्रभारी ने तहसीलदार को संबंधित खसरानंबरों की रिपोर्ट तैयार कर पुलिस को आगे की जांच के लिए सौंपने के निर्देश दिए।
तहसील दार व थाना प्रभारी के बीच काफी सारा पत्राचार चला। आखिर में शिवदेव सिंह ने डिमारकेशन की ।उसके बयान दर्ज किए गए।जिसमें उसने कहा कि डिमारकेशन में खसरा नंबर3620/2826/1को साहबान दर्शाया गया है जबकि सही खसरा नंबर 3638/2838/1हैं।डिमारकेशन रिपोर्ट में 414.20वर्गमीटर जमीन को वो साहबान दर्शाना भूल गया।खसरा नंबर460/307 के मालिक गुरमित सिंह हैं।जांच पूरी की गई व चालान पेश कर दिया । भाजपा सांसद व एचपीसीए के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर वविशाल मारवाह को अदालत ने 7नवंबर 2015 और 21 नवंबर 2015 को सम्मन किया।
अदालत ने कहा कि केस काा आधार14नवंबर 2013 को तहसीलदार शिवदेव सिंह की ओरसे की गई डिमारकेशन था। रिपोर्ट के मुताबिक एचपीसीए ने खसरा नंबर 3620/2826/1 पर216.26, 3618/2826/1 पर 756.28 वर्ग मीटर और 3675/3547/3335/मिन 1पर 966.56वर्गमीटर पर अतिक्रमण कर रखा है। अदालत ने पाया कि तहसील दार शिव देव सिंह ने खुद माना है कि सही खसरा नंबर3628/2838/1है न कि 3620/2826/1। अदालतने कहा कि तहसीलदार लेये गलती ठीक नहीं की। सीआरपीसी कीधारा 163 के तहत दिया बयान साइन नहीं है।इसी तरह उसकी 14 नवंबर 2013 की रिपोर्ट में उसने कहा कि एचपीसीए ने खसरा नंबर 460/307 पर भीकब्जा किया हैलेकिन उसने ये नहीं दर्शाया किये जमीन गुरमित सिंह की हैं। जबकि 14नवंबर 2013 को दर्ज एफआईआर का आधार ही ये डिमारकेशन है।
अदालतने अपने फैसले में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह पर भी सवाल उठाया है।फैसले में कहा गया है कि सरकार की ओर से दायर किया गया जवाब vague and sketchy था।याचिका में उठाए गए मसलों को सही ढंग सेे नहीं नकारा गया। अदालत ने आब्जर्व किया है कि याचिका में लिए गए सभी ग्राउंड को लेकर वीरभद्र सिंह सरकार को विस्तृत जवाब दायर करना चाहिए था।जवाब जिम्मेदार अफसरकीओर दिया गया थालेकिन ये सीीआरपीसी के आर्डर19 केमुताबिक नहीं था।
यहां ये बड़ा सवाल ये खड़ा हो गया है कि वीरभद्रसिंह जिनके खुद के अधीन गृह विभाग है,एसके अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह ने विस्तृत जवाब क्योंं नहीं दिया । क्या जानबूझ कर जवाब में खामियां रखी गई या कोई जवाब था ही नहीं है। सवाल सीधे मुख्यमंत्री पर है। अगर उन्होंने अपने अतिरिक्त मुख्य सचिव को ये सबकरने केनिर्देश दिए तो भीबउ़ा मसला है और अगर अतिरिक्त मुख्य सचिव ने सब कुछ खुद किया तो भी सवाल सीएम पर ही है।बहरहाल हाईकोर्ट ने गृह सचिव ही नहीं डिमारकेशन कैसे की गई उस पर भी सवाल उठाए हैं।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस मामले में की गई डिमारकेशन को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में एचपीसीए के पदाधिकारियों कोबिना सूचना दिए ही डिमारकेशन कर दी गई। कायदे से एचपीसीए के पदाधिकारियोंं को डिमारकेशन करने केलिएनोटिस दिया जाना चाहिए था। पक्के बिंदु निर्धारित करते समय उनकेे ब्यान लिए जाने की जरूरत थी।
डिमारकेशन के बाद पार्टियों के बयान लिए जाने चाहिए थे और विस्तृत डिमारकेशन रिपोर्ट के साथ फाइल में लाए जाने चाहिए थे। एचपीसीएके पदाधिकारियों को कभी भी पार्टी नहीं बनाया गया।उन्हें डिमारकेशन कीी डेट तक नहीं बताई गई और डिमारकेशन के बाद उनकेे बयान भी नहीं लिए गए।रिपोर्ट में क्लीया तौर पर ये दर्शाया जाना चाहिएथा कि डिमारकेशन के समय पार्टियों में कौन मौजूद व कौन गैरमौजूद था। रिपोर्ट में बहुत कुछ डिटेल में बताया जाना चाहिए था । इंटेरेस्टिड पार्टी के बयानरिकार्ड होने चाहिए थे उनकी आपतियां भी आनी चाहिए थी।
