शिमला। हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग की सदस्य मीरा वालिया की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को प्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है और मीरा वालिया की नियुक्ति को सही करार दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में आज सुनाए अपने फैसले में कहा है कि याचिका कर्ता को किसी ने मीरा वालिया के खिलाफ याचिका दायर करने के लिए इस्तेमाल किया है व याचिकाकर्ता,साफ नीयत से अदालत नहीं पहुंचा है।
प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायामूर्ति एल नारायण स्वामी और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाना चाहती है लेकिन याचिकाकर्ता कानून का छात्र है इसलिए वह ऐसा करने से खुद को रोक रही है।
अदालत ने अपने फैसले में साथ ही भरोसा जताया है कि सरकार राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति को लेकर मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर,प्रशासनिक दिशा निर्देश और मापदंड तय करेगी ताकि इन पदों पर एकपक्षीय नियुक्तियों की संभावनाओं को रोका जा सके।
हेम राज नामक याचिका कर्ता ने पांच मई 2017 को पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की ओर से मीरा वालिया को राज्य लोक सेवा आयोग की सदस्य को नियुक्ति करने की राज्य पाल को सिफारिश करने व राज्यपाल की ओर से नकी नियुक्ति करने को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा था कि मीरा वालिया को राज्य लोक सेवा आयोग का सदस्य नियुक्त करने में संवैधानिक प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के की ओर से निर्धारित किए गए कानून का उल्लंघन किया गया है। मीरा वालिया इस पद के लिए संवैधानिक पात्रता को पूरी नहीं करती है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि अतिरिक्त मुख्य सचिव कार्मिक की ओर से मुख्यमंत्री के समक्ष आयोग के सदस्य के रूप में किसी उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति करने का मसौदा रखा गया व फाइन मुख्यमंत्री के पास गई। मुख्यमंत्री ने फाइन पर लिखा के एक मलिा व शिक्षाविद होने के नाते मीरा वालिया को आयोग का सदस्य का नियुक्त किया जाए। इसके बाद मामला राज्यपाल को भेज दिया गया व राज्यपाल ने मीरा वालिया को आयोग का सदस्य नियुक्त कर दिया।
याचिका में यह भी कहा गया कि मीरा वालिया के अलावा किसी अन्य के नाम पर विचार नहीं किया गया व मीरा वालिया की निष्ठा ,ईमानदारी और अन्य योग्यताओं की भी पड़ताल नहीं की गई। मीरा वालिा की नियुक्ति को लेकर केवल मुख्य मंत्री ने ही फैसला लिया राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं रही। इसके अलावा कानून प्रक्रिया को भी नहीं अपनाया गया।
याचिका कर्ता ने यह भी कहा कि मीरा वालिया व उनके पति सुभाष वालिया के खिलाफ 22 मई 2008 को सतर्कता व भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13(1)इ और धारा 13(1)2 के तहत एफआइआर दर्ज की गई व राजधानी की विशेष्ज्ञ अदालत वन में चालान भी पेश किया गया। लेकिन उनके पति सुभाष आहलुवालिया जो तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के प्रधान निजी सचिव थे के खिलाफ आरोपपत्र दायर नहीं किया जा सका क्योंकि भारत सरकार ने अभियोजन की मंजूरी ही नहीं दी।
आरोपपत्र का सार यह था कि मीरा वालिया व सुभाष आहलुवालिया ने अथाह संपति एकत्रित की। इनके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे है और एक बेनामी बगीचा भी खरीदा है। ये दोनों अक्सर विदेशों के दौरा पर जाते है व अथाह पैसा खर्च करते है लेकिन उनक ा स्त्रोत किसी को मालूम नहीं है।
यह मामला 2008 से किसी न किसी कारण से लंबित चलता रहा लेकिन 25 दिंसबर को जिस दिन प्रदेश में वीरभद्र सिंह सरकार ने शपथ ली उसके दूसरे दिन 26 दिसंबर 2012 को आरोपी के वकील ने अदालत में बयान दिया कि सरकार इस मामले में दूसरी रिपोर्ट दायर करना चाहती है। इसके बाद 1 जुलाई 2013 को अदालत में पूरक रिपोर्ट दायर करके कहा गया कि आरोपी मीरा वालिया के खिलाफ आय से अधिक संपति का कोई मामला नहीं बनात है। इसके बाद 9 सिंतबंर 2014 को उन्हें बरी कर दिया गया।
सरकार ने अदालत में दायर अपने जवाब में कहा कि आयोग के सदस्य की नियुक्ति राज्यपाल करते है और मीरा वालिया इससे पहले प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान नियामक आयोग की सदस्य भी रही जो एक संवैधानिक संस्था थी इसके अलावा वह कालेज में शिक्षक रही है। लेकिन याचिकाकर्ता ने तब उनकी नियुक्ति को चुनौती नहीं दी। यही नहीं याचिकाकर्ता ने स्वयं माना है कि उन्हें अदालत ने बरी कर दिया था।
मारा वालिा की ओर से अदालत में दायर जवाब में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने केवल उन्हीं की नियुक्ति को लक्ष्य कर चुनौती दी है जबकि उनके पहले व उनके बाद जो नियुक्तियां हुई उन सभी के लिए वही प्रकियाएं अपनाई गई जो उनकी नियुक्ति के लिए अपनाई गई थी।
खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता यह नहीं बता पाया कि मीरा वालिया और सुभाष आहलुवालिया के खिलाफ दर्ज मामलों से जुड़े दस्तावेज उसने कैसे हासिल किए। इससे ऐसा लगता है याचिकाकर्ता अदालत में साफ नीयत व साफ आत्मा से नहीं आया है और महत्वूपर्ण तथ्यों को छिपाया है।
इसके अलावा याचिकाकर्ता ने आयोग के अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति को चुनौती नहीं दी। इसके पीछे का राज भी नहीं बताया गया है।
इसके अलावा नियुक्ति में संविधान के प्रावधानों का पालन किया गया है बावजूद इसके ये याचिका दायर क ीगई । जिससे लगता है कि याचिकाकर्ता की मीरा वालिया के खिलाफ कोई दुर्भावना है या इसे किसी अन्य ने मीरा वालिया के खिलाफ इस्तेमाल किया है। अदालत ने कहा कि राज्यपाल के पास आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को नियुक्त करने की पूरा शक्तियां है। इस तरह अदालत ने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज क र दी।
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