शिमला। प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश विवि को एक छात्र को समय पर समेकित अंक तालिका न देने पर 40 हजार रुपए का मुआवजा देने के एकल पीठ के फैसले को निरस्त करने के विवि प्रशसन की अपील को खारिज कर दिया । खंडपीठ ने कहा कि जिस तरह का सलूक इस छात्र से किया गया उसे देखते हुए विवि को ज्यादा मुआवजा देना चाहिए था। खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को बहाल रखा और विवि की अपील को खारिज कर दिया।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति रवि मलिमठ और न्यायामूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि विवि प्रशासन ने इस छात्र का इतना नुकसान कर दिया कि उसकी भरपाई नहीं हो हो सकती।
प्रदेश विवि के एक छात्र ने उच्च न्यायालय की एकल पीठ में याचिका दायर की थी कि उसने 2005 में अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोतर विषय की परीक्षा में पास की थी लेकिन उसकी समेकित अंक तालिका जारी करने में इतनी देरी कर दी जिससे उसके भविष्य को लेकर भारी नुकसान हो गया।
नवीन कुमार नामक इस छात्र अदालत में दायर अपनी याचिका में कहा था कि उसने 2005 में अर्थशास्त्र विषय के तमाम पेपर पास कर दिए थे लेकिन विवि प्रशसन ने उसकी समेकित अंक तालिका जारी नहीं की। इस छात्र ने कहा कि उसे दो पेपरों में विवि ने गैर हाजिर करार दे दिया जबकि उसने यह पेपर दिए थे । इस बावत उसने विवि के साथ पत्राचार भी किया और बताया कि उसने पेपर दिए थे।
वह कई बार अधिकारियों से भी मिला। बाद में विवि के कर्मचारियों ने दस्तावेज देखने के बाद पाया कि वह पेपर में हाजिर हुआ था व उसने पेपर दिए थे। उसे विवि प्रशासन ने भरोसा दिया कि उसके मामले को जल्द सुलझा लिया जाएगा।लेकिन जब उसने समेकित अंक तालिका लेने के लिए आवेदन किया तो उसके आवेदन को रदद कर दिया।
उसने उसके बाद दोबारा कई बार विवि का रुख किया व मामले को सुलझाने का आग्रह किया लेकिन विवि ने यह कह कर कि उसके दस्तावेजों को देखने के लिए उनके पास समय नहीं है उसके मामले को लटकाए रखा।
इस छात्र ने कहा कि इस तमाम प्रक्रिया में उसके हजारों रुपए खर्च हो गए और उसे विवि के कर्मचारियों के बुरे बर्ताव का भी शिकार होना पड़ा। उसने कहा कि यह साल उसके भविष्य के बेहद महत्वपूर्ण थे । लेकिन अंक तालिका न होने से उसे दर्जनों साक्षात्कारों से वंचित रहना पड़ा क्योंकि उसके पास स्नातकोत्तर की डिग्री नहीं थी। इसके अलावा जहां स्नातकोत्तर डिग्री की जरूरत थी, उसे उस तरह की दर्जनों परीक्षाओं से वंचित रहना पड़ा।
इस छात्र ने उच्च न्यायालय की एकल पीठ से पांच लाख रुपए का मुआवजा अदा करने का आग्रह किया था। सुनवाई के दौरान विवि ने माना था इस छात्र ने पेपर दिए थे लेकिन उसे 19 अंक मिले थे।
एकल पीठ ने इस छात्र को कोर्स पास करने के लिए कम से कम तीन अवसर मुहैया कराने और उसे 40 हजार रुपए मुआवजा देने के आदेश दिए थे। विवि ने एकल पीठ के इस आदेश के खिलाफ खंडपीठ में अपील दायर कर दी थी।
खंडपीठ ने विवि की अपील को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि एकल पीठ का फैसला बिलकुल सही है और एकल पीठ ने बहुत कम मुआवजा देने का आदेश दिया था। खंडपीठ ने कहा कि यह छात्र कायदे से ज्यादा मुआवजे का हकदार है। ऐसे में खंडपीठ एकल पीठ के फैसले में दखल नहीं देना चाहते और विवि की अपील को खारिज कर दिया।
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