लेकिन इस मामले में डिमारकेशन को निर्धारित किए गए पक्के बिंदु के समय एचपीसीए के पदाधिकारियोंं को पार्टी हीनहींबनाया गया।उन्हें डिमारकेशन को लेकर आपतियां दर्ज करने के अधिकार से भी वंचित किया गया। अदालत ने कहा किएचपीसीए के वदाधिकारी तो छोडि़ए साथ लगती जमीन के मालिकों तक को पार्टी नहीं बनाया गया था।
अदालत ने कहा कि 14नवंबर 2013 की डिमारकेशन रिपोर्ट कानून के मुताबिक नहीं थी।रिपोर्ट में सही खसरा नंबर नहीं दर्शाए गए थे।तहसीलदार की डिमारकेशन रिपोर्ट के मुताबिक 3620/2826/1खसरा नंबर है जिस पर एचपीसीए ने अतिक्रमण कर रखा है।जबकि पुलिस को दिए बयान में तहसीलदार शिवदेव सिंह ने सही खसरा नंबर 3628/2838/1 बताएंं हैं। खसरा नंबर 460/307 में 414.20 वर्गमीटीजमीन सरकार की है ही नहीं ये निजी संपति है।जिस पर पुलिस सू मोटो कार्रवाई नहीं कर सकती।
डिमारकेशन रिपोर्ट में एचपीसीए के सााथ गुरमित सिंह का कहीं कोई जिक्र ही नहीं हैं।गुरमित का जिक्र तहसीलदार शिव देव सिंह के22 जुलाई 2014 को लिए बयान में आया है।
पुलिस ने गलत डिमारकेशन से बाहर निकलने के लिए 11 जून 2014 को तहसीलदार को लिखाा कि क्या खसरा नंबर 3620/2826/1, 3618/2826/1 and 3675/3547/3335 min/1 की दोबारा नए सिरे से डिमारकेशन हो सकती है। इस पर तहसीलदार ने थानेदार को 3जुलाई 2014 को बताया कि जब तक पुरानी डिमारकेशन को उच्च अधिकारी रिव्यू नहीं कर देते तब तक दोबारा डिमारकेशन नहीं हो सकती।हालांकि इस बिंदु को लेकर आदेश में बहुत कुछ कहा गया है जो बेहद महत्वपूर्ण है।
यहां ये महत्वपूर्ण है कि ये खेल क्यों खेला गया व किसने खेला। क्या धूमल परिवार व वीरभद्र परिवार में कोई डील हो गई थी। डिमारकेशन को रिव्यू कराना कौन से मुश्किल काम था। क्या इस मामले को दोबारा खोला जा सकता है।
एचपीसीए को 49118.25 वर्ग मीटर जमीन लीज पर दी गई थी जबकि डिमारकेशन रिपोर्ट में उनके कब्जे में 42886.52 वर्गमीटर जमीन पाई गई थी।
हाईकोर्ट जिन धाराओं के तहत एफआईआरदर्ज की गई उनपर भी सवाल उठाया है।
मौजूदा केस में अनुराग व विशाल मरवाह के खिलाफ एफआईआर धारा 447 केतहत दर्ज की गई थी। अदालत ने कहा कि धारा 441(आपराधिक तौर किसी के क्षेत्र में घुसना Criminal trespass )व 447 (Punishment for criminal trespass )के तहत मुकदमा तो दर्ज कर दिया लेकिन ये नअतो एफआईआर में और न ही चालान में कहीं दर्शाया गया कि एचपीसीए का कौन व्यक्ति शिक्षा विभाग की जमीन पर जबरन घुस आया और किसी को धमकाया व नाराज किया गया। जिसे धमकाया गया उसका जिक्र भी कहीं नहीं हैं । इसके अलावा एचपीसीएके अध्यक्ष अनुराग ठाकुर व सचिव विशाल मरवाह के खिलाफ मामला तो दायर कर दिया लेकिन ये कब जबरन घुसे व किसी को धमकाया इसका जिक्र नहीं है।इसकेअलावा आदेश में ये भी कहा गया है कि एचपीसीए के पदाधिकारी शिक्षा विभाग के अफसरों से मिलते रहे।ऐसे में इन धाराओं के तहत मामला दर्ज नहीं हो सकता।अदालत ने कहा कि सरकार ने चालान में कहा है कि एचपीसीए ने सरकारी जमीन कब्जा किया है। अदालत ने ऐसे में एफआईआर व सीजेएम की अदालत में दायर चालान दोनों को निरस्त करअनुरााग ठाकुुर को एक और केस से बाहर कर दिया।
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